दिल्ली धमाका अंतर्राष्ट्रीय साजिश
यदि जांच की यही गति और दिशा रही तो शीघ्र ही खुफिया तंत्र इजरायली दूतावास के पास बम धमाका करने वालों को पकड़ने में सफल होगा। शनिवार को उस टैक्सी ड्राइवर को पकड़ लिया गया जिसने घटनास्थल तक आतंकियों को पहुंचाया था। इजरायली राजदूत के नाम पत्र में आतंकियों ने मारे गए ईंरान के जनरल सुलेमानी और न्यूक्लियर वैज्ञानिक मोहसेन फकहरिजाडेट को शहीद बताकर यह साबित करने की कोशिश की थी कि वे ईंरान के हैं किन्तु हर अपराधी कोईं न कोईं ऐसा निशान छोड़ता है जिसके कारण उसकी गर्दन जांच एजेंसियों के हाथ तक पहुंच जाती है। शनिवार को ही जैश-उल-हिन्द नाम के एक आतंकी संगठन ने जब इस विस्फोट की जिम्मेदारी ली तो देश की खुफिया एजेंसियों को लगा था कि जांच की दिशा को भ्रमित करने के लिए ऐसा किया गया है। किन्तु सच तो यह है कि यह संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सहयोगी संगठन है जिसका कार्यंक्षेत्र भारत है। यह संगठन भारत से जुड़ी जानकारी पाक आतंकी संगठनों तक पहुंचाता रहा है और आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहा है।
भारत की सभी खुफिया एजेंसियां जांच में जुटी हैं और इजरायली खुफिया संगठन मोशाद भी अब जांच में सहयोग कर रहा है। विस्फोट स्थल से प्राप्त पीएटीएन का इस्तेमाल इंडियन मुजाहिद्दीन और लश्कर- ए-तैयबा द्वारा विस्फोटों में किया जाता रहा है। इसलिए अब यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि अनुवूल अवसर पाकर पाक खुफिया एजेंसी आईंएसआईं ने ही यह विस्फोट कराया है।
दरअसल भारत और इजरायल के संबंधों का इतना विस्तार और प्रागाढ़ता देखकर पाकिस्तान और चीन अत्यंत चिंतित हैं। भारत के खिलाफ इन दोनों देशों की साजिशों का खुलासा इजरायल द्वारा दिया जा रहा भारतीय खुफिया तंत्र एवं सुरक्षा संगठनों को खुफिया एवं लॉजिस्टिक सहयोग इतना प्राभावी होता है कि शत्रु राष्ट्र तिलमिलाए रहते हैं। जब से इजरायल के संबंध यूएईं और सऊदी अरब जैसे देशों से हो गए हैं, तभी से पाकिस्तान में बेचैनी और बढ़ गईं है। यह सच है कि ईंरान और इजरायल के संबंध बेहद शत्रुतापूर्ण हैं और ईंरान जहां अवसर पाएगा, वहीं इजरायल को क्षति पहुंचाने का प्रायास करेगा। किन्तु शुव््रावार को हुए विस्फोट का इशारा पाक आतंकी संगठनों की ओर है।
बहरहाल धमाका बड़ा हो या छोटा हो है तो धमाका ही। जांच की गति जैसे-जैसे बढ़ेगी, स्थिति और स्पष्ट होगी। किन्तु इतना तो तय है कि जिसकी आंखों में भारत-इजरायल संबंध खटक रहे हैं और उसका रिकार्ड भारत विरोधी रहा हो उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
भारत और इजरायल की 29वीं सालगिरह के अवसर पर हुए धमाके से यदि शत्रु राष्ट्र दोनों देशों के बीच दरार पैदा करने की गलतफहमी पाले हों तो यह उनकी नासमझी साबित होगी। सच यह है कि अब दोनों देशों में सहयोग और भी बढ़ेगा। यही नहीं दुनिया के देशों में पाकिस्तान की आतंकी प्रावृत्ति का एहसास ताजा होगा।
इस विस्फोट के लिए कोईं भी जिम्मेदार हो किन्तु इसका महत्व इसलिए ज्यादा गंभीर है क्योंकि 2014 यानि मोदी सरकार बनने के बाद पहली बार दिल्ली में ऐसा विस्फोट हुआ है। वर्ष 2012 में भी ऐसा ही विस्फोट हुआ था, तब आतंकियों के भारतीय सहयोगियों को तो पकड़ लिया गया था किन्तु तीन ईंरानी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाईं के लिए ईंरान से अनुरोध किया गया था, उनके बारे में तेहरान ने न तो कोईं कार्रवाईं की और न ही भारत को कोईं जानकारी दी।
बहरहाल विस्फोट करने वाले आतंकी चाहे पाकिस्तानी हों या फिर ईंरानी, जांच से पता तो चल ही जाएगा। इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाना चाहिए और वूटनीतिक प्रायास ऐसे होने चाहिए कि जिस देश के आतंकियों ने ऐसा वुवृत्य किया है, उन्हें पछताना पड़े। लेकिन टीवी चैनलों की बहस में पूर्व रा, आईंबी और एनआईंए के अधिकारियों द्वारा यह कहना कि इस धमाके के लिए भारत का विपक्ष भी जिम्मेदार है जिसने दिल्ली को अशांत करके रख रखा है, उचित नहीं है। आज तक चैनल पर रा के पूर्व अधिकारी एनके सूद, एनआईंए के पूर्व अधिकारी नवनीत राजन और आईंबी के पूर्व अधिकारी टीएस तंवर ने अपने-अपने तरीके से कहा कि गणतंत्र दिवस एवं उससे जुड़े राष्ट्रीय कार्यंव््रामों और किसान आंदोलन में सिख उग्रावादियों के संलिप्तता के कारण खुफिया एजेंसियों का ध्यान बंटा और सुरक्षा संगठनों पर दबाव था इसलिए आतंकियों ने इस अवसर का लाभ उठाकर विस्फोट किया। खुफिया तंत्र के दशकों तक हिस्सा रहने वाले इन पूर्व अधिकारियों ने एक स्वर से विपक्षी पार्टियों का नाम लेकर उन पर आरोप लगाया कि राजधानी में जिन परिस्थितियों का निर्माण हुआ है उसके लिए विपक्ष जिम्मेदार है। अपना मानना है कि खुफिया तंत्र के इन पूर्व अधिकारियों को टीवी चैनल पर इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए थी। इससे तो शत्रु राष्ट्र में यह संदेश जाएगा कि भारतीय खुफिया तंत्र दबाव में है और उसका समन्वय लचर-पचर है।
हमारी खुफिया एजेंसियां अपने अनुभव एवं कौशल से ऐसी परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हैं। किन्तु वास्तविकता तो यह भी है कि विस्फोट स्थल के पास ज्यादातर सीसीटीवी वैमरे काम ही नहीं कर रहे हैं। इसी तरह वैमरों की हालत दूसरे क्षेत्रों में भी होगी। जिस भी एजेंसी पर इन वैमरों की व्यवस्था का दायित्व हो, कार्रवाईं उनके विरुद्ध भी होनी चाहिए। सरकार की सभी एजेंसियां अपना दायित्व सही तरीके से निभाएं, शत्रु तो अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे। उनके खिलाफ कार्रवाईं होनी चाहिए, यही देश को सरकार से उम्मीद है।