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अब हार्दिक भी गए

👤 Veer Arjun | Updated on:19 May 2022 4:55 AM GMT

अब हार्दिक भी गए

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गुजरात कांग्रेस के कार्यंकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्याग पत्र देने के लिए जिस भाषा, भाव और शैली का इस्तेमाल किया है, उससे ऐसा लगता है कि उन्हें कांग्रेस पार्टी में अब सब वुछ गलत ही दिख रहा है। पाटीदार आंदोलन से उभरे नेता हार्दिक पटेल ने 2019 में कांग्रेस की सदस्यता ली थी तो कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह युवा हैं और पाटीदार समाज के लोकप्रिय नेता होने के कारण पार्टी के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होंगे। यदृापि हार्दिक ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया था कितु लगभग दो वर्ष तक उन्होंने पार्टी की सदस्यता नहीं ली थी। इस बीच उन्होंने काफी सोच-समझकर पार्टी की सदस्यता ली थी। कांग्रेस को उनसे काफी उम्मीद थी इसीलिए उन्हें 2020 में गुजरात प्रदेश का कार्यंकारी अध्यक्ष बना दिया गया था। कितु अब उनका मानना है कि कांग्रेस पार्टी केन्द्र की मोदी सरकार की आलोचना के अतिरिक्त किसी मुद्दे पर बात ही नहीं करती। हार्दिक को लगता है कि वेंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया, अयोध्या में राम मंदिर का कार्यं शुरू और जीएसटी लागू किया तो कांग्रेस को इन मुद्दों पर सरकार का विरोध नहीं करना चाहिए था। हार्दिक पटेल ने उन्हीं नेताओं की तरह कांग्रेस पर नकारात्मकता का आरोप लगाया है जिन्होंने पहले कांग्रेस छोड़ी थी।

इसलिए कांग्रेस को अब इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि वह सिर्प पीएम मोदी के हर काम का अंध विरोध करके आम जनता का समर्थन हासिल नहीं कर सकती। हार्दिक पटेल की अपनी राजनीति है और वह क्या सोचते हैं, इस बारे में तो वही जानें कितु कांग्रेस नेतृत्व में उसी को महत्व मिलता है जो मोदी का विरोध ज्यादा ऊंची आवाज में करता है तो एक सवाल उठना स्वाभाविक है कि जिन विचारों एवं प्रवृत्तियों को आम जनता में पसंद किया जाता है उनका विरोध करके कांग्रेस को फायदा वैसे मिल सकता है? कांग्रेस बिना गुण-दोष विचार के मोदी सरकार के कार्यो का जिस तरह अंध विरोध करती है उसी से लाखों-करोड़ों लोग लाभ उठा रहे हैं तो कांग्रेस विरोध का जनता को समर्थन वैसे मिलेगा? कांग्रेस के लिए आवश्यक है कि वह अपने एजेंडे की समीक्षा करे।

कांग्रेस ने 2014 में जब नरेन्द्र मोदी को चाय बेचने वाला बताकर मजाक उड़ाया तो उससे भी पार्टी को नुकसान हुआ। इसी तरह 2019 में रापेल सौदे को लेकर जब राहुल गांधी ने मोदी को सांकेतिक भाषा में चौकीदार चोर है बताया और उनके समर्थकों ने उनका अनुसरण किया तब भी मोदी को ज्यादा समर्थन मिला।

हैरानी की बात है कि कांग्रेस जितना भी भाजपा के बारे में कीचड़ जमा करती है, कमल उतना ही खिलता जा रहा है। हार्दिक पटेल के पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी, गुलाम नबी आजाद सहित तमाम वरिष्ठ नेताओं ने मौजूदा नेतृत्व को यह समझाने की कोशिश की कि व्यक्तिगत रूप से मोदी का मजाक उड़ाना और केन्द्र सरकार के कार्यो का अंध विरोध आत्मघाती साबित हो रहा है, तो कांग्रेस नेतृत्व उन पर तत्काल प्रतिव्रिया देता है कि वह तो भाजपा की भाषा बोल रहे हैं। संभव है वह नेता जो कांग्रेस नेतृत्व से अपनी नीति और नीयत में बदलाव करने के लिए भाजपा की नीतियों से प्रभावित होकर ही कर रहे हों कितु इसका मतलब यह तो नहीं कि वे कांग्रेस के विरोधी हैं।

कांग्रेस छोड़ने वालों के नामों की बहुत बड़ी सूची है कितु उन सभी की वेंद्रीय नेतृत्व से एक ही शिकायत है कि वह जनता के लिए कोईं एजेंडा सेट नहीं कर पाया है बल्कि सिर्प मोदी विरोध के बल पर ही कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने का सपना देख रहा है। यह सच है कि कांग्रेस नेतृत्व से नाराज नेता पार्टी के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करने के उद्देश्य से एवं कांग्रेस की विरोधी पार्टी में अपने भविष्य की उम्मीद से इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हों कितु कभी-कभी विरोधियों की सलाह पर भी विचार कर लेना लाभदायक साबित होता है। आखिर राहुल गांधी पर कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं यहां तक कि कांग्रेस की मित्र पार्टी नेताओं को भी इस बात पर हैरानी होती है कि जब देश में कोईं समस्या होती है अथवा पार्टी की जरूरत होती है तो राहुल विदेश यात्रा पर होते हैं। कांग्रेस ने अभी गत सप्ताह ही तो राजस्थान के उदयपुर में नवचिंतन शिविर लगाया था कितु उसने उन मुद्दों पर कोईं चिंतन करने की जरूरत ही नहीं समझी जिनकी वजह से कांग्रेस नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं।

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