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विकास का कुल्हाड़ा और बलि के बकरे 'पेड़'

👤 manish kumar | Updated on:10 Oct 2019 9:19 AM GMT

विकास का कुल्हाड़ा और बलि के बकरे पेड़

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-आशीष वशिष्ठ

विकास के नाम पर या उसकी आड़ में पहली गाज पेड़ों पर गिरती है। ये कोईं नयी बात नहीं है। आजादी के बाद से ही देश में विकास का पहला शिकार पेड़ ही बनें। लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि आजादी के सात दशक बाद भी हम पर्यांवरण अनुवूल विकास माडल विकसित नहीं कर पाये हैं। इसमें कोईं एक सरकार या राजनीतिक दल की बजाए सारा सिस्टम ही दोषी है। पर्यांवरण किसी के एजेंडे में नहीं है। चूंकि दुनिया भर में पर्यांवरण से जुड़े तमाम मुद्दों की चर्चा होती है, इसलिए पिछले कुछ सालों से हमारे देश में भी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में पर्यांवरण को दबी-कुचली ही सही जगह मिलने लगी है।

देशभर में प्रतिवर्ष विकास के लिए नाम पर, सड़कों के चौड़ीकरण प्रािया में लाखों हरे पेड़ों की बलि दी जा रही है। ताजा मामला मुंबईं मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के लिए 'आरे' में पेड़ कटाईं का है। बढ़ती आबादी की यातायात की जरूरतें पूरी करने के लिए मेट्रो विस्तार को जरूरी बताया जा रहा है।

मान भी लिया कि आबादी के हिसाब से यातायात साधनों का विस्तार होना चाहिए। लेकिन अहम सवाल यह है कि प्रोजेक्ट की शुरुआत में भविष्य में आने वाली दिक्कतों और पर्यांवरण संबंधी परेशानियों के बारे में सोचा क्यों नहीं गया। आरे में एक साथ ढाईं हजार से ज्यादा पेड़ काटे जाने प्रस्तावित हैं, इसलिए हाय तौबा की गूंज मुंबईं से दिल्ली तक सुनाईं दे रही है। लोगों के विरोध को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल तत्काल प्रभाव से पेड़ों की कटाईं पर रोक लगा दी है। हालांकि एनजीटी और हाईंकोर्ट की इजाजत के चलते अब तक दो हजार से अधिक पेड़ दो ही दिन में काटे जा चुके हैं।

ऐसा भी नहीं है कि 'आरे' में पेड़ कटाईं कोईं पहला मामला हो। देश में आये दिन कहीं न कहीं विकास के नाम पर पेड़ों की हत्या की जाती है। स्थानीय अदालत से मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाता है, लेकिन अंत में विकास की भारी भरकम दुहाईं देकर पेड़ों की हत्या हो ही जाती है।

पर्यांवरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने तो कहा ही है कि दिल्ली मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के दौरान पेड़ काटे गये थे। मंत्री का यह भी तर्व है कि काटे के पेड़ों के बदले पांच गुना पेड़ लगाये गये जिससे दिल्ली में हरियाली बढ़ी है। वो अलग बात है कि नये पौधों को बड़ा वृक्ष बनने में दो तीन दशक का वत्त लगेगा।

मायावती जब पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने हजरतगंज क्षेत्र में 13 एकड़ क्षेत्र में हरियाली को उजाड़कर पत्थरों के निर्माण कराए। इसमें 280 पेड़ भी काटे गए जिनमें 200 से ज्यादा पेड़ 30 वर्ष से अधिक पुराने थे। अपने दूसरे और तीसरे कार्यंकाल में मायावती सरकार ने गोमतीनगर इलाके में 97 एकड़ क्षेत्र में अम्बेडकर स्मारक, अम्बेडकर स्टेडियम और जेल रोड में 46 एकड़ वाला अन्य स्मारक बनाया जिसके बड़े हिस्से में हरियाली और जंगल था। इस दौर में 1700 से ज्यादा वृक्ष तथा 50 एकड़ से ज्यादा ग्रीन कवर यानी हरियाली नष्ट की गईं। अपने चैथे कार्यंकाल में 2007 के बाद तो मायावती ने लखनऊ के पत्थरीकरण की सारी हदें ही पार कर दीं। इस दौर में उन्होंने अपने ही बनाए अम्बेडकर स्टेडियम आदि को डाइनामाइट से ध्वस्त कर उस सारे इलाके में पत्थरों के स्मारक बना दिए। इस प्रव्रिया में 600 से ज्यादा पेड़ कटे और हरियाली को खत्म करके हर ओर पत्थर बिछा दिए। मायावती ने एनजीटी और अदालतों के अनेक प्रतिबंधों के बाद भी लखनऊ में जेल रोड के जंगल वाले जिस 185 एकड़ इलाके में 1075 करोड़ के जिस कांशीराम ईंको गार्डन का निर्माण कराया था उसमें वृक्ष भी कांसे और धातुओं के थे।

वर्ष 2003 में सत्ता आये मुलायम सिह यादव ने जरूर लखनऊ में 80 एकड़ में लोहिया पार्व के नाम पर एक हरा भरा पार्व बना कर लखनऊ को एक राहत दी, लेकिन उनके पुत्र अखिलेश यादव ने भी मायावती की राह पर चलते हुए लखनऊ की हरियाली को खत्म करने में भरपूर योगदान दिया। अखिलेश ने पहले तो गोमतीनगर में जेपी इंटरनेशनल सेंटर के नाम पर एक स्मारक बनाने के लिए लोहिया पार्व और ताज होटल द्वारा संरक्षित हरियाली के एक बड़े हिस्से को पत्थरों में बदल दिया। इसके बाद आईंटी सिटी और बड़े निर्माणों के लिए उन्होने चक गंजरिया क्षेत्र में 800 एकड़ क्षेत्र में हरियाली को पूरी तरह साफ करवा दिया। एनजीटी की ओर से अनेक बाधाओं के बाद भी अखिलेश सरकार ने इस हरे भरे इलाके में इमारतों का संसार बसा दिया।

अखिलेश यादव का गोमती रिवर प्रंट भी हरियाली और पर्यांवरण को हानि पहुंचाने का प्रोजेक्ट बना तो 138 करोड़ के साइकिल ट्रैक के नाम पर भी बड़े पैमाने पर पेड़ों का सफाया हुआ। अखिलेश सरकार ने साइकिल ट्रैक के नाम पर हजारों पेड़ काट डाले। नोएडा-गाजियाबाद में एनजीटी का डंडा चला तो जीडीए को साढ़े तीन किलोमीटर के साइकिल ट्रैक में 12 यूकेलिप्टस के पेड़ काटने पर अगस्त 2015 में नौ लाख रुपया जुर्माना भरना पड़ा था। जनेश्वर मिश्र पार्व बनवाकर अखिलेश ने पर्यांवरण संरक्षण का संदेश तो दिया, लेकिन चक गंजरिया क्षेत्र को नष्ट करके उन्होंने पर्यांवरण और जैव विविधता को काफी नुकसान पहुंचाया। लखनऊ-सीतापुर राष्ट्रीय राजमार्ग को चैड़ा करने के लिए 8166 पेड़ काटे गए और 1450 पेड़ लखनऊ-बाराबंकी मार्ग के लिए।

लखनऊ में सांसद राजनाथ सिह के ड्रीम प्रोजेक्ट यानी आउटर रिग रोड के निर्माण में भी बड़ी संख्या में पेड़ कटेंगे। यूपी ही नहीं देश भर में विकास का पहला शिकार पेड़ ही बनते हैं। उत्तराखण्ड में तीर्थस्थली हरिद्वार में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सैकड़ों पेड़ों की बलि पिछले दो-तीन सालों में ली गईं। टिहरी बांध के विस्थापितों को हरिद्वार जिले में बसाने के लिये ऐथल, एक्कड़ और पथरी क्षेत्र में रेल लाइन के दोनों तरफ की घनी हरियाली और जंगल को काट डाला गया। तीन साल पहले छत्तीसगढ़ में सूरजपुर-मनेन्द्रगढ़ हाइवे-43 के निर्माण हेतु विशालकाय 702 वृक्ष काटने की अनुमति दी गईं थी। छत्तीसगढ़ के ही कोरिया जिले में कोरिया जिले में पिछले साल फोरलेन सड़क के लिए लगभग साढ़े 4 हजार पुराने हरे भरे पेड़ों को काटा गया।

देशभर में राजमार्ग के नाम पर सड़क को चौड़ा करने के लिए सौ-सौ साल पुराने पीपल, बरगद, आम, जामुन सहित तमाम जातियों के हरे-भरे पेड़ों का नामोनिशान मिटा दिया गया। हद तो यह है कि दस गुने पेड़ लगाने का दावा करने वालों ने इन राष्ट्रीय राजमार्गो पर 'ग्रीन बेल्ट' के लिए जगह तक नहीं छोड़ी है।

लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को दूर करने में पेड़ बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए पेड़ों को बचाना सबसे अधिक जरूरी है। यदि हम एक पेड़ काटते हैं तो हम अपने लिए ऑक्सीजन का भंडार कम कर रहे होते हैं। एक बड़ा पेड़ काटकर दूसरा पौधा लगाने पर भी हमें ऑक्सीजन की उतनी मात्रा कईं वर्षो तक नहीं मिल पाती है जितनी काटा गया पेड़ दे रहा था। लगाया गया पौधा कईं वर्ष बाद पेड़ बनता है। तब जाकर हमें उतनी मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाती है।

लखनऊ मेट्रो प्रॉजेक्ट के दौरान ट्रांसपोर्ट नगर डिपो और हजरतगंज तक के रूट में 981 पेड़ काम के आड़े आ रहे थे, लेकिन अनुमति होने के बाद भी इन्हें काटा नहीं गया। मेट्रो अधिकारियों ने इनमें 270 पेड़ जड़ सहित निकालकर दूसरे जगह लगा दिए, जबकि बाकी 711 पेड़ों के लिए जगह-जगह डिजाइन भी बदल दी।

मुंबईं मेट्रो प्रोजेक्ट में भी ऐसी कार्यंयोजना बनानी चाहिए थी जिससे पर्यांवरण को कम से कम नुकसान पहुंचता। अगर ये मान भी लिया जाए कि विकास जरूरी है तो भी पर्यांवरण की अनदेखी करना कहा की समझदारी है। आज विकास के नाम पर जो विनाश के बीज हम बो रहे हैं वो आने वाले समय में पूरी मानव जाति के लिए विषदायी साबित होंगे।

एक बड़ा पेड़ काटकर दूसरा पौधा लगाने पर भी हमें ऑक्सीजन की उतनी मात्रा कईं वर्षो तक नहीं मिल पाती है जितनी काटा गया पेड़ दे रहा था। लगाया गया पौधा कईं वर्ष बाद पेड़ बनता है। तब जाकर हमें उतनी मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाती है।

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