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अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट में 21वें दिन की सुनवाई पूरी, मुस्लिम पक्ष ने रखी दलीलें

👤 Veer Arjun | Updated on:11 Sep 2019 12:21 PM GMT

अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट में 21वें दिन की सुनवाई पूरी, मुस्लिम पक्ष ने रखी दलीलें

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नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 21वें दिन की सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अपना पक्ष रखा। उनकी ओर से कल गुरुवार को भी दलीलें जारी रहेंगी।

राजीव धवन ने हिंदू पक्ष के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या रामलला विराजमान कह सकते हैं कि उस जमीन पर मालिकाना हक़ उनका है? नहीं, उनका मालिकाना हक़ कभी नहीं रहा है। दिसंबर 1949 में गैरकानूनी तरीके से इमारत में मूर्ति रखी गई। इसे जारी नहीं रखा जा सकता। बुधवार को अयोध्या मामले पर सुनवाई दोपहर दो बजे के बाद शुरू हुई।

सुनवाई की शुरुआत में पूर्व बीजेपी नेता गोविंदाचार्य की अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने की मांग करनेवाली याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस याचिका पर 16 सितंबर को सुनवाई करने का आदेश दिया। 6 सितंबर को इस याचिका पर जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा था कि ये मामला काफी संवेदनशील है, इसकी सुनवाई का सीधा प्रसारण कैसे किया जा सकता है। बेहतर है कि आप अपनी इस मांग को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही बेंच के सामने रखें।

याचिकाकर्ता बीजेपी के पूर्व नेता केएन गोविंदाचार्य की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा था कि चीफ जस्टिस के आदेश से ही तो ये याचिका आपके पास लिस्टेड हुई है। तब जस्टिस नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले को चीफ जस्टिस की बेंच को सुनवाई के लिए भेज दिया।

याचिका में कहा गया है कि यह विषय लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। संविधान की धारा 19(1)(ए) के तहत लोगों को जानने का अधिकार है कि अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद की सुनवाई में क्या हो रहा है।

पिछले 5 सितंबर को राजीव धवन ने कहा था कि निर्मोही अखाड़ा सदियों से देवता का सेवक होने का दावा करता है। हम 1855 से मानते हैं। धवन ने कहा था कि 1855 से बाहरी हिस्से के राम चबूतरा पर पूजा के सबूत हैं। चबूतरा को जन्मस्थान माना जाता था, मुख्य इमारत मस्ज़िद थी। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि अगर आप देवता की मौजूदगी और सेवक के दावे को मानते हैं, तब तो हमें उनकी पूरी बात माननी होगी। धवन ने कहा था कि मैं सेवादार होने के उनके दावे को पूरी तरह झूठा नहीं कह सकता। लेकिन मालिकाना हक सुन्नी वक्फ बोर्ड का था। वो बाहरी हिस्से में पूजा कर रहे थे। मुख्य इमारत को मस्ज़िद ही माना जाता था। एजेंसी

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