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गहरा रिश्ता रहा है पत्रकार और साहित्यकार का

👤 Admin 1 | Updated on:17 May 2017 6:57 PM GMT

गहरा रिश्ता रहा है पत्रकार और साहित्यकार का

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साहित्य और पत्रकारिता के बीच अटूट रिश्ता रहा है। एक जमाना था जब इन दोनों को एकदूसरे का पर्याय समझा जाता था। ज्यादातर पत्रकार साहित्यकार थे और ज्यादातर साहित्यकार पत्रकार। मीडिया और साहित्य में गहरा संबंध है। एकदूसरे के बिना दोनों का काम चल नहीं सकता। सशक्त मीडिया ऐसी भूमि है जिस पर साहित्य का विशाल वटवृक्ष खड़ा हो सकता है। वास्तव में पत्रकारिता भी साहित्य की भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है। वह हमारे परिवेश में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है। सत्य और तथ्य को बेलाग उद्घाटित करना रचनाधर्मिता है। साहित्यकार और पत्रकार का रचनाधर्मिता का क्षेत्र अलगअलग होते हुए भी दोनों में चोलीदामन का साथ है। दोनों ही सम सामयिक समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी लेखनी के माध्यम से समाज हित में सामाजिक मूल्यों और सम्वेदनाओं को दृष्टि प्रदान करते हैं। रास्ते अलगअलग होते हुए भी दोनों की मंजिल एक है। दोनों ही संघर्ष पथ के राही के रूप में जीवन मूल्यों को प्रशस्त करते हुए दीनहीन की आवाज को बुलन्द करते हैं। शोषण विहीन समाज की स्थापना में दोनों का अहम योगदान है। साहित्य और पत्रकारिता ज्ञान के भण्डार हैं और समाज में जनजागरण का कार्य करते हैं। हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता हिन्दी साहित्य के विकास का अभिन्न अंग है। दोनों परस्पर एकदूसरे का दर्पण हैं। पत्रकारिता की विधा को भी साहित्य के अंतर्गत माना जाता है। बहुत से विचारकों ने पत्रकारिता को तात्कालिक साहित्य की संज्ञा भी दी है। विचार किया जाए तो समयसमय पर विभिन्न साहित्यकारों ने पत्रकारिता में अपना योगदान और पत्रकारों का मार्गदर्शन भी किया है।

पत्रकार और साहित्यकार वस्तुतः जनता के प्रतिनिधि होते हैं। वे जनता के सुखदुख की आवाज को अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्त कर समाज को सही राह दिखाते हैं। पत्रकार में लेखक, साहित्यकार, कवि और सम्पादक के सभी गुण समाहित होते हैं। कहने का तात्पर्य है जो व्यक्ति समाज हित में समाजोपयोगी साहित्य का सृजन, निर्माण और विकास करता है वही साहित्यकार और पत्रकार कहलाता है। साहित्यकार और पत्रकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पत्रकार का कार्य है समाज में घटित होने वाली सभी अच्छी बुरी घटनाओं को ज्यों का त्यों समाज के समक्ष परोसना। यदि पत्रकार इन घटनाओं के समाचारों को विश्लेषित कर उसे समाजोपयोगी बनाता है तो वह निश्चय ही साहित्य का सृजन कर रहा है। साहित्यकार अपनी रचनाओं को शाश्वत मूल्यों के साथ गद्यपद्य विधाओं में सृजित करता है और फिर उसे प्रकाशन का रूप देता है। यह प्रकाशन समाचार पत्रों में क्रमिक रूप से होता रहता है। फिर उसे पुस्तकाकार का रूप देने का प्रयास करता है।

साहित्यकार अपनी रचनाओं का सोचसमझ कर सृजन करता है। इसके लिए उसके पास काफी समय होता है। इस समय का सदुपयोग वह अपने साहित्य को समाज हित में बेहतर और उपयोगी बनाता है। वहीं पत्रकार अपना रचना कार्य दैनन्दिनी रूप में करता है। वह अपने कार्य को समाचार पत्र के माध्यम से स्वरूप प्रदान करता है। एक सफल पत्रकार त्वरित रूप से घटनाओं का ब्यौरा तैयार करता है, क्योंकि उसे अपने समाचार पत्र के अगले अंक में प्रकाशन के लिए आकार देना होता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि एक पत्रकार में साहित्यकार, लेखक और रचनाकर्मी के सभी गुण समाहित होते हैं।

आजादी के आन्दोलन में पत्रकार और साहित्यकार समानधर्मी होते थे। महात्मा गांधी ने अहिंसक क्रांति के जरिये भारत को आजादी दिलाने के आंदोलन का नेतृत्व किया था। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपतराय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महावीर प्रसाद द्विवेदी, वियोगी हरि और डॉ. राम मनोहर लोहिया स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ पत्रकार और लेखक के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी लेखनी के जरिये देशवासियों में आजादी के आंदोलन का जज्बा जगाया था। आजादी के बाद हिन्दुस्तान, धर्मयुग, दिनमान, सारिका, कादम्बिनी, ब्लिटज, नंदन, पराग, नवनीत, रविवार जैसी पत्रिकाओं ने पत्रकार के साथ साहित्य का झंडा बुलन्द रखा। धरातलीय कसौटी पर देखा जाये तो एक पत्रकार में रिपोर्टर, सम्पादक, लेखक, प्रूफ रीडर से लेकर समाचार पत्र वितरक या हॉकर तक के सभी गुण विद्यमान होते हैं। वह अपने हाथ से अपने समाचार पत्र में समाचारों के साथसाथ सम्पादकीय भी लिखता है और समयसमय पर सम सामयिक विषयों पर आलेख भी निर्मित करता है। आजादी के आंदोलन के दौरान पत्रकार और साहित्यकार में कोई अन्तर नहीं था। यह अवश्य कहा जा सकता है कि बहुत से साहित्यकार सिर्फ साहित्य सृजन तक ही सीमित रहते हैं। वे लेखक, कवि, कहानीकार और उपन्यासकार का दायित्व निभाते हैं। मगर एक पत्रकार में ये सभी गुण समाहित होते हैं। वह समयसमय पर अपनी लेखनी के माध्यम से कवि, कहानीकार और लेखक भी बन जाता है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक आदि को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।

आधुनिक भारत में भारतेन्दु, अज्ञेय, विधानिवास मिश्र, रघुवीर सहाय, कमलेश्वर, श्याम मनोहर जोशी, बाल कृष्ण राव, चन्द्रगुप्त विकालंकार, खुशवन्त सिंह, कुलदीप नैय्यर, डॉ. कन्हैया लाल नंदन और डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक आदि को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। इन्होंने लेखक और पत्रकार के श्रेष्ठ दायित्व का समान रूप से निर्वहन किया है। आज भी बहुत से पत्रकार साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं।

- बाल मुकुन्द ओझा

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