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जनता की बात को जनभाषा में ही रखते थे भवानी बाबू

👤 Admin 1 | Updated on:29 May 2017 5:21 PM GMT

जनता की बात को जनभाषा में ही रखते थे भवानी बाबू

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साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गांधीवादी हिंदी कवि भवानी प्रसाद मिश्र उन गिने चुने कवियों में थे जो कविता को ही अपना धर्म मानते थे और आमजनों की बात उनकी भाषा में ही रखते थे। ऐसी राय रखने वाले कवि और गीतकार धनंजय सिंह कहते हैं कि भवानी दादा गूढ़ बातों को बहुत ही आसानी और सरलता के साथ अपनी कविताओें में रखते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यापिका अल्पना मिश्र कहती हैं कि नई कविताओं में भवानी प्रसाद मिश्र का काफी योगदान है। उनका सादगी भरा शिल्प अब भी नये कवियों के लिए चुनौती और प्रेरणास्रोत है। अल्पना मिश्र ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र जनता की बात को जनभाषा में ही रखते थे। उन्होंने कहा कि गांधीवादी भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं में नये भारत का स्वप्न झलकता है। उनकी कविताएं परिवर्तन और सुधार की अभिव्यक्ति हैं। सिंह ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र आपातकाल में विरोध में खड़े हो गए और वह विरोध स्वरूप प्रतिदिन तीन कविताएं लिखते थे। उन्होंने उन्हें कवियों का कवि बताया।


मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिले के टिगरिया गांव में 29 मार्च, 1913 को जन्मे भवानी प्रसाद मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा क्रमशः सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में हुई। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत विषय लेकर बीए किया। गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने एक स्कूल खोला। उसी स्कूल को चलाते हुए वह 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए। बाद में वह 1945 में रिहा हुए। उसी वर्ष वह बतौर शिक्षक महिलाश्रम वर्धा चले गए और वहीं वह पांच साल तक रहे।



भवानी प्रसाद मिश्र की काव्य रचना लगभग 1930 में ही शुरू हो गयी थी। उनकी कुछ कविताएं उनके हाईस्कूल पास करने से पहले ही पंडित ईश्वरी प्रसाद वर्मा के संपादन में निकलने वाली पत्रिका हिंदूपंच में प्रकाशित हो चुकी थीं। वह 1932−33 में माखन लाल चतुर्वेदी के संपर्क में आए और चतुर्वेदी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका कर्मवीर में उनकी कविताएं प्रकाशित हुईं। भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएं हंस में प्रकाशित हुईं। बाद में फिर अज्ञेय ने दूसरे सप्तक में उन्हें प्रकाशित किया। दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद उनकी कविताओं का प्रकाशन ज्यादा नियमित हो गया। उन्होंने चित्रपट के लिए संवाद लिखे और मद्रास के एमबीएम में संवाद निर्देशन भी किया। मद्रास से वह बंबई आकाशवाणी के प्रोड्यूसर होकर गए। उन्होंने आकाशवाणी केंद्र दिल्ली में भी अपनी सेवा दी।


कविता संग्रहगीत फरोश, चकित है दुख, गांधी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल संध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, मानसरोवर आदि, बच्चों के लिए तुकों के खेल, संस्मरण जिन्होंने मुझे रचा, निबंध संग्रह नीति कुछ राजनीति आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। उन्हें 1972 में 'बुनी हुई रस्सी' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। वह उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के संस्थान सम्मान से सम्मानित हुए। उन्हें 1983 में मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। बीस फरवरी, 1985 को उनका निधन हो गया।

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