सीएम को शुक्रिया कहना, मैं जिंदा लौट पाया
—अनिल नरेन्द्र
बठिडा-पंजाब में प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला बुधवार को सुरक्षा में बड़ी चूक के कारण 20 मिनट तक प्रादर्शनकारी किसानों के जाम में पंसा रहा। काफिले को बीच रास्ते से बठिडा एयरपोर्ट लौटना पड़ा। हवाईं अड्डे पर पहुंच कर पीएम मोदी ने अफसरों से कहा—अपने सीएम को शुक्रिया कहना कि मैं जिंदा लौट पाया हूं। गृह मंत्रालय ने इसे बड़ी व गंभीर चूक बताते हुए पंजाब सरकार से रिपोर्ट तलब की है। प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुईं चूक से पूरा देश स्तब्ध है। कोईं सोच भी नहीं सकता था कि अपने ही देश में प्राधानमंत्री के साथ ऐसी अप्रिय घटना घटित हो सकती है कि उनके काफिले को किसी फ्लाईंओवर पर 20 मिनट के लिए रुकना पड़े। अगर यह किसी प्राकार की हत्या करने का प्रायास था तो इसकी चिंता सभी को होनी चाहिए। मैं किसी एक घटना के जवाब में दूसरी घटना को याद करके उदाहरण देने का पक्षधर नहीं हूं। मगर लोकतंत्र में जब विरोध को साजिश और खतरा कहा जाने लगे तो वुछ बातें इतिहास के पन्नों से निकालना चाहिए। बात 26 अप्रौल 2009 की है जब देश के तत्कालीन प्राधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिह गुजरात के अहमदाबाद में थे जहां उन पर जूता पेंक दिया गया था। यह पीएम की सुरक्षा में चूक थी। कहने के लिए हम कह सकते हैं कि जूते की जगह बम भी हो सकता था, क्योंकि छह माह पूर्व ही भारत में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था और जिस प्राकार से हाल ही में धर्म संसद में एक धार्मिक नेता ने कहा कि अगर मैं संसद में होता, मेरे पास बंदूक होती तो मैं डॉक्टर मनमोहन सिह को गोली मार देता तो इससे भी साफ होता है कि पूर्व पीएम मनमोहन सिह के दुश्मन कम नहीं थे। जूता पेंकने की घटना के बाद पीएम मनमोहन सिह ने न तो गुजरात की मोदी सरकार पर आरोप लगाया और न ही यह कहा कि धन्यवाद कहना सीएम को, मैं जिंदा बच गया। सबसे अच्छी बात यह थी कि मनमोहन सिह ने उस युवक को माफ करते हुए किसी भी प्राकार का केस दर्ज न करने की अपील की। यह होता है लोकतंत्र में निडर और मजबूत प्राधानमंत्री।
निडर प्राधानमंत्री की बात से याद आया कि फरवरी 1967 के चुनावों की बात है, तत्कालीन प्राधानमंत्री इंदिरा गांधी देशभर में चुनाव प्राचार कर रही थीं, वह देश के दूरदराज के हिस्सों में जा रही थीं। लाखों की भीड़ खुद-ब-खुद उनका भाषण सुनने के लिए इकट्ठा होती थी। ऐसे ही प्राचार के सिलसिले में जब वो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर गईं तो वहां भीड़ में वुछ उपद्रवी भी थे। वो माइक पर बोल रही थीं कि उपद्रवियों ने पथराव शुरू कर दिया लेकिन इंदिरा भी डटी रहीं। इसी पथराव के बीच एक पत्थर का टुकड़ा आकर उनकी नाक पर लगा और नाक से बुरी तरह खून बहने लगा, सुरक्षा अधिकारी उन्हें मंच से हटा लेना चाहते थे, स्थानीय कांग्रोस कार्यंकर्ता भी यही अनुरोध करने लगे कि वो मंच के पिछले हिस्से में जाकर बैठ जाएं, मगर इंदिरा जी ने किसी की नहीं सुनी और खून से भीगी नाक को रूमाल से दबाया और निडरता से क्रुद्ध भीड़ के सामने खड़ी रहीं। उन्होंने अपना भाषण पूरा किया, अपने स्टाफ और कांग्रोसी कार्यंकर्ताओं से कहा कि प्राधानमंत्री होने के नाते मैं देश का प्रातिनिधित्व करती हूं। मेरा भागना देश और दुनिया में गलत संदेश देता। इसके बाद वो अगली जनसभा के लिए कोलकाता रवाना हो गईं और चोटिल नाक पर पट्टी लगवा कर कोलकाता में भाषण दिया पर कहीं भी उन्होंने यह नहीं कहा कि जान बच गईं तो जिंदा लौट आईं। खैर! पीएम मोदी के साथ हुईं घटना की बारीकी से जांच होनी चाहिए और कसूरवारों की लापरवाही और जवाबदेही तय होनी चाहिए। इस तरह की लापरवाही और चूक की गहन जांच होनी चाहिए ताकि ऐसी घटना दोबारा न हो। प्राधानमंत्री का इस तरह 20 मिनट तक सड़क पर खड़ा रहना एसपीजी की भूमिका पर भी संदेह पैदा करता है।