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सर्वे पर रोक नहीं

👤 Veer Arjun | Updated on:18 May 2022 4:55 AM GMT

सर्वे पर रोक नहीं

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ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे पर रोक लगाने के लिए अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाईं थी किन्तु आज सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगाने से साफ इंकार करके यह साबित कर दिया कि ज्ञानवापी में मंदिर का कानूनी विवाद अब लंबा चलेगा।

ज्ञानवापी मस्जिद के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 का हवाला देते हुए दलील दी थी कि इस कानून के रहते ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराना संभव नहीं है। उन्होंने तर्व दिया कि इस कानून में स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख है कि 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी पूजास्थल की स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार यानि 17 मईं को मामले की सुनवाईं की और तीन पैसले लिए। पहला—सर्वे पर रोक नहीं लगेगी। दूसरा—नंदी के सामने और मस्जिद के अंदर बने वजूखाने के अंदर मिला शिवलिग सील किया जाए और तीसरा—मुसलमानों के नमाज में कोईं व्यवधान न हो। इन तीनों बातों से एक बात तो स्पष्ट हो गईं है कि जिस उपासना स्थल कानून को ढाल बनाकर सर्वे के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था, वह सफल नहीं हुआ। इसके अलावा सोमवार यानि 16 मईं को वाराणसी सिविल जज ने वजूखाने में मिले शिवलिग की सुरक्षा हेतु वजूखाने को सील करने का जो आदेश दिया था उस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज की कार्यंवाही पर रोक न लगाने के साथ-साथ उसका समर्थन ही किया है।

दरअसल सर्वे का मतलब सिर्प कोर्ट के लिए रिकॉर्ड रखने से ज्यादा वुछ नहीं होता किन्तु बिना इस रिकॉर्ड के ऊंची अदालतें किसी विवाद पर पैसला भी नहीं कर पातीं। इसलिए सर्वे से तत्काल तो मस्जिद-मंदिर का पैसला नहीं हो रहा है किन्तु इस पैसले के लिए सर्वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

असल में उपासना स्थल कानून 1991 में जब बनाया गया था उस वक्त का माहौल पूरी तरह से सांप्रादायिक हो गया था। तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुसलमानों में यह भावना पैदा करने की थी कि जिस तरह अयोध्या में बाबरी ढांचा टूटा उस तरह दूसरी विवादित मस्जिदों के साथ नहीं होगा। मुस्लिम वेंद्र की कांग्रोस सरकार पर इस बात के लिए आरोप लगा रहे थे कि बाबरी ढांचे का विध्वंस उसके ढुलमुल रवैये का परिणाम है। मुस्लिम समाज जहां एक तरफ उत्तर प्रादेश की पूर्व सरकार की इस बात के लिए तारीफ कर रहा था कि उसने ढांचे की सुरक्षा के लिए कारसेवकों पर गोलियां तक चलवा दीं वहीं वेंद्र की नरसिम्हाराव सरकार से इस बात को लेकर नाराज थी कि वेंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों ने ढांचे की सुरक्षा क्यों नहीं की! कांग्रोस के अंदर भी प्राधानमंत्री के खिलाफ दबाव बढ़ गया था।

सरकार ने अपने ऊपर बाहरी और भीतरी दबावों को कम करने के लिए ही इस कानून को बनाया किन्तु इस कानून में बहुत सारे ऐसे प्रावधान हैं जो इस बात के अपवाद हैं कि 1947 को कटऑफ वर्ष माना जाए। कानून में धार्मिक पहचान, विशेषता एवं चरित्र के उल्लेख इस तरह किए गए हैं जिसकी वजह से यह कानून विवादित स्थलों का विवाद रोकने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सभी कानूनों का समय-समय पर अदालतें समीक्षा करती हैं और संसद संशोधन करता है।

लब्बोलुआब यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस कानून के होने के बावजूद 15 अगस्त 1947 के बाद भी विवादित स्थलों का सर्वे संभव है और विवादित स्थलों की सुनवाईं अदालतें कर सकती हैं।

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