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राष्ट्रीय एकता की मिसाल थे सरदार वल्लभ भाई पटेल

👤 mukesh | Updated on:14 Dec 2019 7:59 AM GMT

राष्ट्रीय एकता की मिसाल थे सरदार वल्लभ भाई पटेल

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सरदार पटेल स्मृति दिवस (15 दिसम्बर) पर विशेष

- श्वेता गोयल

देश के पहले गृहमंत्री और पहले उप प्रधानमंत्री लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल का भारत के राजनीतिक एकीकरण में अविस्मरणीय योगदान रहा। 31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में एक किसान परिवार में जन्मे सरदार पटेल ने महात्मा गांधी के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। दिल का दौरा पड़ने के कारण 15 दिसम्बर 1950 को 75 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया था। यह प्रतिवर्ष 'सरदार पटेल स्मृति दिवस' के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय एकता की मिसाल रहे सरदार पटेल ने देशवासियों के लिए सदैव अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए। वे स्वतंत्र भारत को एकजुट करने का असाधारण कार्य बेहद कुशलता से सम्पन्न करने के लिए जाने जाते रहे हैं। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की भारत को खण्ड-खण्ड करने की साजिशों को नाकाम करते हुए बड़ी कुशलता से आजादी के बाद 550 से भी अधिक देशी रियासतों तथा रजवाड़ों का एकीकरण करते हुए अखण्ड भारत के निर्माण में सफलता हासिल की थी। समय-समय पर उन्होंने अपने वक्तव्यों द्वारा लोगों को आलस्य त्यागने, मेहनत करने, ईश्वर तथा सत्य में विश्वास रखने, अन्याय का डटकर मुकाबला करने जैसे प्रेरक संदेश दिए और देश के लिए कुछ अलग हटकर कार्य करने को प्रेरित किया। उनके जीवन से जुड़े अनेक ऐसे किस्से सुनने-पढ़ने को मिलते रहे हैं, जिससे उनकी ईमानदारी, दृढ़ निश्चय, समर्पण, निष्ठा और हिम्मत की मिसाल मिलती है।

पटेल उस समय छोटे ही थे और वे अपने पिताजी के साथ अक्सर खेत पर जाया करते थे। एक दिन जब उनके पिताजी खेत में हल चला रहे थे तो वल्लभ भाई पटेल उन्हीं के साथ चलते-चलते पहाड़े याद कर रहे थे। उसी दौरान उनके पांव में बड़ा-सा कांटा चुभ गया किन्तु वे हल के पीछे चलते हुए पहाड़े कंठस्थ करने में इस कदर लीन थे कि उनपर कांटा चुभने का प्रभाव ही नहीं पड़ा। जब एकाएक उनके पिताजी की नजर उनके पांव में घुसे बड़े से कांटे और बहते खून पर पड़ी तो उन्होंने घबराते हुए बैलों को रोका और बेटे के पैर से कांटा निकालते हुए घाव पर पत्ते लगाकर खून बहने से रोका। बेटे की ऐसी एकाग्रता और तन्मयता देखकर वे बहुत खुश हुए और जीवन में कुछ बड़ा कार्य करने का आशीर्वाद दिया।

सरदार पटेल कहा करते थे कि जो काम कल करना है, उसकी बातों में ही आज का काम बिगड़ जाएगा और आज के काम के बिना कल का काम नहीं होगा, इसलिए आज का काम कीजिए तो कल का काम अपने आप हो जाएगा। कल हमें कोई मदद देने वाला है, यही सोचकर अगर आज बैठे रहे तो आज भी बिगड़ जाएगा और कल तो बिगड़ेगा ही। कोशिश करना हमारा फर्ज है और अगर हम अपने फर्ज को ही पूरा न करें तो हम ईश्वर के गुनाहगार बनते हैं। कर्म पूजा है लेकिन हास्य जीवन है और जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है, उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। पिछला दुखड़ा रोना कायरों और हिसाब लगाकर मुकाबले की तैयारी करना बहादुरों का काम है। कठिन समय में कायर लोग बहाना ढूंढ़ते हैं जबकि बहादुर व्यक्ति रास्ता खोज लेते हैं। उतावले उत्साह से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिए।

सरदार पटेल के बाल्यावस्था की एक घटना है, जब उनकी कांख में एक फोड़ा निकल आया था। फोड़े का खूब इलाज कराया गया किन्तु जब वह किसी भी प्रकार ठीक नहीं हुआ तो एक वैद्य ने उनके परिजनों सलाह दी कि इस फोड़े को गर्म सलाख से दागकर फोड़ दिया जाए, तभी यह ठीक होगा। अब न ही परिवार के भीतर और न ही किसी अन्य की इतनी हिम्मत हुई कि वह बच्चे को गर्म सलाख से दागने की हिम्मत जुटा सके। आखिरकार अविचलित बने रहकर सरदार पटेल ने स्वयं ही लोहे की सलाख को गर्म कर फोड़े पर लगा दिया, जिससे वह फूट गया और कुछ ही दिनों में पूरी तरह ठीक हो गया। उनके इस अद्भुत साहस को देखकर पूरा परिवार और आस-पड़ोस के लोग अचंभित रह गए।

सरदार पटेल कहते थे कि बेकार मत बैठिये क्योंकि बेकार बैठने वाला अपना ही सत्यानाश कर डालता है। रात-दिन कार्य करने वाला अपनी इन्द्रियों को आसानी से वश में कर लेता है, इसलिए आलस्य छोड़िये। उनका कहना था कि अगर कोई चीज मुफ्त मिलती है तो उसकी कीमत कम हो जाती है जबकि परिश्रम से पाई हुई चीज की कीमत ठीक तरीके से लगाई जाती है। लोगों को मेहनत और कर्म के लिए प्रेरित करते हुए वह कहते थे कि यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं लेकिन इससे भी बड़ा सच यह है कि किनारे पर ही खड़े रहने वाले लोग तैरना भी नहीं सीखते। अहिंसा का समर्थन करते हुए सरदार पटेल का कहना था कि कायरों की अहिंसा का कोई मूल्य नहीं है। जो तलवार चलाना जानते हुए भी तलवार को म्यान में रखता है, उसी की अहिंसा सच्ची अहिंसा होती है। वह कहते थे कि आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आंखों को क्रोध से लाल होने दीजिए और अपने मजबूत हाथों से अन्याय का डटकर सामना कीजिए।

पटेल सदैव कहते थे कि गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। उनका कहना था कि हमारा सिर कभी न झुकने वाला होना चाहिए। हमें केवल भगवान के आगे झुकना चाहिए, दूसरों के आगे नहीं। जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है, वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीवन जीता है। हमें सदैव ईश्वर और सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए। यहां तक कि अगर हम हजारों की दौलत भी गंवा दें और हमारा जीवन बलिदान हो जाए तो भी हमें मुस्कुराते रहना चाहिए। बहुत बोलने से कोई लाभ नहीं होता बल्कि हानि ही होती है। हमें गम खाना सीखना चाहिए और मान-अपमान सहन करने की आदत डालनी चाहिए। उन्हें देश के छोटे से छोटे स्तर के व्यक्ति की भी कितनी चिंता थी, उसी को व्यक्त करते हुए उन्होंने एकबार कहा था कि उनकी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई भी व्यक्ति अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा न रहे। वह कहते थे कि हर इंसान सम्मान के योग्य है, जितना उसे ऊपर सम्मान चाहिए, उतना ही उसे नीचे गिरने का डर नहीं होना चाहिए। लौहपुरूष का कहना था कि आम का फल समय से पहले तोड़ोगे तो वह खट्टा ही लगेगा और दांत खट्टे हो जाएंगे लेकिन अगर उसे पकने देंगे तो वह अपने आप टूट जाएगा और अमृत के सामान लगेगा।

सरदार पटेल की कर्तव्यपरायणता की कई मिसालें हैं। घटना वर्ष 1909 की है, जब वे वकालत किया करते थे। उस समय उनकी पत्नी झावेर बा कैंसर से पीड़ित थीं और बम्बई के एक अस्पताल में भर्ती थीं। ऑपरेशन के दौरान उनका निधन हो गया। उस दिन सरदार पटेल अदालत में अपने मुवक्किल के केस की पैरवी कर रहे थे, तभी उन्हें संदेश मिला कि अस्पताल में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई है। संदेश पढ़कर उन्होंने पत्र चुपचाप अपनी जेब में रख लिया और अदालत में अपने मुवक्किल के पक्ष में लगातार दो घंटे तक बहस करते रहे। आखिरकार उन्होंने अपने मुवक्किल का केस जीत लिया। केस जीतने के बाद जब न्यायाधीश सहित वहां उपस्थित अन्य लोगों को मालूम हुआ कि उनकी पत्नी का देहांत हो गया है तो सभी ने सरदार पटेल से पूछा कि वे तुरंत अदालत की कार्यवाही छोड़कर चले क्यों नहीं गए? पटेल ने जवाब दिया कि उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय पाने के लिए मुझे दिया था और मैं उसके साथ अन्याय नहीं कर सकता था। एकीकृत भारत के निर्माता सरदार वल्लभ भाई 15 दिसम्बर 1950 को चिरनिद्रा में लीन हो गये।

(लेखिका शिक्षिका हैं।)

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