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मेट्रो विधेयक पारित होने तक नई परियोजनाओं को मंजूरी नहीं

👤 admin6 | Updated on:7 May 2017 6:23 PM GMT

मेट्रो विधेयक पारित होने तक नई परियोजनाओं को मंजूरी नहीं

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वीर अर्जुन समाचार ब्यूरो

नई दिल्ली । दिल्ली सहित अन्य राज्यों में मेट्रो रेल परियोजनाओं को लागू करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक ही कानून बनाने की प्रक्रिया पूरी होने तक किसी भी राज्य की मेट्रो परियोजना को केन्द्र सरकार से मंजूरी नहीं मिलेगी।

केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों से मेट्रो रेल परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिये मिल रहे प्रस्तावों को फिलहाल "ंडे बस्ते में डाल दिया है। साथ ही राज्यों को इस बाबत सूचित भी कर दिया गया है कि देश भर के लिये एक ही कानून के रूप में मेट्रो रेल विधेयक 2017 लागू होने तक मेट्रो रेल का कोई नया प्रस्ताव मंजूरी के लिये नहीं भेजें।

मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि दो दर्जन से अधिक शहरों में मेट्रो रेल शुरू करने के प्रस्तावों पर मंजूरी के आवेदनों की भरमार को देखते हुये मेट्रो परिचालन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक ही कानून बनाने की पहल की गयी है। इतना ही नहीं कुछ ऐसे शहरों से भी प्रस्ताव मिले हैं जहां मेट्रो परिचालन निहायत गैरजरूरी है। इसके मद्देनजर शहर के ट्रैफिक प्लान, आबादी और सार्वजनिक परिवहन के साधनों की मौजूदा स्थिति आदि मानकों को प्रस्तावित कानून के मसौदे में शामिल किया गया है। इन मानकों पर खरे उतरने वाले प्रस्तावों को ही मंत्रालय से मंजूरी दी जायेगी। फिलहाल दिल्ली मेट्रो अधिनियम (डीएमआरसी एक्ट) की तर्ज पर विभिन्न राज्यों द्वारा अपने कानून बनाकर स्थानीय मेट्रो परियोजनाओं को मानकों की कसौटी पर कसा जाता है। मौजूदा व्यवस्था में मेट्रो परियोजना को मंजूरी मिलने पर लागत में आधी हिस्सेदारी केन्द्र सरकार की होती है। अधिकारी ने बताया कि प्रस्तावित विधेयक लागू होने के बाद देश भर में मेट्रो रेल का संचालन एक ही कानून के तहत होगा।

इसके साथ ही डीएमआरसी के अलावा जयपुर, बेंगलुरु, लखनउढ और मुंबई सहित सभी शहरों के प्रस्तावित रेल कार्पोरेशन भी मेट्रो रेल कानून के तहत संचालित होंगे।

हाल ही में उच्चाधिकार प्राप्त अंतरमंत्रालयी समिति ने देश भर की सभी मेट्रो परियोजनाओं को शहरी विकास मंत्रालय के मातहत लाने के लिये प्रस्तावित विधेयक को संसद से पारित करा कर लागू करने की मंजूरी दे दी है। दो हिस्सों में बंटे इस विधेयक के पहले भाग ःकेन्द्रीय मेट्रो निर्माण अधिनियिमः में मेट्रो परियोजना को लागू करने के प्रावधान होंगे। जबकि मेट्रो परिचालन से जुड़े दूसरे हिस्से को केन्द्रीय मेट्रो संचालन एवं रखरखाव अधिनियम नाम दिया गया है।

कल समन्वित परिवहन प्रणाली पर केन्द्र और राज्य सरकारों के साथ दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकारों के उन्हीं शहरों के मेट्रो प्रस्तावों पर विचार किया जायेगा जिनमें

सार्वजनिक परिवहन के लिये मेट्रो के अलावा अन्य वैकल्पिक इंतजामों की संभावनायें पूरी तरह से तलाश ली गयी हों और ये नाकाफी साबित हो रही हों। इसी आधार पर हाल ही में मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में मेट्रो परियोजना के प्रस्ताव को खारिज करते हुये राज्य सरकार से शहर में सार्वजनिक परिवहन के अन्य विकल्प तलाशने को कहा है।

मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित मेट्रो रेल विधेयक 2017 में शहरी अधोसंरचना के निजीकरण को बढ़ावा देते हुये मेट्रो प्रशासन का संचालन निजी क्षेत्र को सौंपने के प्रावधान शामिल हैं। साथ ही इसमें मेट्रो परियोजना का तीसरे पक्षकार से आंकलन कराते हुये परिवहन के वैकल्पिक साधनों की संभावनायें तलाशने को अनिवार्य बनाया जायेगा।

प्रस्तावित कानून के मसौदे में मेट्रो किराया विनियमन प्राधिकरण बनाने का भी प्रावधान शामिल किया गया है। इसका मकसद देश भर में मेट्रो रेल का किराया एक समान रखना है।

फिलहाल देश में मेट्रो रेल का कुल परिचालन 326 किमी है। इसमें सर्वाधिक 212 किमी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एनसीआर में, 33 किमी बेंगलुरु में, 20 ़ ़20 किमी चेन्नई और मुंबई में, 27 किमी कोलकाता में, 9 किमी जयपुर में और 5 किमी गुरुग्राम रेपिड मेट्रो के रूप में परिचालन हो रहा है। जबकि लगभग 500 किमी दूरी वाली अन्य शहरों की प्रस्तावित परियोजनायें मंजूरी के लिये मंत्रालय में लंबित हैं।

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