संघ प्रमुख का उद्बोधन
विजयदशमी उत्सव के दौरान अपने संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सरसंघ चालक मोहन भागवत ने राष्ट्रीय जनसंख्या, जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा चुन-चुनकर हत्याएं, तालिबान, भारत विभाजन एवं अन्य मुख्य समस्या पर विचार रखा।
संघ प्रामुख ने एक बात और बहुत अच्छी कही। उन्होंने कहा कि बल, शील, ज्ञान तथा संगठित समाज को ही दुनिया सुनती है। इसके अलावा जागरूक, संगठित, बल संपन्न व सव््िराय हिन्दू समाज ही सभी समस्याओं का समाधान है।
संघ प्रामुख ने एक बात हमेशा दुहराईं है कि इस देश में रहने वाले सभी सवा सौ करोड़ की जनसंख्या के लोग हिन्दू हैं। उनका हमेशा यही मानना है कि इस देश में जो भी हिन्दू मुसलमान रहते हैं, उनकी पूजा पद्धति भिन्न है किन्तु उनके पूर्वजों के डीएनए एक ही हैं।
अब वुछ लोग संघ प्रामुख के विचारों को विरोधाभासी साबित करने का प्रायत्न कर सकते हैं। वे कह सकते हैं कि जब सभी देशवासी हिन्दू हैं तो उन्होंने यह क्यों कहा कि हिन्दुओं को बांटने की कोशिश की जा रही है।
दरअसल संघ प्रामुख हिन्दू तो सभी को मानते हैं किन्तु उपासना पद्धति के आधार पर विभाजन करते हैं। एक वे हैं जो अपने देश में उत्पन्न पंथ के अनुयायी हैं और दूसरे वे हैं जो विदेशी पंथ को मानते हैं। बहरहाल उन्होंने मुसलमान आबादी के बढ़ने और हिन्दू आबादी के घटने पर भी चिन्ता जाहिर की।
मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की चर्चा की और इसे अच्छा पैसला बताया तो वहीं उन्होंने बिटक्वाइन और व््िराप्टो करेंसी पर विचार व्यक्त किया। उन्होंने सरकार से कहा कि वह इस पर नियंत्रण करे।
संघ प्रामुख ने समाज के सभी पहलुओं पर विचार व्यक्त करके यह साबित कर दिया कि संघ राष्ट्रीय मुद्दों पर कितना सचेत है। विजयदशमी पर्व पर संघ प्रामुख का उद्बोधन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संघ के सभी अनुषांगिक संगठन उसे मातृ संगठन का दिशा निर्देश मानते हैं।