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आईएसआईएस का खतरा खत्म नहीं

👤 manish kumar | Updated on:5 Nov 2019 4:33 AM GMT

आईएसआईएस का खतरा खत्म नहीं

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इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के प्रमुख अबू बकर अल-बगदादी की मौत से दुनिया के कई देशों पर मंडराता रहा आतंकी खतरा क्या खत्म हो गया है? सवाल का सीधा जवाब है, नहीं। कारण यह है कि बगदादी के लड़ाके मैदानी लड़ाई में भले ही हारते रहे हों लेकिन कई देशों में पनप चुके और वहां पल रहे बगदादी समर्थकों के रहते सभी संबंधित पक्षों को हर पल चौकन्ना रहना होगा।

बगदादी और आईएसआईएस के प्रवक्ता अबू हसन अल मुहाजिर की मौत जेहादी संगठन के लिए एक साथ लगे दो बड़े झटके हैं। इन मौतों से आईएसआईएस लड़ाकों के मनोबल पर असर पड़ना स्वाभाविक है। फिर भी यह कहना जल्दबाजी होगा कि इस जेहादी संगठन की कमर तोड़ दी गई है। बगदादी ने उत्तरी-पश्चिमी सीरिया के गांव में अमेरिकी सैन्य दस्ते के छापे के दौरान स्वयं को विस्फोट से उड़ा लिया था। बगदादी की मौत के कुछ घंटों बाद ही उत्तरी सीरिया में कुर्दिश फौज के साथ चलाये गए अमेरिकी संयुक्त अभियान में अल-मुहाजिर को मार गिराया गया। 2016 से संगठन के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे मुहाजिर को बगदादी का करीबी बताया जाता था।

सीरिया में मैदानी लड़ाई में पराजय के सात माह बाद बगदादी और मुहाजिर के मारे जाने से इस्लामिक स्टेट को बड़ा झटका लगा है। जेहादी संगठन ने नए नेता के रूप में अबू इब्राहिम अल-हाशिमी के नाम की घोषणा की है। नया प्रवक्ता भी नियुक्त कर दिया गया। हाशिमी की पहचान अभी स्पष्ट नहीं की गई है। माना जाए कि संगठन में उसका एक स्तर तक दबदबा रहा होगा। बगदादी की मौत के बाद जिस तरह हाशिमी की नियुक्ति की घोषणा की गई उससे स्पष्ट है कि आईएसआईएस को इस तरह की परिस्थितियों का अनुमान रहा है। उसने भविष्य के नेतृत्व को लेकर नाम तय कर रखे हैं। अब देखना यह होगा कि आईएसआईएस में जान फूंकने के लिए हाशिमी क्या कर पाता है? मैदानी लड़ाई के लिए लड़ाके जुटाना और पुन: फौज खड़ा करना काफी कठिन काम होगा। आईएसआईएस की उम्मीद दुनियाभर में फैले उसके हमदर्दों और समर्थकों पर टिकी होगी। दूसरा सच यह है कि आईएसआईएस से मोह टूटने के उदाहरण सामने आते रहे हैं। अन्य देशों के कट्टरपंथी तत्वों में आईएसआईएस के प्रति कमजोर होते मोह की वजह सीरिया में आईएसआईएस का पराजय और इराक में उस पर भारी दबाव को माना जाता है। हां, यह आशंका निर्मूल नहीं है कि भविष्य में अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए आईएसआईएस आत्मघाती हमलों और विस्फोटों के रास्ते को अपना सकता है।

एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का कहना सही है कि बगदादी के मारे जाने से आईएसआईएस खत्म नहीं हो गया। उनका मत है कि बगदादी की मौत से यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि उसके साथ वह विचारधारा खत्म हो गई जिसने आईएसआईएस को जन्म दिया था। हाशिमी को नया खलीफा बनाये जाने की खबरें क्या इस आशंका को सच साबित नहीं कर रही हैं? अभी यह कहना मुश्किल है कि बगदादी की तुलना में नया खलीफा कितना प्रभावशाली साबित हो पाएगा। लेकिन, बात यहां किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि सोच और विचारधारा की है। इनमें बदलाव के बगैर नए-नए बगदादियों को पैदा होने से रोक पाना मुश्किल है। याद करें कि 2011 में इराक से अमेरिकी सेना हटने के मात्र डेढ़ साल के अंदर अलकायदा ने इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। उसने अपना रूप बदला और मैदान में आईएसआईएस दिखाई देने लगा। इसके साथ कट्टरवाद का ताण्डव शुरू हो गया। दुनियाभर के जेहादियों को अपना सपना साकार होते दिखाई देने लगा। खिलाफत की घोषणा करते हुए बगदादी को खलीफा बनाया गया।

सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर एक कई देशों के कट्टरपंथी युवाओं को लुभाने में आईएसआईएस काफी हद तक सफल रहा। ऐसा माना जाता है कि अकेले पश्चिमी जगत से पांच हजार युवा आईएसआईएस में गए। जो जहां है, उसे वहीं से खिलाफत का साथ देने का संदेश फैलाया गया। ऐसा करके आईएसआईएस ने कई देशों में अपने स्लीपर सेल पैदा कर लिए। श्रीलंका में आतंकी हमला इसका प्रमाण है। अपुष्ट जानकारी के अनुसार भारत से ही सौ से अधिक युवा आईएसआईएस से जुड़ गए। माना जाता है कि भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मालद्वीव पर आईएसआईएस की विशेष नजर रही है।

आईएसआईएस को लेकर किए जाते रहे मंथन से यह गंभीर सवाल अवश्य उठा कि आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर से बड़ी संख्या में युवा आईएसआईएस की ओर से लड़ने के लिए सीरिया और इराक जाते रहे हैं। इनमें खासी संख्या उच्च शिक्षित युवाओं की रही है। इस संबंध में पाकिस्तानी मूल के इस्लामी विद्वान जावेद अहमद घामिदि के विचारों को जानना चाहिए। वह कहते हैं कि कच्ची उम्र के बच्चों के मस्तिष्क में धर्म को लेकर भरे जा रहे गलत विचार ही समस्या की जड़ हैं। उनका मानना है कि यह काम मदरसों और कई बार परिवारों में किया जाता है, खुलेआम नहीं तो लुके-छुपे तौर पर। घामिदि सभी मुस्लिम देशों को सलाह दे चुके हैं कि किसी को बच्चों के कोमल मन में धर्म की गलत व्याख्या कर जहर घोलने की छूट नहीं दें। उनका कहना है कि बच्चों के लिए 12 सालों की आधारभूत व्यापक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। इसके बाद उन्हें यह छूट हो कि वो धार्मिक विद्वान बनना चाहते हैं या डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक या फिर कुछ और। बात तर्कसंगत है। बगदादी ने क्या किया था? उसने स्वयं को आईएसआईएस का नेता और मुस्लिमों का खलीफा घोषित कर लिया था। आईएसआईएस द्वारा जारी किए गए वीडियो देखकर सारी दुनिया से हजारों कट्टर युवा सीरिया-इराक पहुंचने लगे ताकि खिलाफत के सिपाही बनकर इराक सरकार, अमेरिका तथा उसके पश्चिमी साथियों के विरूद्ध लड़ सकें। आईएसआईएस के कब्जे वाले क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुए। मुख्यधारा के मुस्लिम तक खौफ में जीने लगे। रोंगटे खड़े कर देने वाली कू्ररता देखने को मिली।

अमेरिकी सेना की सेंट्रल कमान के जनरल कैनिथ मैकेन्जी कहते हैं, यह मान लेना गलत होगा कि बगदादी की मौत साथ खतरा खत्म हो गया। आईएसआईएस का खतरा अभी भी है। बगदादी की मौत का बदला लेने की कोशिश की जा सकती है, क्योंकि वह विचारधारा अभी जिन्दा है जिसने बगदादी को बनाया था। जनरल मैकेंन्जी सही कह रहे हैं। खतरा कहीं से भी हो सकता है। बगदादी की मौत के बाद सोशल मीडिया में आए आईएसआईएस के समर्थकों के कमेंट्स देखिये। बदला लेने की धमकी दी जा रही है। आईएसआईएस ने अमेरिका से अधिक खुश नहीं होने को कहा है। यह धमकी नहीं तो और क्या है? हिस

अनिल बिहारी श्रीवास्तव

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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