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टैक्स कटौती से नहीं हासिल होगा विकास

👤 Veer Arjun | Updated on:15 Oct 2019 4:46 AM GMT

टैक्स कटौती से नहीं हासिल होगा विकास

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-डॉ. भरत झुनझुनवाला

बीते बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वंपनियों द्वारा अदा किए जाने वाले आयकर, जिसे कॉपरेरेट टैक्स कहा जाता है, उसे लगभग 35 प्रतिशत से बढ़ाकर 43 प्रतिशत कर दिया था। उन्होने कहा था कि अमीरों का दायित्व बनता है की देश की जरूरतों में अधिक योगदान करें। बीते माह उन्होंने अपने कदम को पूरी तरह वापस ले लिया और वंपनियों द्वारा अदा किए जाने वाले आयकर को घटाकर लगभग 33 प्रतिशत कर दिया है।

इस उलटपेर से स्पष्ट होता है कि आयकर की दर का आर्थिक विकास पर प्रभाव असमंजस में है। यदि आयकर बढ़ाया जाता है तो इसका प्रभाव सकारात्मक भी पड़ सकता है और नकारात्मक भी। यदि राजस्व का उपयोग घरेलू माल की खरीद से निवेश करने के लिए किया गया, जैसे देश में बनी सीमेंट और बजरी से गांव की सड़क बनाईं गईं तो इसका प्रभाव सकारात्मक पड़ेगा। इसके विपरीत यदि उसी राजस्व का उपयोग रापेल फाइटर प्लेन खरीदने के लिए अथवा सरकारी कर्मियों को ऊंचे वेतन देने के लिए किया गया तो प्रभाव नकारात्मक पड़ सकता है।

कारण यह कि रापेल फाइटर प्लेन खरीदने से देश की आय विदेश को चली जाती है जैसे गुब्बारे की हवा निकाल दी जाए। मैं रापेल फाइटर प्लेन का विरोध नहीं कर रहा हूं लेकिन इसके पीछे जो आर्थिक गणित है वह आपके सामने रख रहा हूं। यदि टैक्स कटौती से नहीं हासिल होगा विकास सरकारी कर्मियों को ऊंचे वेतन दिए जाते हैं तो इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशी माल जैसे स्विट्जरलैंड की बनी चॉकलेट खरीदने में अथवा विदेश यात्रा में खर्च हो जाता है जिससे आर्थिक विकास की दर पुन: गिरती है।

देश में मांग उठ रही है कि व्यक्तियों द्वारा देय आयकर में भी कटौती की जाए। इसका भी प्रभाव सकारात्मक पड़ सकता है अथवा नकारात्मक। इतना सही है कि आयकर घटाने से करदाता के हाथ में अधिक रकम बचेगी जैसे करदाता पहले यदि 100 रुपए कमाता था और उसमे से 30 रुपए आयकर देता था तो उसके हाथ में 70 रुपए बचते थे। यदि आयकर की दर घटाकर 25 प्रतिशत कर दी जाए तो करदाता के हाथ में अब 75 रुपए बचेंगे। वह पहले यदि 70 रुपए का निवेश कर सकता था तो अब 75 रुपए का निवेश कर सकेगा। लेकिन यह जरूरी नहीं कि बची हुईं रकम का निवेश ही किया जाएगा। उस रकम को वह देश से बाहर भी भेज सकता है। बताते चलें कि यदि देश में आयकर की दर घटा दी जाए तो भी यह निवेश करने को पर्यांप्त पल्रोभन नहीं है क्योंकि अबूधाबी जैसे तमाम देश हैं जहां पर आयकर की दर शून्य प्राय: है।

मनिपाल ग्लोबल एजुकेशन केटीवी मोहनदास पाईं के अनुसार देश से अमीर बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। वे भारत की नागरिकता त्यागकर अपनी पूंजी समेत दूसरे देशों को जा रहे हैं और उन देशों की नागरिकता स्वीकार कर रहे हैं। पाईं के अनुसार इसका प्रमुख कारण टैक्स कर्मियों का आतंक है। उनके अनुसार आज करदाता महसूस करता है कि उसके टैक्स कर्मियों द्वारा परेशान किया जा रहा है। मेरा अपना मानना है कि वर्तमान सरकार वंप्यूटर तकनीक के उपयोग्ग से आयकरदाताओं और टैक्स अधिकारियों के बीच सीधा संपर्व कम कर रही है जोकि सही दिशा में है लेकिन इसके बाद जब जांच होती है अथवा अपीलीय प्रक्रिया होती है तो करदाता और टैक्स अधिकारियों का आमना सामना होता ही है। मूल बात यह है कि वर्तमान सरकार टैक्स अधिकारियों को ईंमानदार और करदाताओं को चोर की तरह से देखती है। सरकार का यह प्रयास बिल्वुल सही है कि देश में तमाम उदृामी हैं जो देश के बैंकों की रकम को लूटकर जा रहे हैं अथवा टैक्स की चोरी कर रहे हैं। लेकिन एक चोर को दूसरे चोर के माध्यम से पकड़ना कठिन ही है।

मनुस्मृति में कहा गया है कि राजा के कमा मुख्यत: चोर और फरेबी होते हैं और वे जनता का धन लूटते हैं, राजा इनसे अपनी जनता की रक्षा करे यानि मनुस्मृति के अनुसार सरकार के कमा मूलत: चोर होते हैं। लेकिन वर्तमान सरकार की दृष्टि में सरकार के कमा ईंमानदार हैं और करदाता चोर हैं। अत: वंप्यूटर तकनीक से जो सुधार किया जा रहा है उससे कर्मियों का मूल भाव बदलता नहीं दिखता है। परिणाम यह है की टैक्स के आतंक के चलते देश से अमीरों का पलायन जारी है। अमीरों के पलायन का दूसरा प्रमुख कारण जीवन की गुणवत्ता बताया जा रहा है। देश में वायु की गुणवत्ता गिरती जा रही है। मेरे एक मित्र दिल्ली में रहते थे उनकी पत्नी का वजन बिना किसी कारण के 45 किलो से घटकर 25 किलो हो गया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली को छोड़ा और देहरादून में आकर बसे।

बिना किसी दवाईं के उनकी पत्नी का वजन पुन: बढ़ गया। वायु की घटिया क्वालिटी के कारण अमीर अपने देश में रहन पसंद नहीं कर रहे हैं। इसी प्रकार ट्रैफिक की समस्या है जिसके कारण वे यहां नहीं रहने चाहते हैं। इस दिशा में सरकार का प्रयास उलटा पड़ रहा है। जैसे सरकार ने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों द्वारा उत्सर्जित जहरीली गैसों के मानकों में हाल में छूट दे दी है। उन्हें वायु को प्रदूषित करने का अवसर दे दिया है।

इस छूट का सीधा परिणाम यह है कि बिजली संयंत्रों द्वारा उत्पादन लागत कम होगी और आर्थिक विकास को गति मिलेगी। लेकिन उसी छूट के कारण वायु की गुणवत्ता में गिरावट आएगी और देश के अमीर यहां से पलायन करेंगे और विकास दर घटेगी जैसा हो रहा है। इसी प्रकार सरकार ने गंगा के ऊपर बडे जहाज चलाने का निर्णय लिया है। सीधे तौर पर बड़े जहाज चलेंगे ढुलाईं का खर्च कम होगा और आर्थिक विकास को गति मिलेगी।

लेकिन इन्हीं बड़े जहाजों से गंगा का पानी प्रदूषित होगा, गंगा का सौंदर्यं खंडित होगा और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आएगी। अत: सरकार को किसी निर्णय को लेते समय जीवन की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा और पर्यांवरण को बोझ समझने के स्थान पर पर्यांवरण की रक्षा के इस आर्थिक लाभ का भी मूल्यांकन करना होगा। तीसरा बिदु सामाजिक है। अमीर व्यक्ति चाहता है कि उसे वैचारिक स्वतंत्रता मिले। वह अपनी बात कह सके। लेकिन बीते समय में देश में स्वतंत्र विचार को हतोत्साहित किया गया है।

जो व्यक्ति सरकार की विचारधारा से विपरीत सोचता है, उसके ऊपर किसी न किसी रूप से दबाव डाला रहा है। इन तमाम कारणों से अमीरों को भारत में रहना पसंद नहीं आ रहा है और वह देश से पलायन कर रहे हैं। वित्तमंत्री द्वारा टैक्स कॉपरेरेट वंपनियों द्वारा अथवा व्यक्तियों द्वारा जो आयकर में कटौती की गईं है अथवा जी शीघ्र किए जाने की संभावना है उससे देश के आर्थिक विकास को कोईं अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि मूल समस्या सांस्वृतिक है। देश ने जो नौकरशाही को ईंमानदार, पर्यांवरण की हानि को आर्थिक विकास का कारक और वैचारिक विभिन्नता को नुकसानदेह दृष्टि से देख रखा है उसका सीधा परिणाम है कि देश के अमीर देश को छोड़कर जा रहे हैं और देश की आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ रही है।

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