विधायकों की मीटिंग में कोविंद को समर्थन देने का नीतीश का ऐलान
पटना, (एजेंसी)। बिहार के सीएम और जेडी (यू) प्रेजिडेंट नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। बुधवार को पटना में पार्टी विधायकों की मीटिंग में नीतीश कुमार ने इसकी घोषणा की।
नीतीश कुमार का एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देना विपक्षी एकता को बड़ा झटका माना जा रहा है। नीतीश कुमार ने ही सबसे पहले राष्ट्रपति के लिए विपक्षी एकता की वकालत की थी। जेडी (यू ) का रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के ऐलान के साथ ही एनडीए उम्मीदवार की स्थिति और भी मजबूत हो गई है और अब उनके पक्ष में 50 फीसदी से ज्यादा वोट पड़ सकते हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियां गुरुवार को मीटिंग करने वाली हैं जिसमें उम्मीदवार की घोषणा हो सकती है। सूत्रों के अनुसार अब तमिलनाडु की डीएमके भी पशोपेश में हैं और कोविंद को समर्थन देने पर विचार कर सकती है।नीतीश कुमार का विपक्ष से अलग रास्ता पकड़ने के बाद 2019 के लिए हो रही विपक्षी एकता की कोशिश में दरार दिखने लगी है। हालांकि, कांग्रेस ने नीतीश कुमार को राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गठबंधन में बनाए रखने की पूरी कोशिश की। दूसरी ओर नीतीश कुमार ने अपनी मजबूरी बताते हुए कोविंद को सपॉर्ट करने की बात कही। नीतीश कुमार ने कांग्रेस को भरोसा दिलाया कि वह विपक्ष के साथ बने रहेंगे। मंगलवार को उनकी इस मुद्दे पर कांग्रेस के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद से लंबी बात भी हुई थी। नीतीश कुमार ने पार्टी नेताओं की मीटिंग में कोविंद को समर्थन देने के पीछे 2 कारण गिनाए। पहला तर्क यह दिया कि रामनाथ कोविंद बिहार के गवर्नर बने तब से उनसे से बेहतर संबंध रहे हैं। एक भी ऐसा मौका नहीं आया जब बतौर राज्यपाल कोविंद ने नीतीश सरकार के लिए मुश्किल पैदा की। ऐसे समय में जब शराबबंदी पर बना सख्त कानून विवादों में था और कानूनी स्तर पर इसकी आलोचना हो रही थी, कोविंद ने इस पर अपनी सहमित बिना सवाल के दी थी। इसके अलावा कुलपतियों की नियुक्ति पर भी नीतीश की पसंद को अपनी सहमति दी। सीएम नीतीश कुमार ने दूसरा तर्क यह दिया कि वह ऐसा संदेश नहीं देना चाहते हैं कि वह दलितों के खिलाफ हैं। नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन महादलित वोट के सहारे ही पाई थी।
यही वोट इनका सबसे बड़ा दांव भी है। ऐसे में नीतीश कुमार ने तर्क दिया कि अगर वह कोविंद का विरोध करते हैं तो इसका गलत संदेश जा सकता है।
विपक्ष से अलग होकर एनडीए उम्मीदवार को समर्थन करने के राजनीतिक संदेश के बारे में नीतीश ने कहा कि यह बस राष्ट्रपति चुनाव भर का मामला है। उन्होंने मिसाल दी कि 2012 में एनडीए में रहते हुए भी यूपीए उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का सपॉर्ट किया था। हालांकि, इसके बाद ही उनके एनडीए से राजनीतिक मतभेद शुरू हो गए थे और एक साल बाद जेडी (यू) औपचारिक रूप से एनडीए से अलग हो गई थी।