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केन्द्र सरकार को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट का सीएए पर रोक लगाने से इन्कार

👤 Veer Arjun | Updated on:22 Jan 2020 7:38 AM GMT

केन्द्र सरकार को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट का सीएए पर रोक लगाने से इन्कार

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नई दिल्ली । नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने से इन्कार करते हुए कहा है कि मामले पर पांच जजों की बेंच सुनवाई करेगी। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है और असम से संबंधित याचिकाओं पर जवाब देने के लिए दो हफ्ते का वक्त दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार हफ़्ते बाद वह एक दिन तय करेंगे जिसके बाद सीएए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर रोजाना सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के अलग-अलग हाई कोर्ट में सीएए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर कोई भी आदेश जारी करने पर रोक लगा दिया है। इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर तमाम हाई कोर्ट में सीएए के खिलाफ दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की थी।

बुधवार को सुनवाई शुरू होने से पहले कोर्ट नंबर एक में बहुत भीड़ थी, जिसके चलते परेशानी होने पर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि वकील अंदर नहीं आ पा रहे हैं। शांतिपूर्वक माहौल होना चाहिए। कुछ किया जाना चाहिए। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि ये देश की सबसे बड़ी अदालत है। चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर सुरक्षाकर्मी किसी को धक्का देते हैं तो दिक्कत होगी। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कोशिश कर रहे हैं। जब केस खत्म हो जाए तो संबंधित वकीलों को बाहर निकल जाना चाहिए।

अटार्नी जनरल ने कहा कि आज 144 याचिकाएं लगी हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि सभी को कोर्ट में आने की क्या जरूरत है। सभी पक्षों के साथ बैठक करेंगे, लोग अपना सुझाव दे सकते हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कोर्ट रूम में भीड़ की वजह से सबसे ज्यादा समस्या महिलाओं को होती है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ये मानवीय नहीं है, पुरुषों के साथ धक्का-मुक्की क्यों?

सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा कि कुल मिलाकर 140 से ज्यादा याचिकाएं हैं। हमें हलफनामा भी दाखिल करना है। अभी प्रारंभिक हलफनामा दे रहे हैं। केंद्र को 60 याचिकाएं मिली हैं। सिब्बल ने कहा कि पहले ये तय हो कि इसे संविधान पीठ भेजा जाना है या नहीं? हम रोक नहीं मांग रहे, लेकिन इस प्रक्रिया को तीन हफ्ते के लिए टाला जा सकता है। इसी मुद्दे पर जल्द फरवरी में कोई तारीख सुनवाई के लिए तय हो।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यूपी में 30 हजार लोग चिह्नित किए गए हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि फिलहाल हम सरकार को प्रोविजनल नागरिकता देने के लिए कह सकते हैं। हम एकपक्षीय तौर पर रोक नहीं लगा सकते हैं। यह अहम है कि क्या हमे 99 फीसदी याचिकाकर्ताओं को सुनना चाहिए और इसके बाद आदेश जारी करना चाहिए। अगर केंद्र और कुछ की बात सुनकर हम आदेश जारी करते हैं तो बाकी याचिकाकर्ता कहेंगे कि हमारी बात नहीं सुनी गई।

सिंघवी और सिब्बल ने कहा कि मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। तब तक दो महीने के लिए प्रक्रिया पोस्टपोन कर दी जाए। इसका अटार्नी जनरल ने विरोध करते हुए कहा कि यह स्टे होगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह केस संविधान पीठ को जा सकता है। हम रोक के मुद्दे पर बाद में सुनवाई करेंगे।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुझाव दिया कि सीएए के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने पर रोक लगाई जाए, क्योंकि पहले ही इस मामले में बहुत याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं।

याचिकाएं दायर करनेवालों में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा, पीस पार्टी, रिहाई मंच और सिटिजन अगेंस्ट हेट नामक एनजीओ, जन अधिकार पार्टी औऱ इंडियन मुस्लिम लीग, एहतेशाम हाशमी, असम के नेता डी सैकिया, सांसद अब्दुल खालिक, विधायक रूपज्योति, ऑल असम स्टूडेंट्स युनियन, पूर्व आईएएस अधिकारी सोम सुंदर बरुआ, अमिताभ पांडे आईएफएस देव मुखर्जी बर्मन और त्रिपुरा के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष किशोर देव बर्मन के अलावा हर्ष मांदर, अरुणा राय, निखिल डे, इरफान हबीब और प्रभात पटनायक शामिल हैं।

याचिकाओं में नागरिकता संशोधन कानून को रद्द करने की मांग की गई है। पीस पार्टी ने याचिका में कहा है कि धर्म के नाम पर वर्गीकरण की संविधान इजाजत नहीं देता है। ये विधेयक संविधान की धारा 14 का उल्लघंन है।

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