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अखबारी कागज पर जीएसटी के खिलाफ आया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:10 July 2018 4:30 PM GMT

अखबारी कागज पर जीएसटी के खिलाफ आया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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वीर अर्जुन संवाददाता

लखनऊ। अखबारी कागज पर जीएसटी का कहर और डीएवीपी के भ्रष्ट रवैयों भरी मनमानी के प्रति सरकार आंखे मूंदे है। जिसके होते भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ दरकता जा रहा है। देशभर के 90 फीसदी अखबार बंद होने की कगार पर हैं। देश के लाखों अखबार कर्मी और पत्रकार बेरोजगारी के खौफ से थर्राये हुई हैं। अब सिर्फ कार्पोरेट घरानों के चुनिंदा अखबार ही बचेंगे। इन 5 फीसदी अखबारों की खबरों पर से पाठकों का विश्वास समाप्त समाप्त हो रहा है।

कम संसाधन और अल्प पूंजी वाले देश के बहुसंख्यक स्थानीय/गैर ब्रांडे अखबारों को बचाने के लिए प्रकाशकों-पत्रकारों और समस्त अखबार कर्मियों की तेज होती लड़ाई को अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आशा की किरण दिखाई हैं।अखबार बचाओ आन्दोलन को आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्वामी मुरारी दास ने ना सिर्फ जायज़ ठहराया बल्कि इस लड़ाई का खुल कर समर्थन भी किया। श्री दास ने यूपी प्रेस क्लब में पत्रकार और प्रकाशकों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस देश में अखबार बंद हो जायेंगे उस देश का लोकतंत्र स्वतः समाप्त हो जायेगा। अखबारों या पत्रकारों पर संकट लोकतांत्रिक राष्ट्र का संकट माना जाता है। उन्होंने प्रकाशकों/पत्रकारों को हौसला देते हुए कहा कि डीएवीपी की गलत नीतियों और अखबारी कागज पर लगे जीएसटी के खिलाफ लड़ाई में हम आप के साथ हैं।संघ के वरिष्ठ प्रचारक ने कहा कि कभी-कभी सरकार की नीतियों के खिलाफ अफसरों और कर्मचारियों का तंत्र जनविरोधी फैसले लेता है। इसके लिए हम सब को ऐसे सिस्टम से मिलजुल कर लड़ना होगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सरकार अखबारों के हित में जल्द ही निर्णय लेगी।गौरतलब है कि मौजूदा सरकार के दौरान ही इससे पूर्व भी जीएसटी के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजदूर संघ ने आवाज उठाई थी। मोदी सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आए संघ से जुड़े संगठन बार-बार ये भी कह चुके है कि किसान संकट और बेरोजगारी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हुए पूर्व में कहा था कि बेरोजगारी और किसानों की परेशानी पर सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है। अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक, संघ परिवार के सहयोगी संगठन भारतीय किसान मंच और स्वदेशी जागरण मंच ने मोदी सरकार को चेतावनी दी कि अगर अगले लोकसभा चुनावों से पहले बजट में बेरोजगारी और कृषि संकट का ध्यान नहीं रखा गया तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं। इन संगठनों का कहना है कि मोदी सरकार को बढ़ती बेरोजगारी और कृषि समस्या को दूर करना चाहिए। स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार को सलाह दी है कि वे छोटे और नए उद्योगों को प्रोत्साहित करें ताकि रोजगार पैदा होने की संभावनाएं बढ़ सकें। वहीं भारतीय किसान मंच ने फसल का न्यूनमतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया है। साथ ही कृषि उत्पादों पर जीएसटी के लिए मुआवजा देने की भी सलाह दी है। मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन का कहना है कि, "देशमें अधिक नौकरियां पैदा करने की जरूरत है। इसके लिए सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों को विकास दर बढ़ाने वाले कदमों पर केंद्रित करने के बजाय रोजगार पैदा करने वाली नीतियों पर केंद्रित करना होगा।" उन्होंने कहा कि सरकार को 'सनराइज़ सेक्टर' को समर्थन देना चाहिए जिससे की ज्यादा रोजगार पैदा हो सके। हाल ही में मंच ने सरकार के विदेशी निवेश के नियमों को लेकर किए गए फैसले का भी विरोध किया था। मंच का कहना था कि यह फैसला देश के हित के खिलाफ है और लोगों को सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध करना चाहिए। भारतीय किसान मंच और स्वदेशी जागरण मंच के अलावा आरएसएस के तीसरे सहयोगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी कहा है कि नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे और मध्यम उद्योगों को नुकसान पहुंचाया है।

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