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89 साल के बुजुर्ग को 1988 के मामले में राहत
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विधि संवाददाता
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के 89 साल के एक बुजुर्ग की तीन महीने की सजा उच्चतम न्यायालय ने उनकी उम्र को देखते हुए माफ कर दिया है। दरअसल बुजुर्ग को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 187 लीटर से अधिक केरोसिन रखने के, साल 1988 के एक मामले में तीन महीने की सजा सुनाई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह मदन मोहन कबीराज की दोषसिद्धी में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं लेकिन इस उम्र में संबंधित व्यक्ति को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के प्रावधानों का लाभ मिल सकता है। न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की एक पी" ने कहा, हालांकि, यहां अपील करने वाले व्यक्ति के दोषसिद्धी मामले में हम हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। अपीलकर्ता की उम्र (89 साल) और इनके खिलाफ कोई अन्य दोष नहीं देखते हुए हमारा विचार है कि मौजूदा मामले में व्यक्ति को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधानों का लाभ मिले।
न्यायालय ने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्ति को दी गई तीन महीने की सजा रद्द की जाती है और कबीराज को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के तहत रिहा किया जाता है। कबीराज के खिलाफ दो सितंबर 1988 को उनकी राशन दुकान के निरीक्षण के बाद प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। कबीराज सार्वजनिक वितरण योजना (पीडीएस) के तहत दुकान चलाते थे। इनकी दुकान से निरीक्षण के दौरान 187 लीटर से अधिक केरोसिन मिला था। 20 अप्रैल 1990 को मुर्शिदाबाद की एक विशेष अदालत ने उन्हें दोषी "हराते हुए चार माह के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले को कबीराज ने 1990 में उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिसे 26 साल के बाद, 3 मई 2016 को उन्हें दोषी "हराया लेकिन उनकी सजा चार माह से घटा कर तीन माह कर दी।कबीराज ने इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
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