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चौ. ब्रह्मप्रकाश : एक इतिहास पुरुष

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 Jun 2018 5:53 PM GMT

चौ. ब्रह्मप्रकाश : एक इतिहास पुरुष

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रामदत्त यादव

चौ. ब्रह्मप्रकाश को अपने समय का राजनीति में दिल्ली क्षेत्र का सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तित्व माना जाता है। वह दिल्ली प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे। अदम्य साहस, निर्भीकता, आत्म-दृढ़ता, सहिष्णुता, लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा, सिद्धांतों के लिए किसी से कोई समझौता नहीं आदि उनके व्यक्तित्व की ऐसी विशेषताएं थीं जिन्होंने उन्हें दिल्ली का अतुलनीय व्यक्ति बनाया था। ब्रह्मप्रकाश जी अपने नाम के अनुसार वास्तव में ब्रह्मप्रकाश ही थे।

राजनेता - राजनीति ब्रह्मप्रकाश जी का शक्ति और सत्ता का क्षेत्र था। सहकारिता उनका विश्वास क्षेत्र था, चिन्तन क्षेत्र था, संकल्प क्षेत्र था, कर्म क्षेत्र था, सेवा क्षेत्र था, निष्ठा क्षेत्र था। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारिता के दर्शन, विकास और संगठनात्मक रूप देने में उनकी जो भूमिका रही, उनका जो योगदान रहा, उसका मूल्यांकन कभी नहीं किया जा सकता। सहकारिता के क्षेत्र में उनके विविध कार्यकलाप थे। प्रारंभिक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक सहकारी क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप स्थापित की। चालीस वर्षों तक सहकारिता का उन्होंने मार्गदर्शन किया। वर्तमान में सहकारी दर्शन और ढांचे का विभिन्न स्तरों पर जो विकास हुआ, उसका श्रेय ब्रह्मप्रकाश जी को जाता है। सही मायने में वे सहकारिता के अंतर्राष्ट्रीय नेता थे।प्रारंभिक स्तर पर उन्होंने दिल्ली किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति, दिल्ली केंद्रीय सहकारी उपभोक्ता होल सेल स्टोर, दिल्ली राज्य सहकारी इंस्टीट्यूट (वर्तमान दिल्ली राज्य सहकारी संघ) का गठन किया। दिल्ली में सहकारिता के विकास के वह मुख्य सूत्रधार और प्रेरणास्रोत थे। प्रत्येक सहकारी संगठन के पीछे उन्हीं की पहल और सद्भावना रही है।

राष्ट्रीय स्तर पर योगदान- राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सहकारी कृषि विपणन संघ, राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ, राष्ट्रीय सहकारी आवास संघ, राष्ट्रीय सहकारी श्रम संघ, राष्ट्रीय सहकारी मत्स्य संघ, राष्ट्रीय सहकारी शहरी बैंक संघ, इफ्फको आदि के संगठन के वह प्रेरणामूर्ति रहे। इन संस्थाओं के संचालक मंडलों के सदस्य के रूप में वह उनके लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति-साधन थे।

लक्ष्य- ब्रह्मप्रकाश जी का सहकारिता को एक व्यापक जनआंदोलन बनाने का लक्ष्य था। जैसा पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि मैं भारत को सहकारिता से ओत-प्रोत करना चाहता हूं। ब्रह्मप्रकाश जी का भी वही लक्ष्य था। सहकारिता आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए, उसे लोकप्रिय बनाने के लिए, उसको ठीक दिशा में संचालित करने के लिए प्रत्येक स्तर पर नेतृत्व की आवश्यकता होती है, जनसमुदाय को जागरूक करने की आवश्यकता होती है।

अराजनैतिक आंदोलन- सहकारिता एक गैर राजनैतिक आंदोलन है। ब्रह्मप्रकाश जी यद्यपि उच्च कोटि के राजनेता थे परन्तु सहकारिता को वह राजनीति के प्रभाव से दूर रखने के पक्षधर थे। वह इस पर पुरजोर बल देते थे कि राजनीति को सहकारिता से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से न जोड़ा जाए। उनका कथन था कि सहकारिता के मंदिर में राजनीति का जूता बाहर उतार कर प्रवेश करो। इस सिद्धांत में दृढ़]िवश्वास और संकल्प के साथ वह विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के व्यक्तियों को साथ लेकर चलते थे, यद्यपि स्वयं वह कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं में से थे। आज सहकारिता के राजनीतिकरण की भयावह स्थिति के विषय में कहने की आवश्यकता नहीं है।भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ, भारत के सम्पूर्ण सहकारी आंदोलन की शीर्षस्थ संस्था को विश्व सम्मानित संस्था बनाने का श्रेय ब्रह्मप्रकाश जी को ही जाता है। इसे धरातल से उठाकर आकाश तक ले जाने के लिए इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय भूमिका- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका विशिष्ट स्थान था। वह इंटरनेशनल को-ऑपरेटिव एलायंस (आईसीए) जो सम्पूर्ण विश्व के सहकारी आंदोलन की सर्वोच्च संस्था है, उसकी सेंट्रल कमेटी के लंबे अरसे तक सदस्य रहे। इस रूप में उनका अंतर्राष्ट्रीय सहकारी क्षेत्र में योगदान भारत के लिए गौरव था। उस समय अमेरिका और तत्कालीन यूएसएसआर (रूस) के बीच शीतयुद्ध चल रहा था जो प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गैर सरकारी संस्थाओं में स्पष्ट दिखाई देता था, आईसीए भी उससे अछूता न था। ब्रह्मप्रकाश जी उन दोनों गुटों के बीच मध्यस्थ के रूप में थे क्योंकि उन्होंने दोनों गुटों का विश्वास प्राप्त कर लिया था।

कुशल प्रशासक- ब्रह्मप्रकाश जी एक कुशल प्रशासक थे, आज के प्रशासक वर्ग से नितांत भिन्न थे। एक कुशल प्रशासक उसे कहना अधिक उपयुक्त और न्यायसंगत होगा जिसके अधीनस्थ कर्मचारी और कार्यकर्ता भय के कारण कार्यरत न होकर उनके प्रति श्रद्धा, सम्मान और विश्वास से प्रेरित होकर अपनी आत्मनिष्ठा से लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कार्य करें। ब्रह्मप्रकाश जी ऐसे ही प्रशासक थे। वह अपने व्यवहार और कार्यशैली से अपने अधीनस्थ कार्यकर्ताओं और कर्मचारियों का मन जीत लेते थे। उनमें विश्वास और निष्ठा पैदा करते थे। इस कारण प्रत्येक कर्मचारी कार्य और कर्तव्य के प्रति समर्पित हो जाता था।

सहकारिता को अंतिम देन

ब्रह्मप्रकाश जी ने सहकारिता के ऊपर शनैः-शनैः सरकार के नियंत्रण को जकड़ते देखा, राज्यों में सहकारी अधिनियमों को अलोकतांत्रिक बनते देखा। राजनीतिकरण की प्रक्रिया में निर्वाचित प्रबंध मंडलों को भंग किया जाना देखा। सहकारी नीतियों के सिद्धांत को प्रतिकूल देखा और सहकारी नेतृत्व को उन्हें सहन करने की संवेदना को देखा। उन्होंने यह महसूस किया कि सहकारी ढांचे के बाहर से सहकारिताओं में बढ़ती विकृतियों के विरुद्ध आवाज उठाई जाए। उन्होंने सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ को-ऑपरेटिविज्म को अपनी प्रेरणा से सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अधीनस्थ श्री जीएल डोगा, सांसद की अध्यक्षता में अनुबंधित कराया। उस सेंटर के मंच से विकृतियों और संक्रमण के विरुद्ध आवाज उठाई और मांग की कि सहकारिता को सहकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए जिससे उसका वास्तविक स्वरूप निखरे और यह सशक्त जनआंदोलन बन सके।

अंतिम इच्छा- दुर्भाग्य से ब्रह्मप्रकाश जी अस्वस्थ हो गए। जब वह मृत्यु शैय्या पर थे तो तत्कालीन भारत के कृषि मंत्री डॉ. बलराम जाखड़ जब उन्हें देखने गए तब उन्होंने अपने गीले नेत्रों से मंत्री महोदय से अनुरोध किया कि आप ब्रह्मप्रकाश कमेटी की सिफारिशों को क्रियान्वित करें यह मेरी अंतिम इच्छा है। मंत्री महोदय ने उनसे सकारात्मक वादा किया। जाखड़ जी ने मल्टी-स्टेट्स को-ऑपरेटिव सोसाइटीज बिल को कमेटी की सिफारिशों के अनुसार तैयारा कराया किन्तु परिस्थितियों वश वह संसद में प्रस्तुत न किया जा सका। केंद्र में कई सरकारें आईं और चली गईं। कितने ही कृषि और सहकारिता मंत्री आए और चले गए सभी ने आश्वासन दिया। पर श्रेय वर्तमान वाजपेयी सरकार और कृषि मंत्री अजीत सिंह को मिलना था। गत छह मई को लोकसभा और 12 मई 2002 को राज्यसभा ने उस विधेयक को पारित कर उसे अधिनियम का रूप दे दिया। लगभग बारह वर्ष पश्चात ब्रह्मप्रकाश जी का संघर्ष फलित हुआ, उनका स्वप्न साकार हुआ और अंतिम इच्छा पूरी हुई।केंद्रीय सरकार ने सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने सहकारी अधिनियमों को ब्रह्मप्रकाश कमेटी द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार संशोधित व परिवर्तित करने का परामर्श दिया है। सिद्धांतत सभी राज्यों ने स्वीकृति दी है, कुछेक राज्यों ने अपने संबंधित अधिनियम संशोधित भी किए हैं कुछ अन्य राज्यों में हिचकिचाहट है। ब्रह्मप्रकाश कमेटी की मूल पहुंच है सदस्यों का सशक्तिकरण करना, सरकार के नियंत्रण से मुक्ति, सहकारी संस्थाओं के प्रबंधन में लोकतांत्रिक मूल्यों का स्थापन, सरकारी हस्तक्षेप का निषेध आदि। राज्याधिकारी अपनी सत्ता का हस्तांतरण सदस्यों को सहज कैसे दे सकते अत यथास्थिति बनाए रखने के लिए विविध तर्क देते। ब्रह्मप्रकाश ने जो प्रक्रिया प्रारंभ की उसे रोका नहीं जा सकता चाहे समय कितना ही लगे। सारांश में ब्रह्मप्रकाश जी का सहकारी व्यक्तित्व और योगदान अद्वितीय है। उन्हें सहकारिता के अमर व्यक्ति के रूप में सदैव स्मरण किया जाएगा। उनके व्यापक मूल्यांकन के लिए एक शोध ग्रंथ लिखना न्यायसंगत होगा।

(लेखक चौधरी ब्रह्मप्रकाश भूतपूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार मैमोरियल ट्रस्ट के महासचिव हैं)

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