मध्यप्रदेश विधानसभा शीतकालीन सत्र को हंगामेदार बनाने की तैयारी में भाजपा
भोपाल । मध्यप्रदेश की सत्ता में लगातार 15 सालों तक रहने के बाद बाहर हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब कांग्रेस सरकार के खिलाफ कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहती। आगामी शीतकालीन सत्र में जनता विरोधी कुछ भी ऐसा नहीं रहना चाहिए जिसकी चर्चा सदन में ना गूंज सके, इसलिए भाजपा विधायक अपनी जोरों से तैयारी रखे, इस तरह के निर्देश इन दिनों भाजपा के विधायकों को पार्टी हाइकमान और अपने वरिष्ठ नेताओं की ओर से दिए जा रहे हैं।
दरअसल मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव का हालिया पत्र सामने आया है, जोकि चर्चा का विषय है। उक्त पत्र में अपनी ही पार्टी के विधायकों को विधानसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में विशेष तैयारियां, ज्वलंत मुद्दों पर करने को कहा गया है। भार्गव ने अपने जारी पत्र में कहा है कि जनता की आवाज को विधानसभा में उठाना हम सब जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है। आगामी दिसम्बर माह में विधानसभा का शीतकालीन सत्र आयोजित होने वाला है, इसलिए पार्टी के विधायक अपनी तैयारी उचित ढंग से करें । वे अपने-अपने क्षेत्रों की विभिन्न समस्याओं को शीतकालीन सत्र के दौरान जमकर उठाएं ।
इसके लिए विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव ने अपने विधायक सहयोगियों को सुझाया है कि वे किसानों की कर्जमाफी, अतिवृष्टि और बाढ़ से प्रभावित खरीफ की फसलों की जानकारी और जनहित से जुड़ी अन्य समस्याओं को लेकर अब तक की जानकारी एकत्र करें । उसका समुचित अध्ययन करें, जिससे कि जनता के हित में इन्हें सही तरीके से विधानसभा में उठाया जा सके। वहीं, इस पत्र के माध्यम से उन्होंने विधायकों से कहा है कि यदि उनके ऊपर भोपाल स्थित विशेष न्यायालय में आपराधिक या कोई अन्य प्रकरण विचाराधीन या लंबित हैं तो इसकी जानकारी उन तक भेंजे।
उल्लेखनीय है कि पिछले शीतकालीन सत्र में भाजपा की बहुत किरकिरी हो चुकी है। मध्यप्रदेश की 15वीं विधानसभा में सत्ता से बाहर हुई भाजपा ने सदन के अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष का पद भी गंवा दिया था। हालांकि भाजपा ने इसे मध्यप्रदेश के लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन बताया। पार्टी ने ऐलान किया था कि वह अब सत्ता पक्ष के खिलाफ राष्ट्रपति के पास जाएगी और विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी, लेकिन तब इन सबका कोई अर्थ नहीं निकला था। उपाध्यक्ष बदलने के पूर्व तक सदन की परंपरा यही रही थी कि अध्यक्ष सत्ता पक्ष का और उपाध्यक्ष विपक्ष का रहता था, लेकिन 29 साल बाद मध्यप्रदेश में यह परंपरा टूट गई। अब दोनों पद पर सत्ता पक्ष ही काबिज है । हिस