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भारत की पूर्ण आजादी का सपना

👤 mukesh | Updated on:23 Jan 2020 6:16 AM GMT

भारत की पूर्ण आजादी का सपना

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- डॉ. वंदना सेन

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'-यह केवल नारा भर नहीं था। इस नारे ने भारत में राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा किया, जो भारत की स्वतंत्रता का बड़ा आधार भी बना। सुभाषचंद्र बोस की वीरता की गाथा भारत ही नहीं, विदेशों में भी सुनाई देती है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कथनी और करनी में गजब की समानता थी। वे जो कहते थे, उसे करके भी दिखाते थे। इसी कारण नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कथन से अंग्रेज सरकार घबराती थी। सुभाषचंद्र बोस की लोकप्रियता इतनी थी कि लोग उन्हें प्यार से 'नेताजी' कहते थे। उनके व्यक्तित्व एवं वाणी में एक ओज एवं आकर्षण था। उनके हृदय में राष्ट्र के लिये मर मिटने की चाह थी। उन्होंने आम भारतीय के हृदय में इसी चाह की अलख जगा दी।

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रांत के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी दास बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। प्रारम्भिक शिक्षा कटक में प्राप्त करने के बाद यह कलकत्ता उच्च शिक्षा के लिये गये। आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्होंने अपनी योग्यता का परिचय दिया। देश के लिये अटूट प्रेम के कारण यह अंग्रेजों की नौकरी नहीं कर सके। बंगाल के देशभक्त चितरंजन दास की प्ररेणा से यह राजनीति में आये। गाँधीजी के साथ असहयोग आन्दोलन में भाग लेकर यह जेल भी गये। 1939 में यह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। लेकिन कांग्रेस और गाँधीजी के अहिंसावादी विचार उनके क्रान्तिकारी विचारों से मेल नहीं खाते थे इसलिए इन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। तत्पश्चात नेताजी ने फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। उन्होंने पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य रखा। उनका नारा था 'जय हिन्द'। पूर्ण स्वराज का आशय भारतीय संस्कारों से आप्लावित राज्य। आज भी हमें पूर्ण स्वराज की तलाश है।

सन् 1942 में नेता सुभाषचन्द्र बोस जर्मनी से जापान गये। वहाँ उन्होंने 'आजाद हिन्द फौज' का गठन किया। उनकी फौज ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया। कम पैसों और सीमित संख्या में सैनिक होने पर भी नेताजी ने जो किया, वह प्रशंसनीय है। उन्होंने अंडमान निकोबार को भारत से पहले ही स्वतंत्र करा दिया। नेताजी भारत को महान विश्व शक्ति बनाना चाहते थे। उनकी नजर में भारत भूमि वीर सपूतों की भूमि थी, इसी भाव को वह हर हृदय में फिर से स्थापित करना चाहते थे।

बंगाल के बाघ कहे जाने वाले नेताजी सुभाषचन्द्र बोस 'अग्रणी' स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उनके नारों 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से युवा वर्ग में नये उत्साह का प्रवाह हुआ। पूरे देश में नेताजी के इस नारे को सुनकर राष्ट्रभक्ति की अलख जगी। कहा जाता है कि मृत्यु भी वीर पुरुषों का यश और उनका नाम मिटा नहीं पाती। सुभाषचन्द्र बोस ने भारत की आजादी का जो रास्ता चुना, वह औरों से अलग था। उनके मन में छात्र काल से ही क्रांति का सूत्रपात हो गया था। कॉलेज के दिनों में अंग्रेजी के एक अध्यापक ने हिंदी के छात्रों के खिलाफ नफरत से भरे शब्दों का प्रयोग किया तो उन्होंने उसे थप्पड़ मार दिया। वहीं से उनमें क्रांतिकारी विचारों की रूपरेखा तय हो गयी थी। उनके तीव्र क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से त्रस्त होकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी, जिसकी वजह से देश में अशांति फ़ैल गयी थी। इसके फलस्वरूप उनको उनके घर पर ही नजरबंद रखा गया था। इसी दौरान उन्होंने 26 जनवरी, 1942 को पुलिस और जासूसों को चकमा दे दिया।

नेताजी ने देखा कि शक्तिशाली संगठन के बिना स्वाधीनता मिलना मुश्किल है। वे जर्मनी से टोकियो गए और वहां उन्होंने आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया था। अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर भारत को स्वाधीन करने के लिए बनाई गई थी। आजाद हिन्द ने यह फैसला किया कि वे लड़ते हुए दिल्ली पहुंचकर अपने देश की आजादी की घोषणा करेंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे। जब नेताजी विमान से बैंकाक से टोकियो जा रहे थे तो मार्ग में विमान में आग लग जाने की वजह से उनका निधन हो गया लेकिन नेताजी के शव या कोई चिन्ह न मिलने की वजह से बहुत से लोगों को इस दुर्घटना में नेताजी की मौत को लेकर संदेह रहा।

नेताजी भारत के ऐसे सपूत थे जिन्होंने भारतवासियों को झुकना नहीं बल्कि शेर की तरह दहाड़ना सिखाया। नेताजी ने जो आह्वान किया वह सिर्फ आजादी हासिल करने तक सीमित नहीं था बल्कि भारत के जन-जन का पुरुषार्थ जगाना था। आजादी मिलने के बाद वीर पुरुष ही आजादी की रक्षा कर सकता है। आजादी पाने से ज्यादा आजादी की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। नेताजी जैसे वीर पुरुष को भारतीय इतिहास में हमेशा बेहद श्रद्धा से याद किया जाता रहेगा।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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