पाकृतिक संसाधनों के संरक्षण से ही पाकृतिक आपदाओं के जोखिम का पबंधन संभव है : डा. बलदेव सेतिया
कुरुक्षेत्र, (राजकुमार वालिया)। राष्ट^ाrय पौद्योगिकी संस्थान (निट) कुरूक्षेत्र के सिविल विभाग के पो. बलदेव सेतिया ने कहा कि क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा इन सभी पाकृतिक संसाधनों के संरक्षण से ही पाकृतिक आपदाओं के जोखिम का पबंधन संभव है। इनके संतुलित पयोग एवं उपयोग से मानव जाति को बचाया जा सकता है। लगभग 6 हजार वर्ष पहले से मानव को इन पांच पाकृतिक संसाधनों की जानकारी है, पंरतु इनके समुचित पयोग न होने से ही मानव को पाकृतिक आपदाओं के पकोप को सहन करना पडक्वता है। नदियों को आपस में जोडनक्वे एवं भूमिगत जलस्तर को रिर्चाज करने से बाढ के समय में जो जल व्यर्थ बहकर चला जाता है उसका सद्उपयोग कर आपदा के बाढक्व एवं सूखे जैसी भयंकर आपदा को रोका जा सकता है। वे निट में सिविल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा आयोजित `आपदा जोखिम पबंधन' विषय पर चल रहे साप्ताहिक पशिक्षण शिविर के दौरान बोल रहे थे। कार्यत्रढम के दौरान कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के भौगोलिक विभाग के पोफेसर डा. ओमवीर सिंह ने मृदाक्षरण (स्वाईल इरोजन) एवं सेडीमेन्ट ट्रांसपोर्ट पर बल देते हुए इनके संरक्षण के बारे में पतिभागियों को आगह किया कि इस पाकृतिक क्षरण को रोकना होगा। सिविल इंजीनियरिंग विभाग के पो. डा. एस.एम. गुप्ता ने भूकंम्परोधी संरचना के डिजाईन एवं निर्माण विषय पर अपने वक्पव्य में नवीनतम भारतीय मानक संस्थान द्वारा पकाशित कोड का विस्तार से विशलेषण करते हुए कहा कि इनके समुचित पयोग से भूकंप अवरोधी भवनों, पुलो एवं अन्य व्यापारिक, औद्योगिक भवनों के भूकंप अवरोधी निर्माण किए जा सकते है। कार्यत्रढम के संयोजक पो. एच.के. शर्मा ने विशिष्ट वक्पाओं एवं पतिभागियों के बीच-विचार विमर्श एवं विस्तृत चर्चा पर जोर देते हुए कहा कि इस पकार के पशिक्षण कार्यत्रढमों से जानकारियों के आदान पदान व उसके उचित पयोग में सहायता मिलती है। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी संस्थान में इस तरह के कार्यत्रढमों का आयोजन किया जाता रहा है।