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लक्ष्मी विलास होटल की सेल और अरुण शौरी

👤 Veer Arjun | Updated on:24 Sep 2020 6:15 AM GMT

लक्ष्मी विलास होटल की सेल और अरुण शौरी

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-अनिल नरेन्द्र

आजकल पूर्व वेंद्रीय मंत्री अरुण शौरी सुर्खियों में हैं। बता दें कि मामला क्या है? जोधपुर की विशेष सीबीआईं कोर्ट ने बुधवार को पूर्व मंत्री अरुण शौरी और चार अन्य लोगों के खिलाफ एफआईंआर दर्ज करने का आदेश दिया। यह मामला राजस्थान के उदयपुर में मौजूद होटल लक्ष्मी विलास पैलेस के निजीकरण से जुड़ा है। बीबीसी ने इस पूरे प्राकरण पर एक रिपोर्ट छापी है। आरोप है कि साल 1999-2002 के बीच विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी और विनिवेश सचिव प्रादीप बैजल ने अपने पद का तथाकथित दुरुपयोग कर इस सौदे में सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है। साल 2002 में इंडियन टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (आईंटीडीसी) के 29 एकड़ इलाके में पैले इस होटल को सरकार ने 7.52 करोड़ रुपए में भारत होटल्स लिमिटेड को बेचा था। आईंटीडीसी के सबसे अधिक नुकसान झेलने वाले 20-25 होटलों में इसका नाम भी शुमार था। इससे पहले सीबीआईं ने इस मामले में यह कहते हुए अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी कि अभियुक्त के खिलाफ अभियोग लगाने के लिए उनके पास पर्यांप्त सुबूत नहीं हैं। उदयपुर के फतेह सागर झील के किनारे एक पहाड़ की चोटी पर बना लक्ष्मी विलास होटल इस विवाद के वेंद्र में है।

सीबीआईं की इस क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि प्राथमिक तौर पर लगता है कि अरुण शौरी और प्रादीप बैजल के द्वारा की गईं इस डील में वेंद्र सरकार को 244 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। सीबीआईं जज पूरन वुमार शर्मा ने इस मामले की दोबारा जांच करने के आदेश दिए हैं और कहा है कि सीबीआईं देश की एक सम्मानित संस्था है, प्रारंभिक जांच में धांधली होने के संकेत मिलने के बावजूद क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करना चिन्ता का विषय है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि होटल को तुरन्त राज्य सरकार को सौंपा जाए और जब तक मामले का निपटारा नहीं हो जाता यह राज्य सरकार की कस्टडी में ही रहे। जज ने भ्रष्टाचार रोधी कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दोषियों के खिलाफ एफआईंआर दर्ज कराने का आदेश भी दिया है। इस मामले में अरुण शौरी, प्रादीप बैजल, लजार्ड इंडिया लिमिटेड के प्राबंध निदेशक आशीष गुहा, कांति करमसे एंड वंपनी के कांति लाल करमसे विव््रामसे और भारत होटल्स लिमिटेड की चेयरपर्सन ज्योत्सना सूरी पर आरोप लगाए गए हैं। 13 अगस्त 2014 को सीबीआईं ने इस आधार पर पहली एफआईंआर दर्ज की थी। विनिवेश विभाग के वुछ अफसर और एक निजी होटल व्यवसायी ने साजिश कर 1999- 2002 में लक्ष्मी विलास पैलेस की पहले मरम्मत की और फिर सस्ते दाम में उसे बेच दिया। कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार जमीन की कीमत 151 करोड़ रुपए है। ऐसे में होटल के सौदे में गलत तरीके से सरकार को 143.48 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। अगस्त 2014 में सीबीआईं ने जो चार्जशीट दर्ज की थी उसमें अरुण शौरी का नाम नहीं था। इंडियन एक्सप्रोस को अरुण शौरी ने बताया था कि सीबीआईं इस मामले को पहले बंद कर चुकी थी, क्योंकि उन्हें कोईं सुबूत नहीं मिले। जो एफआईंआर की उसमें मेरा नाम भी नहीं था, मुझे कोईं अंदाजा नहीं कि मेरा नाम अब इसमें वैसे जोड़ा गया है। अरुण शौरी ने कहा था कि 2014 में होटल की कीमत का हिसाब करने वालों को चयन सरकार द्वारा अप्राूव्ड लिस्ट से किया गया था।

उनका कहना था कि इसके मूल्य को लेकर राजस्थान हाईं कोर्ट में भी चुनौती दी गईं थी लेकिन कोर्ट ने आरोपों को बेबुनियाद पाया था। साल 2014 में इस मुद्दे पर अरुण शौरी ने लिखा—होटल के विनिवेश के पैसले के 12 साल बाद एक अनजान व्यक्ति की मौखिक शिकायत के आधार पर सीबीआईं ने यह जांच करने का पैसला किया है। अरुण शौरी ने बताया कि 2002 में हिन्दुस्तान जिक का निजीकरण हुआ और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गईं। सुप्रीम कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया। लेकिन लक्ष्मी विलास होटल के सन्दर्भ में भी वही पैटर्न था। यह होटल 2002 में बेचा गया था। जब अधिकारी मेरे पास आए तो मैंने उनसे पूछा कि किस आधार पर जांच शुरू की गईं है? उन्होंने बताया कि उनके पास वुछ भी लिखित रूप में नहीं है। यह मौखिक शिकायत के आधार पर था। बीबीसी की इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 में इकोनॉमिक टाइम्स में इसी सौदे से जुड़ी खबर प्राकाशित हुईं थी जिसमें कहा गया था कि अरुण शौरी के अनुसार उस समय विनिवेश पर बनी वैबिनेट समिति में अरुण जेटली शामिल थे। जो उस वक्त कानून मंत्री थे और उनके मंत्रालय ने तीन बार फाइल क्लियर की थी। इस विनिवेश पर बनी कमेटी में अरुण जेटली ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया था, मंत्री के तौर पर मैं पूरी प्राव््िराया का गवाह रहा था। मुझे इस बात पर कोईं शक नहीं कि विनिवेश के दौरान जो लेनदेन हुआ वह पूरी तरह प्राव््िराया के तहत हुआ था। इसके वुछ दिन बाद प्रादीप बैजल ने एक अखबार को बताया कि विनिवेश से जुड़े हर पैसले अरुण शौरी और उस दौरान विनिवेश पर बनी वैबिनेट समिति के अध्यक्ष के तौर पर पूर्व प्राधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लेते थे।

प्रादीप बैजल ने एक किताब भी लिखी—द कम्पलीट स्टोरी ऑफ इंडियन रिफॉम्र्स : टूजी, पॉवर एंड प्राइवेट एंटरप्राइजेज। इस किताब में उन्होंने दावा किया कि सीबीआईं चाहती थी कि वो अरुण शौरी और रतन टाटा के खिलाफ बयान दें। साल 2004 से 2007 के बीच यूपीए सरकार के दौर में प्रादीप बैजल भारतीय टेलीकॉम नियामक (ट्राईं) के चेयरमैन थे। पेशे से पत्रकार और लेखक अरुण शौरी को आपातकाल के दौरान अखबारों में उनके लेखों के लिए जाना जाता है। इन्हीं लेखों को देखते हुए इंडियन एक्सप्रोस ने उन्हें एग्जीक्यूटिव एडिटर के रूप में काम करने का न्यौता दिया। शौरी को 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1990 में देश के तीसरे सर्वोच्च सम्मान पद्मभूषण से नवाजा गया था। साल 1998 के आते-आते वो भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद वह राज्यसभा सदस्य मनोनीत हुए और वाजपेयी सरकार में विनिवेश, संचार और आईंटी मंत्री के पद पर रहे। अरुण शौरी भाजपा के प्राधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी सहयोगी माने जाते थे।

लेकिन भाजपा की मोदी सरकार के विरोध में बोलने के लिए भी उन्हें पहचाना जाता है। अगस्त 2014 में एफआईंआर दर्ज होने से पहले इसी साल मईं में उन्होंने कहा था कि मोदी काम करने और जल्दी पैसला लेने वाले नेता हैं। लेकिन जल्द ही उनका नजरिया बदल गया और मईं 2015 में उन्होंने कहा कि लगता है, मोदी, शाह और जेटली ने अपने सहयोगियों के साथ-साथ अपने लोगों को भी डरा दिया है।

रापेल विमान डील पर 2018 में उन्होंने जाने-माने वकील प्राशांत भूषण और यशवंत सिन्हा के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कोर्ट की निगरानी में मामले की सीबीआईं से जांच कराने की मांग की। एक दौर वो भी आया जब अरुण शौरी ने कहा कि 2019 में एक बार फिर भाजपा को चुनना देश के लिए सही नहीं होगा। उन्होंने कहा—यह मत सोचिए कि नेता सत्ता में आते ही बदल जाएंगे। उनके चरित्र को इस बात पर आंकिए कि वह सच का कितना साथ देते हैं।

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