Home » खुला पन्ना » राम को न्याय मिला राम के देश में

राम को न्याय मिला राम के देश में

👤 mukesh | Updated on:11 Nov 2019 6:02 AM GMT

राम को न्याय मिला राम के देश में

Share Post

- आर. के. सिन्हा

आखिर राम के देश भारत में उसी जगह भव्य राम मंदिर बनेगा जहां पर उनका जन्म हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर माना कि बाबरी मस्जिद को राम जन्मभूमि के ऊपर निर्मित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसलिए बेहद खास रहा, क्योंकि 5 सदस्यीय पीठ का यह फैसला सर्वानुमति से आया है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के भी न्यायाधीश बैठे थे। सभी जजों ने साक्ष्यों के आधार पर यह माना कि राम जन्मस्थान वही है।

वे इस नतीजे पर पहुंचे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व में किए गए रिसर्चपूर्ण खुदाइयों के आधार पर। एएसआई ने अपने रिसर्च में पाया था कि जिस स्थान पर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मस्जिद बनाई थी, वहीं पर पहले राम मंदिर था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का काम बहुत आसान हो गया, अपने फैसले को सुनाने में। माननीय न्यायाधीशों ने यह तो माना कि बाबरी ढांचे को वहीं खड़ा किया गया था जहां खुदाई में 12वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर के विध्वंस मिले हैं। लेकिन, यह भी माना कि मंदिर को तोड़ा गया, इसके सबूत नहीं मिले। जाहिर-सी बात है कि 2019 में 1528 ई. के प्रमाण ढूंढ निकालना आसान काम तो नहीं था। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया कि बाबरी ढांचा खुली जमीन पर बनाया गया था। जहां पहले से कुछ भी न था।

सुप्रीम कोर्ट के 9 नवम्बर को दिए फैसले के साथ ही अब राम जन्मभूमि को लेकर खड़ा 500 वर्ष पुराना विवाद भी समाप्त हो गया। जहां राम का जन्म हुआ था, उसी स्थान पर भव्य राम मंदिर बनेगा। इस विवाद से भारत में सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की बार-बार कोशिशें भी हुई। दंगे हुए और सैकड़ों मासूमों की जानें भी गई। राम के भारत में राम का घोर अपमान भी हुआ। क्या राम के बिना भारत की कल्पना भी की जा सकती है? राम भारत के कण-कण में हैं, आत्मा में हैं। हजारों वर्षों से राम भारत के आराध्य रहे हैं। उनके जन्मस्थान पर अतिक्रमण किया जाना सच में किसी पाप से कम नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने उस अन्याय को ही अपने फैसले से समाप्त किया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के एक बड़े कदम के रूप में भी देखना होगा। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष के दावे को नहीं माना, पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वे अयोध्या में एक मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि आवंटित करें। सुप्रीम कोर्ट का मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने सम्बंधी फैसला वास्तव में महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट राम जन्मभूमि मुद्दे पर फैसला देते हुए यह भी साबित कर गया कि उसके लिए देश में भाईचारे को बनाए रखना भी बहुत अहम है। पर, अफसोस की बात यह है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जिलानी जी कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के साथ न्याय नहीं किया है। हालांकि अब तक वे बार-बार यही कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वमान्य होगा। उस पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया जाएगा। जिलानी जैसी प्रतिक्रिया हैदराबाद के सांसद ओवैसी की ओर से भी आ रही है। अपने गैर जिम्मेदाराना बयानों के लिए बदनाम ओवैसी कह रहे हैं कि हमें 5 एकड़ जमीन की खैरात नहीं चाहिए। इन दोनों पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस चलाया जाना ही सही रहेगा। ये दोनों देश के शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने का इन्हें किसने अधिकार दिया है? ये भूल रहे हैं कि अपनी गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी से ये शरारती तत्वों को ताकत दे रहे हैं। वे यदि कहीं दंगा भड़काने की कोशिश करेंगे तो ये दोनों अपने भड़काऊ बयानों को कैसे सही ठहरा पाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को भी नहीं माना है। पर, सरकार को यह निर्देश दिया कि राम मंदिर निर्माण के लिए जो ट्रस्ट बनेगा उसमें उसे भी शामिल किया जाए। यानी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसी के पक्ष या विपक्ष में नहीं है। उसने तो जिसके दावे को पूरी तरह से खारिज किया, उसे भी कुछ दिया। मुस्लिम पक्ष के दावों को नहीं माना गया पर उन्हें 5 एकड़ भूमि दी जा रही है। जहां वे मस्जिद बना सकेंगे। पहले का विवादित ढांचा तो मात्र 2.77 एकड़ ही था। सुप्रीम कोर्ट के इस बेहतरीन फैसले को कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम नेता खारिज कर रहे हैं। इस कुत्सित सोच की देशव्यापी निंदा होनी चाहिए।

हालांकि यही मानना पड़ेगा कि सुप्रीम कोर्ट के निष्पक्ष और सर्वग्राह्य फैसले के बाद सारे देश में अमन और शान्ति का वातावरण बना रहा। देशवासी अपना सामान्य कामकाज करते रहे। यह भी लग रहा है कि 1992 और 2019 के बीच का भारत बहुत बदल चुका है। देश की नई पीढ़ी में बहुत सकारात्मक बदलाव आ चुके हैं। आज का भारत बहुत मैच्योर हो चुका है। वह बड़े से बड़े फैसलों को सुनने के लिए तैयार है। उसे जिलानी या ओवैसी जैसे नेता गलत रास्ते पर नहीं लेकर जा सकते। फैसले वाले दिन दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे जामा मस्जिद, ओखला और मुंबई के मुहम्मद अली रोड में जिन्दगी सामान्य रफ्तार से आगे बढ़ती रही। लोग अपने काम धंधे करते रहे।

याद कीजिए इसी मुंबई में 1992 में दाउद इब्राहिम ने कैसे तबाही मचाई थी। पर, अब वो गुजरे दौर की बातें हो चुकी हैं। इसलिए उन पर अब मिट्टी डालने की जरूरत है। राम जन्मभूमि विवाद पर आए फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनना चाहिए और यह भी प्रयास होने चाहिए कि वहां हर वर्ष पूरी दुनिया से लोग आकर दर्शन करें। वह विश्व का महान पर्यटन स्थल बने। हजारों नवयुवकों को इससे रोजगार मिले। सैकड़ों छोटे-बड़े होटल खुलें। मंदिर परिसर के आस-पास रोज रामलीला का मंचन भी हो तो सोने पे सुहागा होगा। थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में और इंडोनेशिया के सभी शहरों में प्रतिदिन रामलीला का बड़े सभागारों में मंचन होता है। उसे देखने के लिए हजारों पर्यटक विश्वभर से प्रतिदिन आते रहते हैं। क्या इस तरह की रामलीला का मंचन हमारे राम की जन्मभूमि अयोध्या में नहीं होना चाहिए?

(लेखक राज्यसभा के सांसद हैं।)

Share it
Top