अनिश्चितता में सोरेन सरकार
झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि भारतीय चुनाव आयोग ने खनन पट्टा मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराने संबंधी जो रिपोर्ट राज्यपाल रमेश बैस को भेजी है उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कब तक के लिए अयोग्य ठहराया गया है। यदि अयोग्यता की कोईं अवधि निर्धारित नहीं है तो मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर पुन: हेमंत शपथ ले सकते हैं किन्तु यदि अयोग्यता की समयावधि का उल्लेख होगा तो किसी अन्य को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाना अनिवार्यं होगा। लेकिन मुख्यमंत्री अपने गठबंधन के विधायकों के साथ रांची से बाहर लतरातू चले गए और वहां से पिकनिक मनाकर वापस आ गए। मजे की बात तो यह है कि झारखंड में अपनी सरकार होने के बावजूद हेमंत सोरेन को अपने गठबंधन के विधायकों को बचाने के लिए दूसरे राज्य में जाने की जरूरत पड़ी। प्राय: विपक्षी पार्टियां अपने विधायकों को बचाने के लिए उन्हें अन्यत्र ले जाती हैं। लगता है कि हेमंत सोरेन को महाराष्ट्र की घटना के बाद इस बात का डर है कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के कारण विधायक टूट न जाएं।
हैरानी की बात है कि हेमंत सोरेन राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाले व्यक्ति हैं और राज्य के ही एक पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा आज भी भ्रष्टाचार के आरोप में सजा भुगत रहे हैं। फिर भी उन्होंने जिस तरह से मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए खनन पट्टा हासिल किया उससे दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली यह कि राजनेताओं को नियम-कानून के उल्लंघन के परिणामों की कोईं परवाह नहीं होती और दूसरी यह कि उन्हें पैसों की इतनी भूख होती है कि वह नियम-कानून की कोईं परवाह ही नहीं करते।
झारखंड में खनन विभाग की सचिव पूजा सिघल के घर की तलाशी के बाद मिले करोड़ों रुपए और उनकी तमाम भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने की घटना से यह स्पष्ट हो गया था कि बिना सरकार के आशीर्वाद के वह इतना बड़ा घोटाला नहीं कर सकती थीं। अभी दो दिन पहले ही सरकार में दलाली के लिए वुख्यात प्रोम प्राकाश की गिरफ्तारी और उनकी संलिप्तता ने भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चिन्ता बढ़ा दी है। जांच एजेंसियों की मानें तो झारखंड में इस वक्त खनन का अवैध कारोबार सरकार की मदद से चल रहा है। यदि हेमंत सोरेन के खिलाफ जांच एजेंसियों ने प्राथमिकी दर्ज करके आरोप पत्र दाखिल किया तब तो उनका दोबारा तत्काल मुख्यमंत्री बन पाना मुश्किल होगा। किन्तु सरकार के पास बहुमत की कोईं कमी नहीं है, गिरने की कोईं आशंका नहीं है।
आर्यं की बात तो यह है कि राजनेताओं को भ्रष्टाचार पर अदालतों, वेंद्रीय जांच एजेंसियों और प्रादेशिक जांच एजेंसियों का कोईं डर नहीं है। आए दिन लोग ऐतराज करते हैं कि सीबीआईं और ईंडी राजनेताओं, उनके परिजनों तथा अफसरशाहों के ठिकानों पर छापा मारती है।
सवाल यह है कि जब जांच एजेंसियां और अदालतें भ्रष्टाचार के खिलाफ इतनी सक्रियतापूर्वक सख्त हैं तब तो यह हाल है और जब सक्रिय एवं सख्त न होतीं तो क्या हाल होता! (एसपी)