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औषधीय पौधों की खेती से कमा सकते है लाखों रूपए, जानिए कैसे

👤 manish kumar | Updated on:1 Jun 2020 7:38 AM GMT

औषधीय पौधों की खेती से कमा सकते है लाखों रूपए, जानिए कैसे

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कोरोनावायरस महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था निम्नतम स्तर पर पहुंच गई है. भारत सरकार अर्थव्यवस्था में सुधार करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. हर क्षेत्र के लिए विशेष आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणाएं की गई है. आज समय की मांग है कि आम जनता भी समय के अनुसार अपने व्यापार व्यवसाय को पुनः रिस्ट्रक्चर करें. अगर किसानों की बात की जाए तो समय एवं बाजार की मांग के अनुसार ऐसी फसलों का चुनाव किया जाए जो कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली हो.

उत्तराखंड की अलकनंदा घाटी में फल सब्जी और मसालों की खेती मुख्य तौर पर की जाती है लेकिन यहां की महिलाओं ने अब यहां तुलसी की खेती करना शुरू कर दिया है जिससे इनका मुनाफा भी कई गुना बढ़ गया है. साथ ही देश-विदेश में भी अपनी बुद्धिमता का परचम फहरा रही है. इनकी पहल अनुकरणीय है.

तुलसी की फसल के चुनाव का कारण

तुलसी की खेती में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है और उपज भी अधिक प्राप्त होती है. तुलसी ऐसा पौधा है बहुत कम लागत खर्च में अधिक आय दे सकता है. एक बार फसल लगाने के बाद इससे तीन चार बार उपज ली जा सकती है. तुलसी की सबसे अधिक मांग चाय के रूप में होती है जो आज कोरोनावायरस महामारी के समय प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सर्वोत्तम है.

देश और विदेशों में मांग

कोरोनावायरस महामारी के समय में प्रतिरोधक क्षमता ही हमारा मुख्य हथियार है. उच्च प्रतिरोधक क्षमता ही इस महामारी से हमें बचा सकती है. इस कारण तुलसी की मांग देश ही नहीं विदेश में भी बहुत अधिक है. इसके साथ ही तुलसी का उपयोग अन्य औषधि निर्माण में भी होता है.

तुलसी के तीन फ्लेवर वाली चाय

इस क्षेत्र की महिलाएं यहां तुलसी की खेती करके सभी के लिए एक उदाहरण बन गई हैं. वर्तमान में यहां की महिलाएं तुलसी की खेती करके चाय के तीन फ्लेवर तैयार कर रही हैं. जिसमें तुलसी जिंजर टी, ग्रीन तुलसी टी, और तुलसी तेजपत्ता टी प्रमुख हैं. इन महिलाओं के मुताबिक पहाड़ों पर रोजगार के अवसर अस्थाई तथा सीमित मात्रा में होते हैं. इस करणवश यहां के लोग दूसरे राज्यों में पलायन करने को बाध्य होते हैं.

तुलसी की खेती कर के यहां की महिलाएं ने स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया साथ ही अन्य लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रही हैं. जिससे पलायन में कमी आई है तथा लोग भी आत्म निर्भर बन रहे हैं.

फसल को जंगली जानवरों से खतरा नहीं

इस क्षेत्र में दूसरी अन्य पारंपरिक फसलें जंगली जानवरों के प्रकोप का शिकार होती थी. महिलाओं के मुताबिक बंदरों सूअरों नीलगाय एवं अन्य जंगली जानवरों से फसल को बहुत नुकसान होता था. लेकिन तुलसी की खेती में जंगली जानवरों का कोई डर नहीं होता. कोई जानवर अगर खेत में घुस भी जाए तो वह तुलसी की फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं.

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