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गडकरी को हटाने के पीछे?

👤 Veer Arjun | Updated on:23 Aug 2022 4:49 AM GMT

गडकरी को हटाने के पीछे?

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—अनिल नरेन्द्र

भाजपा की सर्वोच्च नीति-निर्धारक संस्था केंद्रीय संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी का बाहर होना भाजपा की भावी रणनीति से जुड़ा लगता है। यह पैसला पार्टी के अंदरूनी घटनाक्रम को भी प्राभावित करने वाला है। नया घटनाक्रम पार्टी के भीतर उनके राजनीतिक वजूद व रसूख को तो प्राभावित करेगा ही, साथ ही उनकी चुनावी राजनीति पर भी असर डालेगा। महाराष्ट्र की राजनीति से 2009 में भाजपा अध्यक्ष बनकर राष्ट्रीय फलक पर उभरे नितिन गडकरी अब भाजपा के वेंद्रीय संगठन में अहम भूमिका से बाहर हैं। वह वेंद्र सरकार में मंत्री हैं और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यंकारिणी के भी सदस्य तो हैं लेकिन वेंद्रीय संसदीय बोर्ड और वेंद्रीय चुनाव समिति से बाहर रहेंगे। इससे पार्टी के भीतर उनका कद प्राभावित होना लाजिमी है।

गडकरी अपने बयानों को लेकर अकसर चर्चा में रहे और राजनीति को लेकर उनकी अपनी अलग सोच भी जगजाहिर होती रही है। मैंने इसी कॉलम में उनका एक ताजा बयान बताया था। उन्होंने एक कार्यंव््राम में मौजूदा राजनीति पर सवाल खड़े किए थे और संकेत भी दिया था कि अब राजनीति उनके लिए बहुत ज्यादा रुचि नहीं रखती।

अपनी शैली के कारण कईं बार वह सबके साथ समन्वय बनाने में सफल भी नहीं रहे। मोदी सरकार में वेंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी भूमिका की सबसे ज्यादा सराहना हो रही है। देशभर में पैले राष्ट्रीय राजमार्गो के जाल को लेकर उनकी तारीफ उनके सियासी विरोधी भी करने से कतराते नहीं हैं। लेकिन पार्टी के अंदरूनी समीकरणों में उनकी दिक्कतें बनी रहीं। अपने बेलोस अंदाज से भी वह विवादों में भी रहे हैं। उनके वुछ समर्थक तो यहां तक कहने से कतराते नहीं कि मोदी जी का अगर कोईं विकल्प हो सकता है तो उसमें नितिन गडकरी का नाम भी है। वेंद्रीय नेतृत्व ने नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड और वेंद्रीय चुनाव समिति में शामिल नहीं कर एक बड़ा संदेश दिया है कि पार्टी के बजाय विचारधारा पर वेंद्रित है। इसके विस्तार में जो भी जरूरी होगा वह किया जाएगा।

इसके पहले पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल गठित कर वरिष्ठ नेता लाल वृष्ण आडवाणी और डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी जैसे विद्वान को, पार्टी की सक्रिय राजनीति से अलग कर उसमें शामिल किया था। महाराष्ट्र की राजनीति में भी इस कदम का असर पड़ सकता है। पार्टी में गडकरी की जगह उनके ही गृह नगर से आने वाले देवेंद्र फड़नवीस को आगे करके गडकरी के कद को छोटा किया जा रहा है। हालांकि नितिन गडकरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी करीबी हैं पर मोदी-शाह की जोड़ी के सामने उनकी भी एक नहीं चली। यह भी दबे लफ्जों में कहा जा रहा है कि गडकरी की सेहत अब बहुत अच्छी नहीं है। हाल ही में एक कार्यंक्रम में वह बेहोश हो गए थे। कारण जो भी रहा हो यह दुख की बात है कि एक अत्यंत सफल मंत्री जिनके काम की सभी सराहना करते हैं क्यों यूं बेइज्जत किया जाए?

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