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पुलिस सुधारों से बनेगी जनता की पुलिस

👤 Veer Arjun | Updated on:16 Oct 2019 6:19 AM GMT

पुलिस सुधारों से बनेगी जनता की पुलिस

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-कर्नल (से.नि.) शिवदान सिंह

5 अक्‍टूबर को देश में हर साल पुलिस सुधार दिवस मनाया जाता है और इस साल भी दिल्ली में पुलिस फाउंडेशन नाम की संस्था ने इस दिवस के अवसर पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जिसमें देश के उपराष्ट्रपति मुख्य अतिथि थे। इस गोष्ठी में राज्यों के पुलिस प्रमुख तथा समाज के विचारकों ने अपने विचार रखे। सर्वप्रथम गोष्ठी में देश में मौजूदा पुलिस व्यवस्था के इतिहास के बारे में बताया गया। इसके अनुसार 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के विफल होने के बाद अंग्रेजी सरकार ने भारत के शासन को ईंस्ट इंडिया वंपनी के हाथों से छीन कर सीधा अपने हाथों में ले लिया तथा अपने शासन को और भी मजबूत और दमनकारी बनाने के लिए भारत में पुलिस एक्ट 1861 लागू कर दिया। जिसके अनुसार पुलिस केवल शासकों के प्रति ही उत्तरदायी होती है जबकि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में पुलिस को जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।

आजादी के बाद यही पुलिस एक्ट लागू रहा तथा जगह-जगह पुलिस की जनता के प्रति असंवेदनशीलता तथा दमनकारी चेहरा नजर आता रहा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1975 में इमरजेंसी के दौरान देखने में आया जब पुलिस ने देश के पूरे विपक्ष को जेलों में डाल दिया और जनता के साथ तरह-तरह की दमनकारी कार्यंवाही की। 1977 में जनता पाटा की सरकार आने के बाद सरकार ने पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए एक पुलिस आयोग गठित किया जिसकी अध्यक्षता उस समय के जानेमाने आईंसीएस अधिकारी श्री धर्मवीर कर रहे थे। इस आयोग ने 8 भागों में अपनी रिपोर्ट तथा सुझाव तत्कालीन सरकार को सौंपी परंतु दुर्भाग्य से जनता पाटा की सरकार सत्ता से हट गईं तथा यह सुझाव ठंडे बस्ते में चले गए। यह लंबे समय तक चलता रहा आखिर में पुलिस के एक वरिष्ठ भूतपूर्व अधिकारी श्री प्रकाश सिह ने 1996 में देश की उच्चतम न्यायालय में उपरोक्त सुधारों को देश में लागू कराने के लिए याचिका दायर की।

इस याचिका में उन्होंने पुलिस एक्ट 1861 की भावना के बारे में अदालत को बताया तथा अदालत से प्रार्थना की जिसमें स्वतंत्र भारत में इस प्रकार के पुलिस एक्ट के स्थान पर प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अनुसार पुलिस प्रणाली लागू होनी चाहिए इसके लिए उन्होंने पुलिस आयोग द्वारा सुझाए सुझावों को पुलिस सुधारों के रूप में देश में लागू करने के लिए सुझाव दिया। जिससे देश की पुलिस अंग्रेजी पुलिस की तरह व्यवहार न करके एक प्रजातांत्रिक भारतीय पुलिस की तरह अपना कार्यं करें जिसमें हर देशवासी को उचित न्याय तथा सुरक्षा प्राप्त हो सके। इस याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय ने 2006 में आदेश पारित किए तथा देश के सभी राज्यों तथा वेंद्र सरकार को निर्देश दिए कि वह जनवरी 2007 तक पुलिस सुधारों को लागू करके अदालत को सूचित करें। इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य पुलिस को सत्ताधारी राजनीतिक दलों के दबाव से मुक्त करना तथा उन्हें अपने कर्तव्य को निष्पक्षता तथा जनता को न्याय दिलाने वाला बनाना है। परंतु आजादी के बाद से आज तक देश के अनेक हिस्सों में राजनीतिक दलों के दबाव में पुलिस का पक्षपाती रवैया तथा जनता के प्रति सामंती चेहरा ही नजर आता है।

जैसा कि अभी वुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के उन्नाव तथा सोनभद्र में देखने में आया। उन्नाव में एक नाबालिग युवती के साथ सत्ताधारी दल के विधायक ने सामूहिक बलात्कार किया परंतु 2 साल तक पुलिस ने इस पीिड़ता की शिकायत भी दर्ज नहीं की आखिर में पीिड़ता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास के सामने आत्महत्या का प्रयास किया जिसके बाद मीडिया की सव््िरायता के कारण पुलिस हरकत में आईं उसके बाद भी पीिड़त परिवार को उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय में विधायक के विरुद्ध कार्यंवाही के लिए जाना पड़ा।

इसी प्रकार सोनभद्र में 1955 से लेकर आज तक बाहुबलियों नौकरशाहों तथा राजनीतिज्ञों ने जमीदारी उन्मूलन के बाद बेनामी जमीनों में बड़े स्तर पर हेरापेरी की तथा गरीब आदिवासियों की जमीनों को झूठी सोसाइटियों में दिखाकर बेच दिया और इसी प्रकार के प्रकरण में दबंगों ने पुलिस की सांठगांठ के साथ 10-10 आदिवासियों को सरेआम गोलियों से उड़ा दिया जैसा कि अकसर हिदी सिनेमा में दिखाया जाता है। इस प्रकार की घटनाएं देश के हर राज्य में देखने में आती है पूरा देश उस समय कांप उठा जब बिहार में बाहुबली राजनीतिक सैयद शहाबुद्दीन ने दो भाइयों को एसिड में डूबा कर बड़ी बेरहमी से मार डाला क्योंकि बिहार में उस समय शहाबुद्दीन की पाटा सत्ता में थी इसलिए इस पूरे प्रकरण पर पुलिस मूकदर्शक बनी रही और पुलिस इस बाहुबली की मदद ही करती नजर आईं। इस प्रकरण में पीिड़त परिवार की बेबसी तथा निराशा कल्पना से परे थी आखिर में परिवार को न्याय पाने के लिए उच्चतम न्यायालय जाना पड़ा तब जाकर सीबीआईं ने इसमें कार्यंवाही की। तो क्या पुलिस गीता में दिए गए उस श्लोक परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्वृताम। धर्म संस्थापनाथ्यि समंवामि युगे युगे।।

यह श्लोक उत्तर प्रदेश के हर पुलिस स्टेशन में लिखा रहता है जो यह दर्शाता है की उत्तर प्रदेश की पुलिस श्लोक की भावना जिसमें भगवान वृष्ण ने कहा है कि दुष्टों का विनाश तथा सज्जनों की रक्षा होनी चाहिए को अपना उद्देश समझती है। तो क्या उपरोक्त घटनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पुलिस दुष्टों को उनके किए की सजा दे रही है तथा सज्जनों की रक्षा कर रही है। अकसर देश में संगठित अपराध केवल सत्ता के नजदीक रहने वाले अपराधी ही करते हैं परंतु पुलिस सत्ता के दबाव के कारण इन अपराधों की तरफ अनजान बनी रहती है। बाद में इनके कारण बड़े-बड़े नरसंहार या नारियों के विरुद्ध अपराध होते हैं तब सरकारें जांच आयोग गठित करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती हैं। जैसा कि अकसर जहरीली शराब तथा मुजफ्फरपुर नारी सुरक्षा गृह में लंबे समय तक बालिकाओं का शारीरिक शोषण जैसी घटनाएं होती रहती हैं परंतु स्थानीय पुलिस इनसे अनजान बनी रहती है। सरकार इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्यंवाही का आश्वासन देती है परंतु क्या आज तक किसी पुलिसकमा को इनके लिए सजा दी गईं तो इसका उत्तर होगा नहीं।

देश की राजनीति की इस वास्तविकता को समझ कर ज्यादातर विचारकों तथा पुलिस प्रमुखों ने यही विचार रखा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुरूप निकटभविष्य में सत्ताधारी राजनीतिक पुलिस से अपना नियंत्रण नहीं हटाएंगे क्योंकि वह पुलिस को सत्ता प्राप्ति का एक जरिया समझते हैं। इसलिए इस समय आवश्यकता है कि पुलिस में आंतरिक सुधार किए जाएं इस स्थिति को समझते हुए माननीय उपराष्ट्रपति श्री वेंवैया नायडू ने इस सम्मेलन में संबोधित करते हुए सभी को प्रधानमंत्री मोदी के गुवाहाटी में पुलिस प्रमुखों के सम्मेलन में दिए भाषण की याद दिलाईं जिसमें उन्होंने पुलिस को स्मार्ट पुलिसिग करने की सलाह दी।

उनके अनुसार स्मार्ट पुलिसिग का मतलब संवेदनशीलता शीघ्रता से घटनास्थल या पीिड़त के पास पहुंचना उचित जांच तथा शीघ्रता से अपराधियों को सजा दिलवाना है। उनके अनुसार पुलिस स्टेशन ऐसा स्थान होना चाहिए जहां पर पीिड़त के साथ मित्रवत तथा सहानुभूति पूर्ण व्यवहार होना चाहिए तथा पीिड़त की द्रवित मानसिक स्थिति को सामान्य बनाने का प्रयास पुलिस को करना चाहिए इसके लिए पुलिसकर्मियों की मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन करने होंगे। इस मीडिया के युग में जहां चारों तरफ पारदर्शिता बढ़ी है वहीं पर अभी आवश्यकता है कि शीघ्र अतिशीघ्र पुलिस आंतरिक सुधारों के द्वारा अपने आप को इस प्रकार बनाना चाहिए जिससे वह शासकों की पुलिस के स्थान पर जनता की पुलिस नजर आए।

इस सम्मेलन में नारी सुरक्षा तथा सामुदायिक पुलिसिग पर भी चर्चा हुईं तथा सहमति बनी कि इसको भी पुलिस प्रणाली में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पुलिस को इस प्रकार का बनाने के लिए पुलिसकर्मियों के ट्रेनिग तथा उनके रखरखाव में भी सुधार किया जाना चाहिए इसके अलावा समय अनुसार आधुनिक तकनीक जैसे डिजिटल प्रणाली का भी प्रयोग बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि आजकल साइबर अपराध बढ़ गए हैं।

हालांकि देश का प्रजातांत्रिक ढांचा धीरे-धीरे सुधर रहा है और निकट भविष्य में आशा की जाती है कि पािमी देशों की तरह हमारे देश में भी पुलिस व्यवस्था उसी प्रकार से निष्पक्ष तथा बिना किसी दबाव के अपना कार्यं कर सकेगी परंतु तब तक पुलिस को स्वयं के आत्म निरीक्षण के बाद अपने अंदर ऐसे बदलाव करने चाहिए जिससे इन स्थितियों में भी पुलिसकमा देश की जनता को उचित न्याय दिलवा सके। इसके लिए सर्वप्रथम पुलिस में आपसी संवाद को बेहतर बनाना होगा क्योंकि पाया गया है की आईंपीएस अधिकारी नौकरशाही की भावना के कारण अपने अधीनस्थों से उस प्रकार का संवाद नहीं रखते हैं जिस प्रकार भारतीय सेना में अधिकारी और सैनिकों के बीच में होता है। पुलिस में दोनों के बीच में संवाद हीनता की एक बहुत बड़ी खाईं है जिसके कारण अकसर जमीनी स्तर का पुलिसकमा गैर जिम्मेदाराना व्यव्हार करता है। इसलिए समय-समय पर पुलिस अधिकारियों को अपने अधीनस्थों का निरीक्षण उनकी ट्रेनिग तथा रखरखाव का पूरा ख्याल रखना चाहिए इस प्रकार पुलिसकर्मियों तथा अधिकारियों के बीच में एक विश्वास पैदा होगा तथा पुलिसकमा अपने अधिकारियों तथा देश के प्रति वफादारी दिखाते हुए देश के कानून को अच्छी भावना से लागू करते नजर आएंगे।

भारतीय सेना में शाबाशी तथा सजा दोनों का प्रावधान साथ-साथ है। यदि अच्छे कामों के लिए पुरस्कार दिया जाता है तो वहीं पर शीघ्र अतिशीघ्र गलतियों के लिए सेना के कानून के अनुसार सजा भी दी जाती है। इसलिए सेना में कर्तव्य परायणता तथा अनुशासन ऊंचे स्तर का है। इसको देखते हुए पुलिस को भी सेना के कानून की तरह स्वयं के लिए कानून बनाना चाहिए जिसके द्वारा दोषी पुलिस कर्मियों को शीघ्र अतिशीघ्र सजा देकर अनुशासनहीनता पर लगाम लगाईं जा सके। इस प्रकार देश की जनता को उनकी अपनी पुलिस प्राप्त होगी।

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