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चीन-पाक आर्थिक गलियारा भारत की सम्प्रभुता के लिए चिंताजनक

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 Aug 2017 4:13 PM GMT

चीन-पाक आर्थिक गलियारा भारत की सम्प्रभुता के लिए चिंताजनक

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विशेष प्रतिनिधि

नई दिल्ली। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) सहित चीन एवं पाकिस्तान के बीच बढ़ते सां"गां" पर चिंता व्यक्त करते हुए संसद की एक समिति ने कहा है कि सीपीईसी का कुछ हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है और यह भारत की सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिये चिंताजनक है।
लोकसभा में हाल ही में पेश भारत पाक संबंधों पर विदेश मामलों संबंधी संसद की एक समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, सैन्य परमाणु और मिसाइल विकास कार्यक्dरम तथा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संग"नों पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध लगने से रोकने समेत चीन एवं पाकिस्तान के बीच बढ़ती सां"गां" के कारण क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीईसी का कुछ हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है जो भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर का हिस्सा है और उस पर पाकिस्तान ने अनाधिकृत कब्जा किया है। यह भारत की सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिये चिंताजनक है। बहरहाल, इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आईडीएसए) से जुड़े विशेषज्ञ जैनब अख्तर की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के सहयोग से बनाये जा रहे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को पाकिस्तान बेशक बेहद महत्वपूर्ण परियोजना बता रहा हो लेकिन अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की जरूरतों को समाहित करने की क्षमता नहीं है और वह अनजाने ही बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है। अख्तर ने इस रिपोर्ट में कहा है कि गिलगित बालटिस्तान जो पहले उत्तरी क्षेत्र के रूप में जाने जाते थे और जो जम्मू कश्मीर राज्य का अभिन्न हिस्सा थे, वे अभी पाकिस्तान के कब्जे में हैं। यह इलाका चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) की घोषणा के बाद से सुर्खियों में आ गया है। इसमें कहा गया है कि सीपीईसी चीन की एक क्षेत्र एक मार्ग (ओबीओआर) पहल का हिस्सा है जिसे पाकिस्तान अपने लिए काफी महत्वपूर्ण बता रहा है क्योंकि उसे इससे आर्थिक लाभ मिलने का उम्मीद है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में सीपीईसी को लेकर आर्थिक एवं राजनीतिक चर्चा के बीच गिलगित बालटिस्तान के लोगों की आशा एवं आकांक्षाओं को नजरंदाज किया जा रहा है। सीपीईसी के खिलाफ उ"ाई जाने वाली आवाज को मीडिया में कोई स्थान नहीं मिलता और पाकिस्तान में कोई भी यह स्पष्ट रूप से बताने की स्थिति में नहीं है कि सीपीईसी के व्यापक परिदृश्य में गिलगित बालटिस्तान का क्या स्थान है ? इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीईसी को लेकर स्थानीय लोगों में असंतोष भी है क्योंकि पाकिस्तान सरकार की ओर से इस परियोजना को लेकर कोई स्पष्ट खाका और नीति पेश नहीं की गई है। विभिन्न आकलनों और पूर्वानुमानों से स्पष्ट हो रहा है कि इस परियोजना के लिए करीब 50 अरब डालर के अनुमानित निवेश की बात कहे जाने के बावजूद इस क्षेत्र को इसकी तुलना में काफी कम लाभ होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं कि इस परियोजना के संबंध में निवेश का बड़ा हिस्सा पंजाब प्रांत से लगे क्षेत्रों में किये जाने की योजना है। इसको लेकर दूसरे क्षेत्रों से भी परियोजना के बारे में व्यापक स्पष्टता की बात की जाने लगी है।
विशेषज्ञ के अनुसार, अनेक अर्थशास्त्राियों और विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की जरूरतों को समाहित करने की क्षमता ही नहीं है और वह अनजाने में बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान को इस बारे में भी सचेत रहने की जरूरत है क्योंकि चीनी लोग कोई भी काम धर्मार्थ नहीं करते और इस ठ्ठण की ब्याज दर काफी उच्च हो सकती है। पाकिस्तान को इस निवेश के एवज में कई तरह का भार करदाताओं पर डालना पड़ सकता है। ऐसे में यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि गिलगित- बालटिस्तान के लोग पाकिस्तान की ओर से दशकों से किये जा रहे सौतेले व्यवहार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ लोग अधिक अधिकारों और प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं जबकि कुछ स्वतंत्रता की मांग भी कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि गिलगित-बालटिस्तान क्षेत्र में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है और इसके कारण इस क्षेत्र से युवाओं का पलायन तेजी से हो रहा है और वे पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों और फारस की खाड़ी से लगे क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं।

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