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सामाजिक तानेबाने में आई दरार को पाटने की दरकार

👤 mukesh | Updated on:17 Nov 2019 5:22 AM GMT

सामाजिक तानेबाने में आई दरार को पाटने की दरकार

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- अनिल निगम

भौतिकतावादी परिवेश और प्रतिस्पर्धा ने पारिवारिक एवं सामाजिक ताने-बाने को तार-तार करना शुरू कर दिया है। अखबारों और टीवी न्‍यूज चैनलों में ये खबरें आम हो गई हैं कि संपत्‍ति के लिए बेटे ने बाप, मां या भाई की हत्‍या कर दी। इसी तरह से यह देखा जा रहा है कि भाई ने बहन, बाप ने बेटी, ससुर ने बहु के साथ दुष्‍कर्म कर रिश्‍तों को कलंकित किया। निस्‍संदेह, ऐसा होना भारतीय संस्‍कृति और संयुक्‍त परिवार की अवधारणा के पूरी तरह से प्रतिकूल है। ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि भारतीय समाज में संबंधों की मर्यादा और परिवार की एकजुटता क्‍यों भंग हो रही है? क्‍या हमारा समाज दिशाहीन और नेतृत्‍वविहीन होता जा रहा है? ये घटनाएं राष्‍ट्र और समाज के निर्माण में किस तरह से बाधक हैं?

विभिन्‍न कारणों की मीमांसा करने के पूर्व हाल में होने वाली चंद घटनाओं की चर्चा उचित होगी। दक्षिणी दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन में 7 नवंबर को 38 वर्षीय सुमित ने मामूली झगड़े के चलते पत्‍नी की हत्‍या कर दी। कुछ इसी तरह हाल ही में दिल्‍ली के नजफगढ़ में एक युवक ने पत्‍नी की गला दबाकर हत्या कर दी। 21 अक्‍टूबर को उत्‍तर प्रदेश के कासगंज में संपत्‍ति बंटवारे को लेकर हुई गोलीबारी में दो सगे भाइयों की मौत हो गई। पिछले ही महीने उत्‍तर प्रदेश के संत कबीर नगर में बेटे ने जरा-सी बात के लिए अपने पिता को गोली मार दी। कैथल में नाली विवाद को लेकर भतीजे की बहू व उसके बेटे ने एक बुजुर्ग महिला को पीट-पीटकर मार डाला। इसी तरह से रिश्‍तों को कलंकित करने वाली दुष्‍कर्म की अनेक घटनाएं देश में हाल ही में घटी हैं।

ये घटनाएं आज संयुक्त परिवारों और रक्त संबंधों में बिखराव की कहानी तो कहती ही हैं, रातों-रात सफलता की बुलंदी पर पहुंचने की लालसा जैसे कारणों को भी प्रदर्शित करती हैं। यूं तो हमारे देश में पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में खूनी जंग का भी एक लंंबा इतिहास रहा है, लेकिन पूर्व में इस तरह की घटनाएं राजघरानों के आपसी स्वार्थों के टकराने तक ही सीमित थीं। आज यह समस्‍या बेहद गंभीर हो गई है।

वास्‍तविकता तो यह है कि संस्कारों की कमी के कारण रिश्तों का क्षरण हो रहा है। परिवारों के अंदर बड़ों और अपनों के लिए मर्यादा और सम्‍मान कम हो रहा है। युवा पीढ़ी की निगाह में रिश्ते ज्यादा मायने नहीं रखते हैं। आज संयुक्‍त परिवार टूट चुके हैं। गांवों के ज्‍यादातर लोग रोजगार की तलाश में शहरों और महानगरों में बस गए हैं। इन महानगरों में सबसे बड़ा संकट यह है कि लोग एक-दूसरे से यहां अनजान की तरह रहते हैं। किसी के पास किसी अन्‍य के लिए फुर्सत नहीं है। कोई अप्रिय घटना घट जाए तो किसी का साथ मिलेगा भी, इसमें संदेह रहता है। आज लगभग प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति असंतुष्ट है। संयुक्‍त परिवार की पाठशाला में पहले जिस तरह से व्‍यक्‍ति के अंदर संस्‍कारों की सर्जना की जाती थी, अब वह लगभग विलुप्‍त हो चुकी है।

इंटरनेट क्रांति के बाद सोशल मीडिया के माध्‍यम से युवाओं के बीच परोसी जा रही सामग्री ने उनको और अधिक संवेदनहीन और संस्‍कारविहीन कर दिया है। आज युवाओं का सबसे बड़ा और अच्‍छा दोस्‍त उनका स्‍मार्टफोन बन गया है। वे परिवार और समाज में रहते हुए भी एक-दूसरे के प्रति अजनबी की तरह व्‍यवहार करते हैं। यही कारण है कि उनकी सोच और प्रवृत्तिति हिंसक होती जा रही है। यही नहीं, परिवार और समाज में बढ़ते अपराधों के लिए यही चीज जिम्‍मेदार है। अगर हमारे समाज में बुजुर्गों की उपेक्षा बढ़ी है और उन्‍हें उनकी संतानें उनको वृद्धाश्रम भेज रही हैं तो इसका कारण हमारे पारिवारिक मूल्यों का तिरोहित होना है। पति-पत्नी या परिवार व समाज के आत्मीय संबंधों को कमजोर करने वाली घटनाएं सीधे-सीधे सामाजिक ढांचे के दरकने का संकेत देती हैं।

किसी भी समाज का निर्माण परिवारों से और राष्‍ट्र का निर्माण समाज से मिलकर होता है। युवा वर्ग देश का भविष्य के साथ-साथ देश के विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। केंद्र सरकार की राष्ट्रीय युवा नीति-2014 का उद्देश्य `युवाओं की क्षमताओं को पहचानना और उसके अनुसार उन्हें अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना और इसके माध्यम से विश्व भर में भारत को उसका सही स्थान दिलाना है।' आप कल्‍पना कीजिए कि अगर इतनी बड़ी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा मानवीय मूल्‍यों, आदर्शों और संस्‍कारों का त्‍यागकर सिर्फ अपने निहितार्थों को साधने में लग जाए तो भारत को एक सशक्‍त और समृद्ध राष्‍ट्र बनाने का सपना कैसे पूरा होगा। ऐसे में सरकार को वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बदलाव करते हुए गंभीर होती इस समस्‍या पर अंकुश लगाने की समुचित पहल और प्रयास की जरूरत है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।)

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