Home » हरियाणा » उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को किया पुरस्कृत

उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को किया पुरस्कृत

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:8 March 2018 1:56 PM GMT
Share Post

सोनीपत (राजेश आहूजा) दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,मुरथल की प्रथम महिला इंजीनियर श्रीमती रजनी अनायत ने कहा कि वैदिक काल में नारी सभी कार्य करने में समर्थ व सक्षम थी। यजुर्वेद के 22 वें अध्याय के 22 वां मंत्र राष्ट्रीय प्रार्थना के नाम से विख्यात है। इस मंत्र में कहा गया है कि -पुरन्धिर्योषा आ जायताम् , अर्थात् नारी ही राष्ट्र के जीवन का सुदृढ आधार है।

श्रीमती अनायत वीरवार को विश्वविद्यालय के सरस्वती पुस्तकालय में अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर बतौर मुख्यातिथि के तौर पर संबोधित कर रही थी। इस अवसर पर उत्कृष्ट कार्य करने वाली तीन महिलाओं को प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि नारी शब्द की व्युत्पत्ति नृ धातु से हुई है। ऋग्वेद में नृ धातु का प्रयोग नेतृत्व के रूप में हुआ है। ऋग्वेद में स्त्राr को ब्रह्मा भी कहा गया है- स्त्राr हि ब्रह्मा बभूविथ। इसका अभिप्राय यह है कि वह बालकों को शिक्षण देने के अतिरिक्त यज्ञ में भी ब्रह्मा का स्थान ग्रहण कर सकती है और विभिन्न संस्कारों को करा सकती है।
श्रीमती अनायत ने कहा कि महाभारत काल में पिता कन्या के जन्म को कष्टकारी नहीं मानते थे। पुत्र एवं कन्याओं में बहुत अन्तर नहीं माना जाता था। -यथैवात्मा तथा पुत्र पुत्रेण दुहिता समा। इस काल की नारियों में शकुन्तला, सावित्री, शिवा,विदुल गौतमी, अरूधन्ती आदि जितनी भी नारियां हैं, ये सभी विदुषी थी। इन्होंनें शास्त्रज्ञान के साथ- साथ धर्म व राजनीति की भी शिक्षा ग्रहण कर रखी थी। महाभारत काल में नारी को बहुत प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि - अर्द्ध भार्या मनुष्यस्य भार्या श्रेष्ठतम सखा। भार्या मूलं त्रिवर्गस्य भार्या मूलं तरिष्यत। इसका अभिप्राय है कि भार्या ही मनुष्य का आधा अंग है, श्रेष्ठ सखी है, धर्म अर्थ एवं काम ये तीनों भार्या के अधीन है, हर कार्य में भार्या पुरूष के सहायिका है।
उन्होंने कहा कि शास्त्राsं में कहा है कि- शुद्धाः पूताः पोषिता यज्ञिया इमाः । अर्थात् स्त्रियां शुद्ध हैं पवित्र हैं पूजनीय है और यज्ञ में पुरूष की अर्द्धाङ्गिनी है। पत्नी शब्द की व्युत्पति भी यज्ञ में साथ होने के कारण मानी जाती है- आचार्य पाणिनी ने -पत्युर्नो यज्ञ संयोग़े सुत्र द्वारा इसकी पुष्टि की है। इसके बिना यज्ञ अपूर्ण है।
कुलपति प्रो. राजेंद्र अनायत ने का कि इस वैदिक आधार पर स्मृतियों में भी नारी का महत्व प्रतिपादित करते हुए लिखा है-पूनीया महा भागाः पुण्याश्च गृहदीप्रय। स्त्रिय श्रियगृहस्योक्तास्तस्माद् रक्ष्या।। महर्षि मनु के इस श्लोक का स्पष्ट अभिप्राय है कि स्त्रियाँ पूजीय हैं, भाग्यशालिनी हैं, पवित्र हैं, घर का प्रकाश हैं, गृह लक्ष्मी हैं, अत उनकी रक्षा विशेष प्रयतन से करनी योग्य है। उन्होंने कहा कि नारी के महत्व को अन्य श्लोक द्वारा मुख्यत इस प्रकार से घोषित किया गया है। उपाध्यायदशाचार्य, आचार्यणां शतं पिता। सहस्त्रं तु पितृमाता,गौरवेणातिरिच्यते।। अर्थात् दश उपाध्यायों के बराबर आचार्य है, और सौ आचार्यों के बराबर पिता है, तथा एक सहस्र पिताओं से अधिक माता है अत सिद्ध है कि माता या नारी का महत्व सर्वाधिक है।
कुलपति प्रो. अनायत ने इस अवसर पर घोषणा करते हुए कहा कि महिला दिवस पर अपने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली छात्राओं को भी अगले वर्ष प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो.एस.के.गर्ग ने अपने संबोधन में कहा कि जहां नारियों की पूजा होती है, वहां पर आध्यात्मिक , सामाजिक और आर्थिक उन्नति होती है तथा सर्वोच्च जीवन मूल्यों का विकास होता है। विश्वविद्यालय की महिला सैल की प्रमुख प्रो. रेखा ने राष्ट्र के निर्माण में वर्तमान समय में महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर प्रो. प्रतिभा चौधरी ने वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक नारी की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में बताया। मंच संचालन एसोसिएट प्रो. सुमन सांगवान ने किया। इस अवसर पर श्रीमती अनायत ने बरखा, प्रियंका व असिस्टेंट प्रो. ममता भगत को उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रमाण पत्र व स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्पाम के अंत में महिला सैल की प्रमुख प्रो. रेखा ने श्रीमती रजनी अनायात को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

Share it
Top