श्रद्धालुओं की मौत के जिम्मेदार
वैष्णो देवी माता मंदिर के श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच भगदड़ में मौत होना इस बात का सूचक है कि श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं के प्राति कितना उदासीन है। श्राइन बोर्ड को इस बात की परवाह ही नहीं थी कि वर्ष के पहले दिन श्रद्धालुओं की असामान्य भीड़ हो सकती है। श्राइन बोर्ड को चाहिए था कि शासन के साथ मिलकर हर संभावनाओं और आपदाओं से निपटने पर विचार-विमर्श करता किन्तु लगता है कि इस संस्था को इस बात का बोध ही नहीं था कि भीड़ में ऐसा हादसा होगा कि 12 श्रद्धालु काल के गाल में चले जाएंगे और तमाम घायल हो जाएंगे।
वैष्णो देवी माता मंदिर ही क्यों देश के अन्य श्रद्धा वेंद्रों पर भी मेला या विशेष आयोजन में इस तरह की भीड़ में आपदा की घटनाएं होती रहती हैं। घटनाएं होती हैं, लोग मरते हैं, घायल होते हैं, जांच समिति बनती है, रिपोर्ट आती है तब तक मंदिरों की प्राबंध समितियां पूर्व में घटी आपदाओं को दैवी प्राकोप मानकर भूल जाती हैं। स्वाभाविक है कि ऐसी घटनाओं को हमेशा के लिए खत्म करने का प्रायास नहीं होता। यदि श्राइन बोर्ड में आपदा प्राबंधन के विशेषज्ञ पहले से ही सजग होते तो वे भीड़ की सुरक्षा के लिए स्थायी व्यवस्था जरूर करते। उन्हें तो इस बात की आशंका ही नहीं रही होगी कि श्रद्धालु आपस में झगड़ा भी कर सकते हैं। कितने आार्यं की बात है कि श्राइन बोर्ड दावा करती है कि उसकी व्यवस्था में कोईं कमी नहीं थी, यह तो श्रद्धालुओं के बीच आपसी झड़प के कारण लोग गिरे और मरे हैं। श्राइन बोर्ड से पूछा जाना चाहिए कि श्रद्धालु जल्दी दर्शन पाने के लिए एक-दूसरे से भिड़ते रहे और झगड़ा होता रहा फिर वे गिरते रहे और मरते रहे किन्तु पुलिस या कोईं और उनका झगड़ा रोकने के लिए मौजूद नहीं था जिससे कि यह घटना टाली जा सकती।
सच तो यह है कि आम श्रद्धालु की श्राइन बोर्ड को कोईं परवाह ही नहीं होती। उनकी चिन्ता वीआईंपी दर्शन पर वेंद्रित होती है। शासन की चिन्ता बाहरी हमलों से श्रद्धालुओं की रक्षा की होती है। तमाम अर्ध सैनिक बल सिर्प इसलिए तैनात होते हैं ताकि आतंकी हमलों से श्रद्धालुओं को बचाया जा सके। सीआरपीएफ के जवान आपस में झगड़ रही भीड़ को एक-दूसरे से अलग करना अपनी ड्यूटी नहीं समझते। यह कार्यं तो स्थानीय पुलिस का है किन्तु दुर्भाग्य से स्थानीय पुलिस के लिए हमेशा चिन्ता वीआईंपी सुरक्षा होती है। वे सामान्य श्रद्धालुओं की परवाह करते ही कहां हैं!