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टीके पर बवाल

👤 Veer Arjun | Updated on:18 Jan 2021 7:34 AM GMT

टीके पर बवाल

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16 जनवरी देश के लिए महान दिन था जब 3,352 टीकाकरण सत्र आयोजित किए गए जहां 1,91,181 लाभार्थियों को टीका लगाया गया और इनमें से 447 लोगों पर प्रातिवूल प्राभाव दिखा, जिनमें सिर्प तीन टीका लगवाने वाले व्यक्तियों को अस्पताल में भता कराना पड़ा। टीका लगने के बाद प्रातिवूल प्राभाव के ज्यादातर मामलों में बुखार, सिरदर्द, उल्टी जैसी स्वास्थ्य संबंधी मामूली समस्याएं देखने को मिलीं। इस तरह के प्रातिवूल प्राभाव की संभावना वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों ने पहले ही व्यक्त कर दी थी किन्तु सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक किसी की भी मौत नहीं हुईं है।

प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कोविड-19 के खिलाफ विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत करते हुए कहा कि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के मेड इन इंडिया टीकों की शुरुआत के प्राति आश्वस्त होने के बाद ही इसके उपयोग की अनुमति दी गईं है। दरअसल यह संदेश उन लोगों के लिए है जिन्हें प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किए गए हर पैसले में सिर्प कमी ही दिखती है।

सच तो यह है कि कोविड-19 का टीका उन्हीं भारतीय वंपनियों ने विकसित किया है जिन्होंने दूसरे टीके विकसित किए हैं। इसलिए विवाद इन वंपनियों के उत्पादन पर नहीं है बल्कि आपत्ति इस बात पर है कि इन टीकों का उत्पादन उस वक्त हुआ जब देश के प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

यह सच है कि राजनीति में विपक्षी पार्टियों की भूमिका सरकार के हर कामकाज की समीक्षा होती है किन्तु उसकी इस भूमिका में भी सकारात्मकता होनी चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि यदि कोईं उत्पाद उत्तम नहीं है तो उसे उत्तम बनाने की कोशिश हो सके। किन्तु विपक्ष को इस बात से वुछ भी लेना-देना नहीं है कि कोविड-19 का टीका ऐसे वक्त पर आया है जब देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है और अपने-अपने व्यवसाय के लिए सभी लोग बाहर निकलने के लिए बाध्य हैं। वेंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एवं राज्य सरकारें मिलकर जहां एक तरफ कोरोना महामारी से जनजीवन को बचाने के लिए प्रायास करते रहे वहीं दोनों सरकारों ने अपनी तरफ से प्रायास किया कि भूख से कोईं जान न गंवाए। यह सच है कि इस प्रायास में वुछ कमियां रह गईं किन्तु देश की भुक्तभोगी जनता ने वेंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों के प्रायासों पर छाती नहीं पीटी जैसा कि वुछ खास विपक्षी नेताओं ने विधवा विलाप किया।


सीधा-सा मतलब है कि इस विश्वव्यापी महामारी में भी वुछ लोगों को अपने राजनीतिक भविष्य की भैंस गहरे गड्ढे के पानी में जाते हुए दिखी। आज उन्हें इस बात का गर्व नहीं है कि लाखों लोगों की जान बचाने वाले चिकित्साकर्मियों को टीके की सुविधा मिल गईं और जैसे-जैसे उपलब्धता सुलभ होगी प्राथमिकता के अनुसार सभी को यह सुविधा मिलेगी। दुनिया के तमाम देश भारत निर्मित इस टीके के लिए आवेदन कर चुके हैं और उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जल्दी वह भी इसी टीके को अपने देशवासियों के उपयोग के लिए प्राप्त कर सवेंगे। यहां तक कि चीन के मित्र राष्ट्र भी भारतीय टीके पर भरोसा करके इसकी मांग कर रहे हैं। चीन ने भी टीका निर्मित कर लिया है किन्तु उसके टीके की मांग ही नहीं है दुनिया के दूसरे देशों में। चीन के हमेशा दो तरह के उत्पाद होते हैं। एक उत्तम गुणवत्ता का और दूसरा घटिया, कामचलाऊ यानि दोयम दज्रे का। अपनी 'पहुंच'

क्षमता की वजह से चीन अपने दोनों तरह के उत्पादों की खपत करने में सक्षम रहता है। किन्तु भारत में टीका बन जाने के बाद चीन के लिए टीकों के खरीददारों का टोटा पड़ गया है। भारत के वैज्ञानिकों, प्रायोगशालाओं एवं उत्पादकों के प्रायासों की तारीफ करने के बजाय यदि विपक्ष हमारे देशी टीके पर सवाल उठाता है तो इससे प्राधानमंत्री के पुरुषार्थ और यश पर भले ही कोईं प्राभाव न पड़े किन्तु चीन के लिए यह सहारा तो बनेगा ही क्योंकि चीनी भोंपू इसी को आधार बनाकर अपना टीका बेचने के लिए भ्रमित करेगा। ऐसी राष्ट्रघाती राजनीति से बचना चाहिए। एक बात और विपक्ष इस टीके के विरुद्ध अपने तर्व देते हुए कहता है कि दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने टीका लगवाकर जनता का संदेह दूर किया है। इसलिए यह टीका प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को सबसे पहले लगवाना चाहिए था। प्राधानमंत्री ने अपने संबोधन में टीकाकरण का शुभारंभ करते हुए कहा कि राजनेता इस टीके को सबसे बाद में लगवाएंगे अन्यथा देश के राजनेता और उनके परिवार में ही टीका बंट जाएगा। प्राधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि टीका प्राथमिकता के मुताबिक कोरोना से संघर्ष करने वालों को लगेगा। राजनेताओं और उनके परिवार के लोगों को सबसे बाद में टीका लगेगा।

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