नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना, पेंट की जिप खोलना यौन हमला नहीं है
-अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईं कोर्ट के उस पैसले पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि त्वचा के सम्पर्व बिना नाबालिग के अंग को छूना यौन उत्पीड़न नहीं है। हाईं कोर्ट ने मामले में पॉस्को एक्ट के तहत आरोपी को रिहा कर दिया था। शीर्ष अदालत ने मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है। साथ ही अटॉना जनरल केके वेणुगोपाल को हाईं कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील करने की अनुमति दी।
अटॉना जनरल ने बुधवार को चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के सामने इस मामले का जिक्र करते हुए कहा है कि हाईं कोर्ट का आदेश सही नहीं है इससे खतरनाक नजीर बन जाएगी। पीठ ने उनकी दलीलों को स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईं कोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा आरोपी को जमानत देने के पैसले पर भी रोक लगा दी। पीठ ने वेणुगोपाल को विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने की इजाजत भी दे दी है। हाईं कोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला को 19 जनवरी को दिए आदेश में कहा था कि चूंकि आरोपी ने बच्ची के शरीर को उसके कपड़े हटाए बिना छुआ था, इसलिए यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता।
इसके बजाय यह आईंपीसी की धारा 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध बनता है। हाईं कोर्ट ने सत्र अदालत के आदेश में संशोधन किया था, जिसमें 39 वषाय व्यक्ति को 12 साल की लड़की का यौन उत्पीड़न के लिए तीन साल की वैद की सजा सुनाते हुए पॉस्को एक्ट से बरी कर दिया था। जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने इससे पहले अपने दो पैसलों में कहा था कि कपड़े के ऊपर से संवेदनशील अंग को छूना व नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना, पेंट की जिप खोलना पॉस्को एक्ट के तहत यौन हमले के दायरे में नहीं आता है, स्किन टू स्किन सम्पर्व के उनके तर्व पर सुप्रीम कोर्ट ने एतराज जताया था।