पाटा हित से ऊपर उठें सांसद
राष्ट्रपति अभिभाषण का 16 दलों ने बहिष्कार कर सरकार को अपने नाराजगी से अवगत कराया। विपक्ष का अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है कि वह सरकार के कामकाज का मूल्यांकन करे, समय-समय पर अपने आक्रोश एवं नाराजगी का बोध भी कराए किन्तु जनता ने उसे वोट देकर अपना प्रातिनिधित्व सौंपा और दायित्व दिया है कि वे अपनी संसदीय भूमिका अच्छी तरह से निभाएं। राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने से न तो राष्ट्रपति का अपमान होता है और न ही सरकार पर दबाव बढ़ता है, बल्कि बहिष्कार करने वाले विपक्ष की भूमिका पर ही सवाल उठते हैं।
विपक्ष की भूमिका हमेशा नकारात्मक ही रहे, यह सही नहीं है। विपक्ष की सकारात्मक भूमिका से जनता को ज्यादा लाभ होता है। यह सच है कि विपक्ष संसद और विधान मंडलों में जो भी रणनीति बनाता है, वह उनकी पार्टियों की रणनीति के तहत ही होता है इसलिए किसी को हैरान होने की जरूरत नहीं है। हर पाटा का शीर्ष नेतृत्व अपनी रणनीति अपनी पाटा के हितों को देखते हुए बनाता है और उसे ऐसा करना भी चाहिए। किन्तु यह प्रावृत्ति तब सवालिया घेरे में आ जाती है जब पाटा प्रामुख आम जनता की अपेक्षा अपनी पाटा की चिन्ता ज्यादा करने लग जाते हैं। संसद में अनेक अवसर आए हैं जब सदस्य गंभीर मुद्दों पर चर्चा में हिस्सा ले सकते थे और अपने विचार व्यक्त कर सकते थे किन्तु उन्होंने अपनी पाटा का निर्देश मानकर चर्चा से खुद को दूर रखा।
पाटा के ऐसे शीर्ष नेताओं को जनता का हित पहले और पाटा का हित बाद में रखने की सलाह तो नहीं दी जा सकती किन्तु पीठ चाहे तो कोईं आचार संहिता जरूर बना सकती है कि महत्वपूर्ण अवसरों पर हर पाटा के सदस्य का सदन में उपस्थित रहना अनिवार्यं है। ठीक उसी प्राकार जैसे राजनीतिक दल के नेता तय करते हैं कि वित्त विधेयक अथवा विश्वास या अविश्वास मतदान के दौरान उनके सदस्यों का संसद में मौजूद रहना अनिवार्यं है।