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धूम्रपान नहीं करने वाली महिलाओं में भी बढ़ रहे कैंसर के मामले

👤 manish kumar | Updated on:18 Sep 2019 8:11 AM GMT

धूम्रपान नहीं करने वाली महिलाओं में भी बढ़ रहे कैंसर के मामले

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भोपाल । भारत में हर साल फेफड़े के कैंसर के 67 हजार नए मामले सामने आते हैं। काफी लंबे समय तक ऐसा माना जाता रहा था कि फेफड़ों का कैंसर सिर्फ उन पुरूषों को ही अपना शिकार बनाता है जो धूम्रपान करते हैं या धूम्रपान किया करते थे, लेकिन अब नए अध्ययनों से ऐसे संकेत भी मिले हैं कि धूम्रपान नहीं करने वाले भी कैंसर के मरीज़ बन सकते हैं और यह भी कि कुछ तरह के लंग कैंसर युवाओं, धूम्रपान नहीं करने वालों और महिलाओं में ज्यादा आम हैं।

रोग निदान तथा उपचार में बारे में भोपाल जवाहर लाल नेहरू कैंसर हास्पिटल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के डीएम डॉ. प्रतीक तिवारी का कहना है कि 10 से 15 प्रतिशत मरीज़ धूम्रपान नहीं करते हैं फिर भी फेफड़ों के कैंसर से प्रभावित होते हैं। इनमें से कई मरीज़ों के डीएनए में कुछ खास किस्म के बदलाव हुए हैं जिसके चलते वे टारगेटेड थेरेपी ले सकते हैं।

उन्‍होंने कहा कि टारगेटेड थेरेपी हमें लंग कैंसर के मरीज़ों के उपचार को पर्सनलाइज़ करने में मदद करती हैं। हमारे सामने ऐसे विकल्प पहले कभी नहीं थे। मुझे खुशी है कि टारगेटेड थेरेपी की मदद से हम लंग कैंसर के मरीज़ों का जीवन बचा पाने में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सफल हो रहे हैं।''

एक खास तरह का लंग कैंसर जिसे 'नान-स्माल सैल लंग कैंसर कहा जाता है, सभी तरह के लंग कैंसर के 85 प्रतिशत मामले पाए जाते हैं। ऐसे अधिकांश मामले देरी से पकड़ में आते हैं, क्योंकि शुरूआत में कोई लक्षण दिखायी नहीं देते या दिखते भी हैं तो उन्हें दूसरे इंफेक्‍शन समझा जाता है। यही वजह है कि ऐसे में इलाज करना काफी चुनौती पूर्ण बन जाता है।

2003 तक एडवांस एनएससीएलसी से पीड़ित मरीज़ों के उपचार के लिए एकमात्र उपलब्ध विकल्प कीमो थेरेपी ही था और इससे मरीज़ का जीवन 8 से 10 महीने तक बचाया जा सकता था, लेकिन हाल में इस क्षेत्र में हुई प्रगति ने एक और विकल्प उपलब्ध कराया है, यह है-टारगेटेड थेरेपी, जो मरीज़ों को कीमोथेरेपी की कमियों से उबारकर उनके जीवन में लगभग 45 महीने और जोड़ सकता है।

एक अनुमान के मुताबिक करीब 8 प्रतिशत भारतीय मरीज़ जो कि प्रायः धूम्रपान नहीं करते हैं, और जिनमें एनएससीएलसी का एक प्रकार पाया गया है, उनके शरीर में जीन में एक खास परिवर्तन देखा गया है। लंग कैंसर के इलाज में टारगेटेड थेरेपी किस प्रकार कारगर है, इसका बेहतरीन उदाहरण है यह । स्ज्ञ म्युटेशन। इस म्युटेशन की वजह से कोशिकाओं में असामान्य तरीके से बढ़त होने लगती है जो शरीर के दूसरे भागों तक भी फैल जाती है। एक खास तरह के डायग्नास्टिक टैस्ट के जरिए इस म्युटेशन की पहचान करने के बाद, टारगेटेड थेरेपी की मदद से ट्यूमर्स को संकुचित किया जा सकता है।

वैज्ञानिक शोधकार्यों के जरिए नए म्युटेशनों का पता लगाया जा रहा है और साथ ही, टारगेटेड थेरेपी की पूरी संभावनाओं का आकलन करने के लिए क्लीनिकल परीक्षण भी जारी हैं। मुझे उम्मीद है कि किसी दिन ओंकोलाजिस्ट इन म्युटेशनों के बारे में अधिक जानकारी हासिल कर मरीज़ के उपचार की पूरी प्रक्रिया को पर्सनलाइज़ करने के अधिक विकल्पों का पता लगा सकेंगे जिससे अधिकाधिक जिंदगियों को बचाया जा सकेगा।

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