राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी राजनीति!
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गत सप्ताह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) अधिनियम में संशोधन करके इस केंद्रीय बल को 15 किलोमीटर के स्थान पर 50 किलोमीटर तक सीमावर्ती राज्यों पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल में तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी का अधिकार दिया तो इससे गैर-भाजपा शासित राज्यों पश्चिम बंगाल और पंजाब में बवाल होना ही था। इन दोनों राज्यों में भाजपा विरोधी पार्टियां इस संशोधन का राजनीतिक विरोध कर रही हैं।
असल में बीएसएफ अधिनियम 1968 की धारा 139 के तहत वेंद्र को आपरेशनल एरिया की अधिसूचना जारी करने का अधिकार है। सीमा पार से वुख्यात अपराधी ड्रग्स, गोवंश और हथियारों की तस्करी करते हैं। उन्हें रोकने के लिए ही बीएसएफ को यह विशेष अधिकार दिया गया है। पहले उन्हें इस अधिकार का इस्तेमाल सीमा के अंदर मात्र 15 किलोमीटर तक कार्रवाईं करने का अधिकार था। 1968 में 15 किलोमीटर सीमा ही बहुत ज्यादा थी। किन्तु आज अपराधियों के पास साधन और संपर्क को देखते हुए 15 किलोमीटर बहुत कम है। सरकार ने इस सीमा को 50 किलोमीटर अंदर तक बढ़ा दिया। केंद्र सरकार द्वारा इस संशोधन के बाद बंगाल में तृणमूल और पंजाब की तीनों पार्टियां कांग्रेस, अकाली और आप केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रमक हो गईं हैं। इन चारों पार्टियों का आरोप है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से राज्यों के अधिकार प्राभावित होंगे। राज्यों के अधिकार का मतलब कानून-व्यवस्था राज्य का अधिकार है और बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में बढ़ोत्तरी से संघीय ढांचा प्राभावित होगा।
सवाल यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का दायित्व जब केंद्र सरकार का है तो उसके अधिकारों पर इतनी वुकरहट होती ही क्यों है? वेंद्र सरकार अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए जब तक अपने वुछ अधिकारों का इस्तेमाल नहीं करेगी तो सफल वैसे होगी? मजे की बात तो यह है कि अब तक बीएसएफ को सीमा से 15 किलोमीटर अंदर तक तस्करी के खिलाफ कार्रवाईं का अधिकार था, तब भी यह वेंद्रीय बल राज्य की पुलिस से समन्वय स्थापित करके ही कार्रवाईं करता था और अब यह सीमा 50 किलोमीटर हो गईं है। किसी संबंधित राज्य की पुलिस से समन्वय स्थापित करके ही बीएसएफ कार्रवाईं करेगी। बीएसएफ की कार्रवाईं विशेष परिस्थिति में होती है जबकि कानून-व्यवस्था यानि चोरी, डवैती, हत्या, महिला अपराध, दंगा, ठगी, घृणा अपराध जैसे सामान्य अपराध राज्य सरकारें अपनी पुलिस के माध्यम से नियंत्रित करती हैं। कानून-व्यवस्था सरकार के अधिकारों की सामान्य स्थिति है। लेकिन राष्ट्रीय एकता के मामले में विशेष परिस्थिति सदैव सामान्य परिस्थिति से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
असम ने वेंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है और पश्चिम बंगाल या पंजाब के राजनेताओं को भी केंद्र के इस फैसले का सम्मान करना चाहिए। सरकारें चाहे राज्यों की हों या वेंद्र की, बदलती रहती हैं किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सभी पार्टियों को समर्पित होना चाहिए। जरूरत के अनुरूप संशोधित प्रावधान का सम्मान करना चाहिए। जब संघ राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तो संघीय ढांचे पर भी बहस हो सके। बीएसएफ को जिन अपराधी तत्वों से लड़ना होता है, वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह से विरोध हो सकता है किन्तु किसी राजनेता को राष्ट्रीय हितों का विरोधी नहीं होना चाहिए।