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कालेधन की वापसी की उम्मीद बढ़ी

👤 manish kumar | Updated on:11 Oct 2019 5:48 AM GMT

कालेधन की वापसी की उम्मीद बढ़ी

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कालेधन की वापसी की उम्मीद बढ़ी

प्रमोद भार्गव

स्विस बैंक में जमा भारतीयों के कालेधन से जुड़ा पहले दौर का विवरण स्विट्जरलैंड ने भारत को सौंप दिया है। इसमें सक्रिय खातों की जानकारी दर्ज है। भारत और स्विट्जरलैंड के बीच नई स्वचालित सूचना विनिमय प्रणाली से यह जानकारी मिली है। इस जानकारी को विदेशी खातों में रखे गए कालेधन के खिलाफ लड़ाई में एक अहम सफलता मानी जा रही है। भारत उन 75 देशों में शामिल है, जिनके साथ स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन (एफटीए) ने बैंक खातों की जानकारी साझा की है। यह शुरुआत वैश्विक मानदंडों के तहत हुई है। स्विस बैंकों में भारत के 100 खाते ऐसे भी हैं, जिन्हें 2018 में बंद कर दिया गया है। अगली कड़ी में इन बंद खातों में धन के लेन-देन की जानकारी भी दे दी जाएगी। स्विस नेशनल बैंक ने बताया है कि भारतीयों की रकम छह प्रतिशत घटकर 2018 में 6,757 करोड़ रुपये रह गई है। स्विस बैंकों में धन जमा करने वाले देशों की सूची में भारत दुनियाभर में 74वें पायदान पर है।

हालांकि विदेशी बैंकों में भारतीय नागरिकों का कितना कालाधन जमा है, इस सिलसिले में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। लेकिन हाल ही में तीन अध्ययनों ने दावा किया है कि वर्ष 1980 से 2010 के दौरान भारतीयों का करीब 15 लाख करोड़ से लेकर 35 लाख करोड़ रुपये तक कालाधन विदेशी बैंकों में जमा हो सकता है। कालाधन का यह अनुमान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फायनेंस एंड पॉलिसी, एनसीएईआर और एनआईएफएम ने लगाया है। इन अध्ययनों ने यह भी कहा है कि सबसे ज्यादा कालाधन भूमि एवं भवन कारोबार, दवा उद्योग, पान मसाला, गुटखा, तंबाकू, बुलियन, वस्तु व्यापार, फिल्म और शिक्षा क्षेत्रों में लगा है। कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति की रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई है। इस समिति ने सोलहवीं लोकसभा भंग होने से पहले तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को 28 मार्च 2019 को यह रिपोर्ट सौंप दी थी। 'स्टेटस ऑफ अनएकाउंटेड इनकम वेल्थ वोथ इनसाइड इंडिया एंड आउटसाइड द कंट्री' शीर्षक वाली यह रिपोर्ट 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में पेश की जा चुकी है।

संसदीय रिपोर्ट के अनुसार, कालेधन के सृजित व जमा होने के संबंध में न तो कोई विश्वसनीय आंकड़े हैं और न ही अनुमान लगाने का कोई सर्वमान्य तरीका प्रचलन में है। अब तक जो अनुमान लगाए गए हैं, उनमें न तो एकरूपता है और न ही गणना के तरीके को लेकर आमराय। बावजूद यह सही है कि देश और देश के बाहर कालाधन बड़ी मात्रा में मौजूद हैं। यह देश की जीडीपी का सात प्रतिशत से लेकर 120 प्रतिशत तक हो सकता है। हालांकि मोदी सरकार ने कालेधन पर अंकुश के लिए 'कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और अस्तित्व विधेयक-2015' और कालाधन उत्सर्जित ही न हो, इस हेतु 'बेनामी लेनदेन (निषेध) विधेयक' अस्तित्व में ला दिए हैं। दोनों कानून एक साथ वजूद में आने से यह उम्मीद जग गई थी कि कालेधन पर कालांतर में लगाम लगेगी, जो अब सच्चाई में बदलती दिख रही है।

कालेधन के जो कुबेर राष्ट्र की संपत्ति राष्ट्र में लाकर बेदाग बचे रहना चाहते हैं, उनके लिए अघोषित संपत्ति देश में लाने के दो उपाय सुझाए गए हैं। वे संपत्ति की घोषणा करें और फिर 30 फीसदी कर व 30 फीसदी जुर्माना भरकर शेष राशि का वैध धन के रूप में इस्तेमाल करें। इस कानून में प्रावधान है कि इसी प्रकृति का अपराध दोबारा करने पर तीन से 10 साल की कैद के साथ 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक का अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है। जाहिर है, कालाधन घोषित करने की यह कोई सरकारी योजना नहीं थी। अलबत्ता अज्ञात विदेशी धन पर कर व जुर्माना लगाने की ऐसी सुविधा थी, जिसे चुकाकर व्यक्ति सफेदपोश बना रह सकता है। ऐसा ही उपाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देशी कालेधन पर 30 प्रतिशत जुर्माना लगाकर सफेद करने की सुविधा दी थी। इस कारण सरकार को करोड़ों रुपये बतौर जुर्माना मिल गए थे और अरबों रुपये सफेद धन के रूप में तब्दील होकर देश की अर्थव्यस्था मजबूत करने के काम आए थे।

कालाधन उत्सर्जित न हो, इस हेतु दूसरा कानून बेनामी लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। यह विधेयक 1988 से लंबित था। इस संशोधित विधेयक में बेनामी संपत्ति की जब्ती और जुर्माने से लेकर जेल की हवा खाने तक का प्रावधान है। साफ है, यह कानून देश में हो रहे कालेधन के सृजन और संग्रह पर अंकुश लगाने के लिए है। यह कानून मूल रूप से 1988 में बना था। लेकिन अंतर्निहित दोषों के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। इससे संबंधित नियम पिछले 27 साल के दौरान नहीं बनाए जा सके। नतीजतन, यह अधिनियम धूल खाता रहा। जबकि इस दौरान जनता दल, भाजपा और कांग्रेस सभी को काम करने का अवसर मिला। इससे पता चलता है कि हमारी सरकारें कालाधन पैदा न हो, इस पर अंकुश लगाने के नजरिए से कितनी लापरवाह रही हैं। अब मोदी सरकार में कालेधन को वापस लाने के प्रयास लगातार बन रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत के निवेदन पर स्विट्जरलैंड सरकार से जो समझौते हुए थे, उनके तहत स्विस बैंकों में भारतीयों के खातों की जानकारी मिलना तय थी। दरअसल स्विट्जरलैंड ने कालाधन की पनाहगाह की अपनी छवि सुधारने के लिए कुछ वर्षों में कई सुधार किए हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद दोनों देशों ने अपने संबंध मजबूत बनाने के लिए 'ग्लोबल ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इंफोरमेशन' संधि पर हस्ताक्षर भी किए हैं। इस संधि के तहत ही भारतीय खाताधारकों की सूचना भारत को दी गई है। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने इन नामों को पहले ही उजागर कर दिए हैं। कुछ नामों के संकेत शुरूआती अक्षर के रूप में ही दिए गए हैं। दरअसल, स्विट्जरलैंड के गोपनीय कानून के मुताबिक नाम के पहले अक्षर, जन्म तिथि और उनकी राष्ट्रीयता सार्वजनिक की जाती है।

यदि इस जानकारी के मिलने के बाद भी कालेधन की वापसी शुरू नहीं हुई तो सरकार के लिए कालांतर में समस्या खड़ी हो सकती है। हालांकि ये जानकारियां स्विट्जरलैंड के यूबीए बैंक के सेवानिवृत कर्मचारी ऐल्मर ने एक सीडी बनाकर जगजाहिर कर दी हैं। इस सूची में 17 हजार अमेरिकियों और 2000 भारतीयों के नाम दर्ज हैं। अमेरिका तो इस सूची के आधार पर स्विस सरकार से 78 करोड़ डॉलर अपने देश का कालाधन वसूल करने में सफल हो गया है। ऐसी ही एक सूची 2008 में फ्रांस के लिश्टेंस्टीन बैंक के कर्मचारी हर्व फेल्सियानी ने भी बनाई थी। इस सीडी में भी भारतीय कालाधन के जमाखोरों के नाम हैं। ये दोनों सीडियां संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ही भारत सरकार के पास आ गई थीं। इन्हीं सीडियों के आधार पर राजग सरकार ने कालाधन वसूलने की कार्रवाई को आगे बढ़ाया है, जिसके परिणाम आते दिख रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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