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उप्र : देवउठनी एकादशी पर श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

👤 Veer Arjun | Updated on:8 Nov 2019 6:45 AM GMT

उप्र : देवउठनी एकादशी पर श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

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वाराणसी । कार्तिक शुक्ल पक्ष की हरि प्रबोधिनी एकादशी (देवउठनी एकादशी) पर शुक्रवार को लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और दान पुण्य के बाद नये गन्ने का नेवान किया। देवउठनी एकादशी पर ही चराचर जगत के पालनहार श्री हरि भी चार मास की योग निद्रा से जाग गये। श्री हरि के योग निद्रा से जागने के बाद मांगलिक कार्य भी शुरू हो जायेगा।

इसके पूर्व लोग भोर से दोपहर तक तक गंगा स्नान के लिए घाटों पर पहुंचते रहे। घाटों पर स्नान ध्यान के बाद लोगों ने दानपुण्य कर श्री हरि की आराधना की। गंगा स्नान के लिए के लिए प्राचीन दशाश्वमेध घाट,राजेन्द्र प्रसाद घाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट, अस्सीघाट, सामनेघाट,भैसासुर और खिड़कियाघाट पर सर्वाधिक भीड़ जुटी रही।

पर्व पर शहर के प्रमुख चौराहे मोहल्लों में सजे गन्ना की अस्थाई दुकानों पर जमकर खरीददारी हुई। शहर के चौकाघाट रेलवे ओवरब्रिज के समीप गन्ना की अस्थायी मंडी में दिन भर गन्ने की खरीददारी के लिए लोगों की भीड़ जुटी रही।

तुलसी माता की पूजा, शाम को विवाह

हरि प्रबोधिनी एकादशी पर गंगा स्नान ध्यान के बाद श्रद्धालुओं ने गंगा किनारे ईख आदि से मंडप बनाकर तुलसी माता की पूजा की और तुलसी जी का विवाह भी रचाया। एकादशी पर ही भगवान श्रीहरि की भव्य बारात गणेशघाट से शाम को निकलेगी। बारात बैंडबाजा, शहनाई के धुन के बीच पंचगंगा घाट पर पहुंची। जहां बारात का भव्य स्वागत किया जायेगा । इसके पूर्व पंचगंगा घाट स्थित बिन्दुमाधव मंदिर में भगवान श्री हरि का भव्य श्रृंगार किया गया। भोर में ठीक चार बजे भगवान बिन्दु माधव की काकड़ा आरती उतारी गयी। इसके पश्चात भगवान को मक्खन एवं श्रीखण्ड का लेपन कर आरती उतारी गयी। प्रबोधिनी एकादशी पर नए ऋतु फल गन्ना, भगवान को भोग के रूप में अर्पित कर इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया गया।

गौरतलब है कि देवशयनी एकादशी से चराचर जगत के स्वामी श्री हरि विष्णु भगवान चार मास के लिये सो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को योग निद्रा में जाने के बाद श्री हरि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को योग निद्रा से जागते हैं।

सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता हैं कि माता लक्ष्मी ने भगवान श्री विष्णु से कहा कि प्रभु आप या तो दिन रात जागते रहते हैं या फिर लाखों करोड़ों वर्ष तक सोते रहते हैं और सृष्टि का भी विनाश कर डालते हैं। इसलिये हे नाथ आपको हर साल नियमित रूप से योग निद्रा लेनी चाहिये। तब श्री हरि बोले देवी आप ठीक कहती हैं। मेरे जागने का सबसे अधिक कष्ट आपको ही सहन करना पड़ता है आपको क्षण भर के लिये भी मेरी सेवा करने से फुर्सत नहीं मिलती। अब मैं प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार मास तक के लिये शयन किया करूंगा ताकि आपको और समस्त देवताओं को भी कुछ अवकाश मिले। मेरी यह निद्रा अल्पकालीन एवं प्रलयकारी महानिद्रा कहलायेगी। मेरी इस निद्रा के दौरान जो भी भक्त भावना पूर्वक मेरी सेवा करेंगे और मेरे शयन व जागरण को उत्सव के रूप में मनाते हुए विधिपूर्वक व्रत, उपवास व दान-पुण्य करेंगे उनका जीवन मंगलकारी होगा।

हरि प्रबोधिनी एकादशी से शुरू हो जायेगा मांगलिक कार्य

हरि प्रबोधिनी एकादशी से मांगलिक कार्य भी शुरू हो जायेगा। देवउठनी एकादशी से विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य शुरु हो जाएंगे। मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी से चार महीने के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते है। जिसके चलते चार महीने तक मांगलिक कार्य वर्जित हो जाता है।

चराचर जगत के स्वामी के योग निद्रा से जागते ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाता है। नवंबर माह में 8,9.10,14, 18,22,23,24 और 30 नवंबर को शादी के शुभ मुर्हूत है। वहीं दिसंबर में 5,6,11,12 तारीख को शादी, ग्रह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य संपन्न किए जा सकते हैं।

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