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आईपीएस राकेश मारिया उर्फ़ एक चलता फिरता पुलिस रिकार्ड रूम
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एनके अरोड़ा
दस्तावेजों और पुलिस पड़ताल प्रक्रिया को कलमबद्ध करने की ऐसी दीवानगी शायद ही कभी आपने कहीं देखी या सुनी हो,जूनून की इंतहां तक जो दीवानगी मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर राकेश मारिया में है | 36 साल की पुलिस सेवा से इसी साल 31 जनवरी को रिटायर हुए महाराष्ट्र कैडर के हाई प्रोफाइल पुलिस अफसर राकेश मारिया को उनके साथी पुलिसवाले चलता फिरता पुलिस रिकार्ड रूम कहते हैं | हालाँकि उन्हें 9 महीने रिटायर हुए हो चुके हैं लेकिन अब भी ऐसा शायद ही कोई दिन जाता हो जब वह किसी न किसी केस में दिन के कई घंटे तक उलझे न दीखते हों | अगर वह शहर यानी मुंबई में होते हैं तो या तो उनके कई घंटे पुलिस मुख्यालय में कटते हैं या दिन का उनका ज्यादातर समय मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अफसर ले जाते हैं,जो उनके घर में विभिन्न मामलों पर विचार विमर्श करने के लिए या कहें ऐसे तमाम मामलों के उनके पर्शनल रिकार्ड से तथ्य खंगालने के लिए उनके घर में मौजूद होते हैं |
वह मजाक में कहते भी हैं सरकार ने मुझे सिर्फ तनख्वाह देना बंद किया है ड्यूटी में तो मैं अब भी 24 घंटे रहता हूँ | दरअसल उन्हें रिटायर होने के बाद भी 24 घंटे ड्यूटी में उनकी तीन दर्ज़न से ज्यादा वो डायरियां रखती हैं, जिन्हें वह अपने 36 साल की पुलसिया नौकरी के दौरान हर रोज लिखते रहे हैं | चूँकि ये डायरियां महज उनकी भावनाओं का पुलिंदा भर नहीं हैं बल्कि ये डायरियां पिछले तीन दशकों में हुए तमाम अपराधों का अनौपचारिक रूप से लिखित दस्तावेज हैं,इसलिए कदम-कदम पर ये तमाम मौजूदा मामलों को सुलझाने में कारगर होती हैं या इसके लिए रास्ता दिखाती हैं यही वजह है कि तमाम छोटे-बड़े पुलिसवाले इनकी मदद के लिए इनके घर का चक्कर लगाते रहते हैं |
चाहे 1993 के मुंबई बम धमाके का पहलू हो या इंडियन मुजाहिदीन आतंकी संगठन के बारे में किसी सवाल का जवाब ढूँढना हो अथवा 26/11 के आतंकी हमले की बारीकियां समझनी हों सब मामलों में इनकी डायरियां अंतिम और प्रमाणिक जुटाती हैं | इन डायरियों में निसंदेह उनकी कामयाबियों के किस्से हैं तो नाकामियाँ भी दर्ज हैं जैसे दर्जनों महत्वपूर्ण केस की जांच में नाम कमाने वाले राकेश मारिया के लिए शीना बोरा हत्याकांड की जांच में जरूरत से ज्यादा रुचि लेना किस तरह महंगा पड़ा कि उन्हें मुंबई पुलिस आयुक्त का अपना पद तक गंवाना पड़ा और आनन-फानन में डीजी होमगार्ड के नाम की वर्दी पहननी पड़ी | लेकिन कुछ भी हो न तो पुलिस कमिश्नर रहते हुए और न ही अब रिटायर होने के बाद भी कभी भी उनका अपनी इन डायरियों से मन नहीं भरा न ही उनके लिए इनका आकर्षण कम हुआ है |
हालाँकि यह बात सही है कि शीना बोरा काण्ड में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी दिखाने के कारण उनका होमगार्ड के डीजी के तौरपर रातोंरात तबादला कर दिया गया था | इस साल 31 जनवरी को अपने कार्यकाल के आखिरी दिन उन्होंने पत्रकारों के साथ बातचीत में इस सच्चाई को स्वीकार भी किया था | उन्होंने पत्रकारों द्वारा इस सम्बंध में पूछे जाने पर थोड़ा इमोशनल होते हुए कहा था कि अचानक हुए इस तबादले का उन्हें कोई दुःख नहीं था, दुःख इस बात का था कि तीन साल तक दबे रहे इतने महत्वपूर्ण केस का खुलासा करने वाले अफसरों को उनके काम का क्रेडिट नहीं मिला | बहरहाल इस मामले में भी उनकी डायरी बहुत काम आयी | आज इस मामले को आगे बढाने में उनकी डायरी का विवरण बहुत काम आ रहा है |
आखिर डायरी के पन्ने रंगने का शौक उन्हें कब और कैसे पड़ा ? इस पर वह कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही इसका शौक रहा है | उनके मुताब़िक वह अपने स्कूल डेज से ही डायरी लिख रहे हैं | यहाँ तक की अब तो यह सब लिखते-लिखते चार पांच दशक गुजर गए हैं और इसकी ऐसी बुरी आदत पड़ चुकी है कि जिस दिन डायरी नहीं लिखते लगता है वह दिन बीता ही नहीं कैलेंडर में ही कहीं अटका है | उनके मुताब़िक दैनिक डायरी लिखकर उन्हें परम संतोष और खुद की सार्थकता का एहसास होता है | आपके लिए जिंदगी भर लिखीं ये डायरियां आखिर क्या हैं ? इस सवाल के जवाब में मारिया कहते हैं कि उनके लिए उनकी लिखी डायरियां उनका धन-दौलत उनकी धरोहर आदि सब कुछ हैं | गौरतलब है कि उनकी इन डायरियों में अंडरवर्ल्ड के तमाम ऐसे किस्से मौजूद हैं जो किसी जासूसी उपन्यास से भी ज्यादा रोचक और रोमांचक हैं | उनकी इन डायरियों में मौजूद तमाम किस्सों पर ]िफल्में बन चुकी हैं | लेकिन कमिश्नर जैसे संवेदनशील पद पर रहते हुए उन्होंने फिल्मकारों को अपना नाम इस्तेमाल करने देने से परहेज रखा है | गौरतलब है कि राकेश मारिया की भविष्य की योजनाओं में कई किताबें लिखना शामिल है जिनका कच्चा माल ये डायरियां ही हैं |
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