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न्यायाधीशों का सम्मेलन: विश्व शांति की संवैधानिक कामना

👤 mukesh | Updated on:14 Nov 2019 8:56 AM GMT

न्यायाधीशों का सम्मेलन: विश्व शांति की संवैधानिक कामना

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 अद्भुत और अभूतपूर्व है। विश्व के किसी अन्य संविधान में इस प्रकार का प्रावधान नहीं है। वस्तुतः यह प्राचीन भारत के चिंतन दर्शन की ही अभिव्यक्ति है। हमारे ऋषियों ने ही वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष किया था। इसी के साथ उन्होंने सभी के सुखी होने की कामना की थी। यह तभी संभव होगा जब विश्व में शांति होगी। भारतीय संविधान निर्माताओं ने भी विश्व शांति को महत्व दिया। भारतीय संविधान में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि को दृष्टिगत रखते हुए लिखा गया है कि अनुच्छेद 51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का, राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का, संगठित लोगों के एक-दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का और अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।

इसी मुद्दे पर लखनऊ में चार दिनों तक विश्व के मुख्य न्यायधीशों का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। समापन पर लखनऊ घोषणापत्र जारी किया गया। इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी, सम्मेलन के संयोजक जगदीश गांधी और गीता गांधी ने वहां उपस्थित न्यायाधीशों के साथ संयुक्त रूप से जारी किया। इसमें विश्व के सभी देशों से कई मुद्दों पर अपील करने का निर्णय लिया गया। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर का पुनरावलोकन व उचित संशोधन, लोकतांत्रिक आधार पर विश्व संसद का गठन, अंतरराष्ट्रीय कानून की स्थापना, ग्लोबल वार्मिंग पर रोक के संयुक्त प्रयास, सभी स्कूलों में शांति शिक्षा, घातक अस्त्र-शस्त्र को समाप्त करना, आतंकवाद, उग्रवाद तथा युद्ध समाप्त करने के प्रयास, मानवाधिकार, मूलाधिकार के आधार पर व्यक्ति का सम्मान, राष्ट्रीय सरकार की प्रेरणा, अंतर सांस्कृतिक समझ बढ़ाने के प्रयास आदि विषय शामिल रहे। ये प्रस्ताव सभी देशों के शासकों, मुख्य न्यायाधीशों और संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को भेजने का भी निर्णय किया गया। लखनऊ का सीएमएस ऐसा पहला संस्थान है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करता है। इसके माध्यम से विश्व शांति का आह्वान किया जाता है। इसमें कई देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पार्लियामेन्ट के स्पीकर, न्यायमंत्री, इण्टरनेशनल कोर्ट के न्यायाधीशों समेत 71 देशों के 300 से अधिक न्यायविद व कानूनविद उपस्थित थे।

इस बार इरीटिया के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मेन्केसियस बेराकी को महात्मा गांधी अवार्ड प्रदान कर सम्मानित किया गया। पिछले बीस वर्षों से यह अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। भारतीय संस्कृति आदिकाल से पूरे विश्व को एक साथ लेकर चलने की रही है। एक-दूसरे के साथ मिलकर चलने की भावना के साथ यहां लोग एकत्र होते हैं। यह सम्मेलन विश्व से हथियार इकट्ठा करने की दौड़ खत्म करने तथा भाईचारा बढ़ाने में सहयोगी बन रहा है। सब लोग मिलकर विश्व में एकता, शांति तथा सद्भाव बनाने में सफल होंगे। इसमें त्रिनिदाद एवं टोबैको के राष्ट्रपति एन्थोनी थामस अकीनास कारमोना ने भी विचार व्यक्त किये। यहां भाई-बहन की तरह मानवता की पुकार को सुना जा सकता है। ऐसे प्रयासों से युवा पीढ़ी अपने युग की समस्याओं से उदासीन नहीं रहेगी। स्वस्थ वातावरण, स्वच्छ जल इत्यादि की दिशा में कार्य करने की यहां प्रेरणा मिलती है। हैती के पूर्व प्रधानमंत्री जीन हेनरी सेंट ने भी विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि यदि हम सबके साथ संसाधनों को बांटना सीख लें, तो हमें वह समानता मिल जाएगी।

भारतीय संविधान विश्वशांति के अनुपालन के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। क्रोएशिया के पूर्व राष्ट्रपति स्टीपन मेसिक ने भी अनुच्छेद 51 को सराहनीय बताया। उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण बदलाव लाने के लिए इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। इजिप्ट सुप्रीम कोर्ट के डेप्युटी चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति आदेल ओमर शेरीफ ने विश्व एकता व साझा प्रयासों पर बल दिया। अफगानिस्तान लंबे समय से अशांति व अराजकता का सामना कर रहा है। वहां की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सैयद यूसुफ हलीम ने कहा कि वह शांति की अहमियत को महसूस करते हैं। आर्टिकल 51 से हम उस तरह की विपदाओं से बच सकते हैं जैसे अफगानिस्तान ने वर्षों तक चले युद्धों में सैकड़ों जानों को खोकर देखी है। दक्षिण अफ्रीका के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोगोंग थामस रीसंग ने कहा कि किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए पहले उसकी जड़ तक जाकर उसकी वजह को समझना आवश्यक है। जब तक विश्व में गरीबी और असमानता है, तब तक हम प्रगति की कल्पना नहीं कर सकते। वास्तव में गरीबी उन्मूलन कोई दया नहीं बल्कि न्याय का विषय है।

समानांतर सत्र में क्रिएटिंग कल्चर ऑफ यूनिटी एण्ड पीस, इस्टेब्लिशिंग रूल ऑफ लॉ, ह्यूमन राइट्स ग्लोबल गवर्नेन्स स्ट्रक्चर टैकलिंग, ग्लोबल इश्यूज सस्टेनबल डेवलपमेन्ट पर विचार किया गया। चर्चा में सहभागी लोगों ने माना कि एक प्रजातान्त्रिक विश्व सरकार का गठन होना चाहिए। विश्व सरकार विश्व संसद और अन्तरराष्ट्रीय कानून व्यवस्था की स्थापना अपरिहार्य है। ढाई अरब बच्चों की ओर से इन मुख्य न्यायाधीशों से विश्व व्यवस्था बनाने में सहयोग की अपील की गई। अंतत: आमराय बनी कि विश्व को बमों का जखीरा नहीं चाहिए। सर्वत्र शांति का माहौल होना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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