नकारात्मकता से बचें राहुल
राहुल गांधी ब्रिटेन के एक थिंक टैंक ब्रिज इंडिया द्वारा आयोजित आइडियाज फॉर इंडिया सम्मेलन में अपने विचार रखने गए थे। इस सम्मेलन में सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, आरजेडी के तेजस्वी यादव और टीएमसी की महुआ मोइत्रा ने भी अपने विचार रखे। स्वाभाविक है कि आयोजक ने उन्हीं लोगों को विचार व्यक्त करने का अवसर दिया जिन्हें मौजूदा भारत सरकार से बेचैनी है। अच्छी बात है अपनी बात रखने का सभी को अधिकार है किन्तु राहुल के अतिरिक्त सभी वक्ताओं ने अपनी अभिव्यक्ति के दौरान लक्ष्मण रेखा का पालन किया। उनकी अभिव्यक्ति में असहमति के भाव तो दिखे किन्तु उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि कहीं उनके विचारों में भारतीयता एवं राष्ट्र के प्राति विरोध का अतिरेक न दिखे।
प्राधानमंत्री ने शुव््रावार को ही भाजपा कार्यंकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि आप सिर्प कोर इश्यू उठाएं यानि विकास की बात करें। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल राजनीतिक स्वार्थ के लिए तनाव की छोटीछोटी घटनाओं को ढूंढ-ढूंढकर समाज में जहर बो रहे हैं। राहुल गांधी विपक्ष के अन्य नेताओं की तरह अपने विचार नहीं व्यक्त करते। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पाटा (भाजपा) देश में ध्रुवीकरण करके चुनाव जीतती है, वह कोईं काम नहीं करती। उनकी इस बात को श्रोताओं ने कितना सराहा होगा, इसका स्पष्ट आकलन करना तो मुश्किल है किन्तु ध्रुवीकरण का आरोप तो कांग्रोस पाटा पर भी लगता है। क्या भारत जैसे बहुधमा एवं बहुभाषी विशाल देश में चुनाव सिर्प ध्रुवीकरण से जीते जा सकते हैं। सवाल तो यह है कि भाजपा को ध्रुवीकरण करने का अवसर देता कौन है? सच तो यह है कि 2014 में कांग्रोस अपने वुशासन की वजह से हारी और 2019 में भाजपा अपने विकास कार्यो से जीती।
चुनाव जीतने के लिए वोटरों का विश्वास जीतना जरूरी है। सिर्प सब गलत मैं सही बोलने से चुनाव नहीं जीता जा सकता। मेक इन इंडिया को हेट इंडिया कहकर क्या साबित करना चाहते हैं राहुल गांधी! कांग्रोस के वरिष्ठ नेता इसी बात से तो असहमत हैं राहुल से। वह चाहते हैं कि राहुल मोदी की नीतियों का विरोध करें किन्तु ऐसा वुछ न बोलें जिससे लगे कि वह राष्ट्र का अपमान कर रहे हैं।
राहुल गांधी कहते हैं कि देशभर में नफरत का केरोसिन पैला है सिर्प माचिस की तीली जलाने की जरूरत है। मतलब यह कि देश जलने को तैयार है। इससे पहले राहुल भारत की तुलना सीरिया से कर चुके हैं। इस भीषण जहरीले विचार से देश की जो छवि खराब होती है उसकी कल्पना शायद राहुल गांधी को नहीं होगी।
राहुल के एक और बहुमूल्य विचार हैं कि लद्दाख में हालत रूस और यूव््रोन के युद्ध जैसे हैं। लगता है कि कार्यंव््राम के श्रोता किसी दूसरे ग्राह से आए थे, जिन्हें पता ही नहीं कि इस वक्त भारत और चीन के बीच कहीं कोईं झड़प नहीं हो रही है और दोनों देश वार्ता कर रहे हैं। राहुल ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि पेंगांग झील पर चीन पुल बना रहा है। इसमें ऐसी कौन-सी बात हो गईं जो कांग्रोस नेता को भारत की कमजोरी दिखती है। सच है कि चीन पुल बना रहा है किन्तु वह अपने क्षेत्र में बना रहा है भारत के क्षेत्र में नहीं। खुद चीनी कम्युनिस्ट पाटा के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर कर चुके राहुल गांधी हमेशा यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि मौजूदा सरकार चीन के आव््रामक तेवर से डरती है। जबकि भारत में बिल्वुल विपरीत परिस्थिति है। भारत में चीन के 1962 की दादागिरी को लोग मानते ही नहीं। हमारे सैनिकों का हौसला इतना बढ़ा हुआ है कि वह चीन को नाकों चना चबाने के लिए बाध्य करने की स्थिति में हैं।
राहुल को लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था श्रीलंका जैसी है। उन्हें यह पता नहीं कि तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी आईंएमएफ सहित दुनिया की सारी रेटिंग एजेंसी भारत को आठ प्रातिशत विकास दर का अनुमान लगाए हैं जबकि चीन की पांच प्रातिशत। अमेरिका की हालत तो और भी खराब है। राहुल ने अपने विचारों से जो भी भारत विरोधी अभिव्यक्ति की उसका जवाब भाजपा की तरफ से आना स्वाभाविक था। भाजपा ने राहुल को मानसिक रोगी और नकारात्मकता से भरा व्यक्ति तक बता दिया है। बहरहाल राहुल को अपने विचार व्यक्त करते हुए मोदी विरोध और भारत विरोध में अंतर तो करना ही होगा।