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आखिर कहाँ गए वो सैनिक ?

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:12 Sep 2017 7:42 PM GMT

आखिर कहाँ गए वो सैनिक ?

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सन 1885 में आज के वियतनाम और तब के फ्रेंच इंडोचीन में एक आश्चर्यजनक घटना घटी। उस समय वियतनाम फ्रांसीसी कब्जे में था जिस कारण पूरे वियतनाम में फ्रांसीसी सैनिकों का जाल बिछा रहता था। एक दिन 600 फ्रांसीसी सैनिकों की एक टुकड़ी ने छावनी से सैगोन (अब हो ची मिन्ह नगर) नगर की तरफ कूच किया। यह टुकड़ी अभी मुश्किल से पन्द्रह मील का सफर ही तय किया होगा कि पता नहीं कैसे अचानक पूरी की पूरी सैन्य टुकड़ी कहीं गायब हो गयी, इसका किसी को पता ही नहीं चला। मजे की बात यह थी कि जिस राह से सैनिकों का यह दस्ता गुजर रहा था वहां से कुछ आम लोग भी गुजर रहे थे। इन लोगों ने देखा कि अचानक सैनिक लापता गये? धरती में समा गये या आसमान ने उन्हें जब्त कर लिया? किसी को कुछ नहीं पता चल पाया। लोग बस आश्चर्य से आंखें फाड़े देखते रह गये।
फ्रांसीसी सेना ने इन गायब हुए सैनिकों को ढूंढ़ने का खूब प्रयास किया। हर तरफ सैनिक दस्ते रवाना किए गये। पूरे इलाके को सील कर दिया गया। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। किसी भी सैनिक का कुछ भी पता नहीं चला। यहां तक कि उन 600 सैनिकों में से किसी का बाद में भी कभी कोई सुराग नहीं मिला। न ही उनका कोई हथियार आदि ही पाया गया। आज भी फ्रांस के सैन्य इतिहास में यह सबसे बड़ी अबूझ पहेली के रूप में घटना दर्ज है। इन गायब सैनिकों की जांच के लिए फ्रांस की सरकार और फ्रांस की सेना ने तमाम आयोग बनाये, तमाम जांच दल बिठाये, तमाम कार्यदल गठित किए, लेकिन नतीजा सब का शून्य रहा।
इसी तरह की एक घटना पिछली सदी के चैथे दशक में चीन में घटी थी। यह सन 1939 की बात है। 10 दिसंबर को अपराह्न दो और तीन बजे के बीच 3000 सैनिक दक्षिण चीन के नानकिन इलाके में देखे गये। लेकिन शाम करीबन पांच बजे जब उन सभी सैनिकों को दैनिक परेड में शामिल करने के लिए काल दी गयी, तो उनमें से कोई भी सैनिक नहीं आया। यह आश्चर्यजनक घटना थी। सैन्य अधिकारियों ने कुछ सैनिकों को भेजकर यह पता लगाने की कोशिश की आखिर एक पूरी बटालियन के सैनिक परेड के लिए क्यों नहीं आये? पता लगाने गये सैनिक उल्टे पांव लौटकर जो कुछ बताया, वह आश्चर्यजनक था। कुछ ही घंटों के भीतर न जाने कहां एक पूरी की पूरी बटालियन गायब हो गयी थी। कोई भी सैनिक नहीं मिला। लेकिन किसी भी सैनिक का कोई हथियार नहीं गायब हुआ था। उन सबके हथियार उनके बैरक में ही पड़े थे लेकिन सैनिक कोई नहीं था।
आखिर कहां गये वो सारे सैनिक? क्या किसी अदृश्य शक्ति ने उनका अपहरण कर लिया? क्या किसी अन्य ग्रह के लोग उन्हें अपने साथ ले गये? आज तक यह सवाल अनसुलझा है।
हालांकि विज्ञान इन बातों को पूरी तरह से नहीं मानता लेकिन पराशक्तियों पर विश्वास करने वाले दुनिया के एक बहुत बड़े वर्ग की ऐसी धारणा है कि अचानक धरती से गायब हो जाने वाली चीजों और लोगों के पीछे अज्ञात लोक के प्राणियों का हाथ है। धरती से लोगों के अचानक गायब हो जाने के विषय में जे.एच. ब्रेनन ने एक महत्वपूर्ण किताब लिखी है- 'द अल्टीमेट एल्सव्हेयर'। जिसमें ऐसी तमाम चीजों और घटनाओं का वर्णन किया गया है जो कभी दुनिया में मौजूद थीं और अचानक रहस्यमय ढंग से गायब हो गयीं। ब्रेनन ने यह किताब कपोलकल्पित आधार पर नहीं लिखी। उन्होंने इसके लिए एक नायाब तरीका अपनाया। हिटलर के संबंध में सबसे विवादास्पद पुस्तक लिखने वाले जे.एच. ब्रेनन ने दुनिया भर की तमाम पुलिस फाइलों के भारी-भरकम दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया और उनसे ऐसे मामलों को निकाला जिनमें लोग सामूहिक रूप से बिना कोई सूत्र संकेत छोड़े लापता हो गये हों। कुछ ऐसे लोगों के बारे में भी उन्होंने तथ्य इकट्ठे किए जो लोग यकायक किसी दिन अकेले गायब हो गये और फिर उनके बारे में कभी भी कोई दूर-दूर तक सूत्र हासिल नहीं हुआ। सालों तक इस संदर्भ में काम करने के बाद ब्रेनन एक ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे जिस पर शायद बहुत से लोग यकीन न करें। ब्रेनन का मानना है कि इस धरती के परे कोई ऐसा अदृश्य लोक जरूर है जहां के प्राणी कभी-कभार धरती पर आते हैं और यहां उत्पात मचाकर वापस चले जाते हैं। ब्रेनन की धारणा के मुताबिक, कुछ ऐसे परलोकवासी हैं जो धरती के लोगों का कभी समूह में तो कभी अकेले में अपहरण कर लेते हैं और इन अपहरणों के जरिए अपने पीछे विस्मय और रहस्य की एक ऐसी कहानी छोड़ जाते हैं जिसका आज तक कोई जवाब किसी को ढूंढ़े नहीं मिला। ब्रेनन मुताबिक ऐसा एक प्राणी सन 1828 में धरती में आया भी था। माना जाता है कि सन 1828 की एक शाम को जर्मनी के न्यूरेनबर्ग शहर की सड़क पर एक युवक बदहवासी की हालत में पाया गया। उसके पांव सूजे हुए थे। प्रकाश के कारण उसकी आंखें चैंधिया रही थीं। उसे यह नहीं पता था कि वह कहां है और कहां से आया है। उसे किसी अज्ञात भाषा के सिर्फ कुछ शब्द मालूम थे जिन्हें वह किसी रट्टू तोते की तरह किसी भी बात पर दुहरा देता था। जब इशारे से लोगों ने उससे पूछा कि क्या वह भूखा है? तो उसे इशारा तो समझ में आया मगर जब उसे खाने के तौर पर दूध और पानी दिये गये तो वह इन दोनों चीजों की पहचान नहीं कर सका। उन्हें अजीब निगाहों से देखता रहा और उनका कतई इस्तेमाल नहीं किया। जिस तरह से वह दूध और पानी को अजीब निगाहों से देख रहा था उससे लग रहा था कि उसने इससे पहले शायद इन दोनों चीजों को पहले कभी नहीं देखा था। हालांकि खाना उसने सामान्य मनुष्य से कहीं अधिक खाया। लेकिन उसके खाना खाने का ढंग भी बड़ा अजीब था। उसने निवालों के रूप में नहीं बल्कि जानवरों की तरह एक साथ मुंह चलाते हुए खाना खाया। जे.एच. ब्रेनन का मानना है कि वह व्यक्ति किसी ऐसे ही रहस्यलोक का बाशिंदा था जहां के बारे में अंदाजा लगाया जाता है कि वहां से कुछ लोग आकर कभी-कभी धरती के कुछ लोगों का अपहरण कर ले जाते हैं। एक दिन यह युवक अचानक किसी अज्ञात व्यक्ति की गोली का शिकार हो गया और दुनिया उससे कुछ जान पाती उससे पहले ही इस दुनिया से कूच कर गया। ब्रेनन उसकी हत्या को लेकर भी आश्वस्त हैं कि उस व्यक्ति का हत्यारा उसी अज्ञात ग्रह का व्यक्ति था जिसने इस आशंका से उस व्यक्ति को निपटा दिया कि कहीं वह धरतीवासियों को कुछ बता न दे।

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