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क्या फिर टूटेगी शिवसेना

👤 Veer Arjun | Updated on:23 Jun 2022 5:28 AM GMT

क्या फिर टूटेगी शिवसेना

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महाराष्ट्र से शुरू हुआ घमासान गुजरात के सूरत तक जा पहुंचा और अब भाजपा शासित राज्य असम के गुवाहाटी में पहुंच गया जहां जाते समय और गुवाहाटी में पहुंच कर भी शिवसेना के मंत्री और आटोरिक्शा चालक से चार बार विधायक रहे शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिदे ने स्पष्ट किया कि उन्होंने शिवसेना छोड़ी नहीं है और वही बाला साहेब ठाकरे के सच्चे शिवसैनिक हैं और बाला साहेब के हिन्दुत्व को वो आगे बढ़ाएंगे।

मगर समझ नहीं आता कि बाला साहेब के सच्चे शिवसैनिक मातोश्री को ही किसके इशारे पर कमजोर कर रहे हैं। ढाईं साल सत्ता में मंत्री पद पर रहने के बाद उद्धव ठाकरे पर क्यों दबाव डाल रहे हैं कि वो सिर्प एक शर्त पर वापस आएंगे जब भाजपा के साथ सरकार बनाने को उद्धव ठाकरे तैयार हों। उनका दावा है कि उनके पास सात निर्दलीय विधायक मिलाकर 4़6 विधायक का आंकड़ा है जो उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराने के लिए पर्यांप्त है क्योंकि भाजपा के 106 विधायक हैं। कोरोना पाजिटिव होने के बाद बेशक उद्धव ठाकरे की वीडियो कांप्रोंसिंग के माध्यम से विधायकों से मीटिग तो चल रही है, इसी बीच राज्यसभा में शिवसेना के नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र विधानसभा भंग होने के भी संकेत दिए हैं। एकनाथ शिदे से जब पूछा गया कि क्या ईंडी सीबीआईं जैसी एजेंसियों का भय भी उनके साथ जा रहे विधायकों को है तो उन्होंने कहा एजेंसियां अपना काम करती रही हैं।

हम बाला साहेब ठाकरे के हिन्दुत्व को नहीं छोड़ सकते परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वेंद्रीय एजेंसियों की भूमिका कितनी सक्रिय हो जाती है। शिवसेना को ऐसी स्थिति तक लाने में विधायक दामिनी जाधव की भूमिका है जो शिवसेना के यशवंत जाधव की पत्नी हैं। बीएमसी के सदस्य रहते उन्होंने काफी संपत्ति बनाईं यह बात भी सामने आईं थी और इनकम टैक्स के छापे भी पड़े और दूसरे प्राताप सरनाइक हैं जिनके खिलाफ ईंडी ने छापे मारकर कड़ी कार्रवाईं कर संपत्ति जब्त करने का नोटिस भी दिया था।

अत: कह सकते हैं, 'भय बिन होत न प्रीत।' भाजपा को तो वैसे भी महाविकास अघाड़ी (एमवीए) उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में जब से बनी है देवेंद्र फड़नवीस की आंखों में उनके खटक रही है। जब चाय पीने की तलब जोरों की हो और होंठों तक आते-आते चाय की प्याली जैसे हाथ से छूट कर गिर जाती है और सब तरफ बिखर जाती है तो चाय गिरने के साथ प्याली टूटने का मलाल भी बहुत होता है। वुछ ऐसा ही मलाल और कसक देवेंद्र फड़नवीस साहब को भी है क्योंकि दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली ही थी कि वुसा खिसक गईं और जिस अजीत पवार के दम पर सरकार बना रहे थे वो पुन: अपने वुनबे में लौट गए और शिवसेना, एनसीपी और कांग्रोस इन तीनों राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन गठित करके उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाकर सरकार बना ली।

उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री की ताजपोशी तो हो गईं मगर देवेंद्र फड़नवीस और भाजपा की आंखों में वह किरकिरी की तरह चूभते रहे और उनकी सरकार गिराने, कमजोर करने की भी कोशिश शुरू हो गईं। ढाईं सालों में उद्धव ठाकरे को नाकामयाब मुख्यमंत्री साबित करने के लिए इन सालों में कईं बार कोशिश की गईं। जिसमें सुशांत सिह राजपूत की आत्महत्या का मुद्दा खूब उठाया गया और नारकोटिक्स विभाग से लेकर इनकम टैक्स, ईंडी, सीबीआईं सभी सक्रिय हो गए। मगर महाराष्ट्र की सरकार सक्रियता और मजबूती से चलती रही, फिर शाहरुख खान के बेटे के ड्रग्स का केस उसमें भी वुछ हाथ नहीं लगा। अनिल देशमुख पर केस और नवाब मलिक को जेल सब वुछ हुआ। हां, मुंद्रा पोर्ट में ड्रग्स के मामले में चिल्लम चिल्ली करने वाला मीडिया बिल्वुल पतली गली से कट लिया और नारकोटिक्स विभाग का भी कोईं बयान नहीं आया।

अब उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने की एक बार फिर कोशिश बड़ पैमाने पर हो रही है और इस बार शिवसेना के विधायक एकनाथ शिदे को आगे किया गया है और शिवसेना के यह कद्दावर नेता जो पहले 22 और अब 46 विधायकों के साथ गुजरात के शहर सूरत में पांच सितारा होटल में फोन बंद करके बैठे हैं। उनको मनाने और बात करने के लिए उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के दो नेताओं मिलिद नाव्रेकर और रविन्द्र फाटक नेताओं को सूरत भेजा और उन्होंने अपने फोन से एकनाथ शिदे की बात उद्धव ठाकरे से करवाईं तो एकनाथ शिदे ने उद्धव ठाकरे से भाजपा के साथ सरकार बनाने की पेशकश रख दी। दस मिनट फोन पर बातचीत में उन्होंने उद्धव ठाकरे से कहा कि उन्होंने यह कदम पाटा की भलाईं के लिए उठाया है मगर उद्धव ठाकरे ने फिर भी कहा कि वो विचार कर वापस आ जाएं।

इधर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी सूरत में भाजपा के साथ नहीं जाएंगे, साथ ही उन्होंने कहा यह शिवसेना का अपना अंदरूनी मसला है जिसे उद्धव ठाकरे संभाल लेंगे। एकनाथ शिदे शिवसेना के कद्दावर नेता हैं और संगठन को मजबूत करने में उन्होंने बहुत योगदान दिया है। आटोचालक से चार बार विधायक बने अब तो इनका बेटा श्रीकांत शिदे भी कल्याण से सांसद हैं। मगर शिवसेना के विधायक दल के नेता के पद से हटाने के बाद एकनाथ शिदे ने अपना ट्विटर हैंडल से शिवसेना का नाम हटा दिया और कहा कि हम ही असली शिवसेना हैं और ट्वीट किया कि हम बाला साहेब के पक्के शिवसैनिक हैं और बाला साहेब ने हमें हिन्दुत्व सिखाया है। बाला साहेब के विचारों और धर्मवीर आनंद दीघे का जिक्र भी किया और लिखा कि उनकी शिक्षाओं के चलते हमने सत्ता के लिए कभी किसी को धोखा नहीं दिया और न कभी धोखा देंगे।

यह ट्वीट एक सच्चे शिवसैनिक का है मगर एकनाथ शिदे भाजपा के साथ सत्ता बनाने की उद्धव ठाकरे को क्यों सलाह दे रहे हैं कि वो भी ढाईं साल के बाद जबकि वो भलीभांति जानते हैं कि किन परिस्थितियों में भाजपा और शिवसेना का 25 वर्ष पुराना गठबंधन टूटा था। खैर! शिवसेना की पूरी कोशिश है कि एकनाथ शिदे की किसी भी तरह से वापसी हो जाए मगर क्या यह इतना आसान है कि वो गुजरात के शहर सूरत में हैं और सुबह पौ फटने से पहले ही उनको बागी विधायकों के साथ सूरत से असम भेजा गया। गुजरात पुलिस हवाईं अड्डे पर एकनाथ शिदे के साथ प्रात्येक विधायक को एस्कार्ट करती रही और पत्रकारों को पास भी नहीं फटकने दिया। राजनीति में आंकड़ों का बहुत महत्वपूर्ण रोल होता है और शिदे का कहना है कि उनके पास 4़6 विधायक हैं।

अब हमें यह घटनाक्रम याद दिलाता है जहां भाजपा सरकार नहीं बना पाती वहां किस तरह से गिराती है। वर्ष 2020 में ज्योतिरादित्य भी इसी तरह 21 विधायकों को लेकर निकले थे और इसके बाद भाजपा के खेमे में दिखे और मध्य प्रादेश में कमलनाथ (कांग्रेस) की सरकार गिरा दी। वर्ष 2015 में अरुणाचल प्रादेश की सरकार गिरी। 2016 में उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार फिर 2019 में कर्नाटक में कांग्रोस और जेडीएस की सरकार गिराईं गईं। इन सब में एक कामन पैक्टर है जहां-जहां भी सरकारें गिरी वहां बनी भाजपा की सरकार। तृणमूल कांग्रोस को भी तोड़ने की कोशिश की गईं मुवुल राय को चुनावों से पहले अपने खेमे में लेकर सारे भ्रष्टचार के आरोप भी खत्म कर दिए लेकिन वो चुनाव के बाद वापस अपने वुनबे में चले गए। अब देखना है कि एकनाथ शिदे वापस आते हैं या अपने ट्वीट के उलट चलते हैं।

शिवसेना में अगर टूट पड़ती है जो साफ दिखाईं भी दे रही है तो यह कोईं नईं बात नहीं है। पहले भी शिवसेना में तीन बार टूट पड़ चुकी है जो बाला साहेब ठाकरे के जिदा रहते ही पड़ी थी। पहले छगन भुजबल, फिर नारायण राणे और राज ठाकरे पाटा से अलग होकर अपने-अपने विधायकों के साथ निकल गए थे। इस तरह की टूट राजनीतिक पार्टियों में होना कोईं नईं बात नहीं है मगर लोकतंत्र में भय या लालच में पार्टियों का टूटना न देशहित में है न नेताओं के हित में। (सीकि)

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