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तानसेन की बारगाह में सजे दो तहजीबों के सुर

👤 Veer Arjun | Updated on:28 Dec 2021 9:05 AM GMT

तानसेन की बारगाह में सजे दो तहजीबों के सुर

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• प्रख्यात ध्रुपद गायक पंडित अभय नारायण मलिक राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से विभूषित

• पंडित वेंकटेश कुमार एवं विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे भी कालिदास सम्मान से विभूषित दोनों का सम्मान कलाविद शशि व्यास ने ग्रहण किया

भोपाल। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में दूसरे दिन की शाम बेहद खास और खुशनुमा रही। आज सुबह की सभा मे तो मिठास घुली ही थी, शाम की सभा मे भी दो तहजीबों के सुर खिले। शाम की सभा मे भारतीय शास्त्रीय संगीत के फूल तो खिले ही ,अर्जेंटीना और ब्राज़ील से आए कलाकारों ने अपने अपने मुल्क के शास्त्रीय संगीत की ऐसी खुश्बू बिखेरी कि "मिले सुर मेरा तुम्हारा" की भावभूमि साकार हो उठी। ये रासभीनी शाम उस वक्त और खिल उठी जब तानसेन के मंच पर संगीत जगत की तीन विभूतियों को राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से विभूषित किया गया

ग्वालियर के संभागीय आयुक्त आशीष सक्सेना एवं उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे ने सबसे पहले प्रख्यात ध्रुपद गायक पंडित अभय नारायण मलिक को वर्ष 2019 के राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से विभूषित किया। इसके पश्चात वर्ष 2016 एवं 2017 के लिए क्रमशः विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे एवं पंडित वेंकटेश कुमार को राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से अलंकृत किया गया। दोनों ही विभूतियां कतिपय कारणों से ये सम्मान ग्रहण करने नहीं आ सकीं सो उन्हीं के आग्रह पर प्रख्यात कलाविद एवं कला समीक्षक शशि व्यास ने ये सम्मान ग्रहण किया। सम्मान स्वरूप तीनो कलाकारों को दो - दो लाख की आयकर मुक्त राशि शॉल एवं श्रीफल प्रदान किये गए। इस अवसर पर उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत एवं कला अकादमी के सहायक निदेशक राहुल रस्तोगी भी उपस्थित थे।

बहरहाल, रविवार की शाम की सभा का आगाज़ शंकर गान्धर्व संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के ध्रुपद गायन से हुआ। राग यमन में चौताल की बंदिश के बोल थे - "जय शारदा भवानी"। प्रस्तुति में पखावज पर मुन्नालाल भट्ट एवं हारमोनियम पर नारायण काटे ने साथ दिया। इसके बाद पहली प्रस्तुति में अर्जेंटीना के देसिएतों आनंदते ने विश्व संगीत की प्रस्तुति दी। देसीएतों ने एकॉस्टिक गिटार के साथ कई धुनें और सांग्स पेश किए। उन्होंने कई स्पेनिश सांग्स लेटिनो अमेरिकी रिदम पर पेश किए। आपने बोलेरो स्टाइल में सालसा स्टाइल में कई गीत पेश किए । इनमें साबोर ए एम इंनोविडबल खास हैं। देसीएतो मूलतः लेटिन मूल के हैं और दुनिया भर में अपनी प्रस्तुतियां देते हैं। अगले कलाकार थे कालिदास सम्मान से विभूषित पंडित अभय नारायण मालिक। 85 की उम्र के अभय नारायन जी का संगीत के प्रति समर्पण प्रेरणादायक है। हालांकि गाने में अब उम्र साथ नही देती पर फिर भी अपने पुत्र एवं शिष्य रंजीत मलिक एवं परिजन रंजीव मलिक अजय पाठक राजन मलिक अभिषेक पाठक के साथ उन्होंने ध्रुपद के सुर लगाए। पहली प्रस्तुति राग विहाग की थी। धमार में बंदिश के बोल थे- " कहाँ ते आये हो गोपाल गुलाल लगाए" इस बंदिश को उन्होंने पुरजोर तरीके से पेश किया । अगली बंदिश सूलताल में राग मालकौंस की रही। बंदिश के बोल थे "आवन कह गए अजहूँ न आए"। इस बंदिश को भी आपने पूरे मनोयोग से पेश किया। आपके साथ पखावज पर संगीत पाठक एवं रानू मलिक ने संगत की जबकि सारंगी पर भारतभूषण गोस्वामी एवं आबिद हुसैन ने साथ दिया। तानपुरे पर सुश्री लता मलिक दुबे ने साथ दिया।

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