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वायुसेना में बढ़ती जंगी बेड़ों की क्षमता

👤 mukesh | Updated on:17 Feb 2020 6:37 AM GMT

वायुसेना में बढ़ती जंगी बेड़ों की क्षमता

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- प्रमोद भार्गव

देश की तीनों सेनाओं का आधुनिकतम शस्त्रों और युद्धक हवाई-जहाजों व हेलिकाॅप्टरों से सुसज्जित होना आवश्यक है। इस दृष्टि से बीते कुछ सालों में भारतीय वायुसेना के जंगी बेड़ों की क्षमता करीब 20 प्रतिशत बढ़ गई। इनमें आधुनिक तकनीक से लैस राफेल, अपाचे, सुखोई और शिनूक जंगी बेड़े शामिल हुए हैं। वायुसेना ने अपनी युद्धक इकाइयों को आक्रमक बनाने के नजरिए से इसकी संरचना में भी बदलाव किए हैं। वायुसेना के युद्ध अभियानों के लिए करीब 2000 योद्धाओं और तकनीशियनों की भर्ती की गई। इन जांबाजों (फाइटर स्क्वाड्रन) की भर्ती से सैन्यबलों में पूर्व से तैनात अधिकारियों पर काम का दबाव भी कम होगा। सेना की एकीकृत मुहिम चलाने की दृष्टि से अब नए पदाधिकारी 'चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ' (सीडीएस) की भूमिका भी अहम होगी।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही रक्षा सौदों में गंभीर रुचि ली जा रही है। अमेरिका से 165 अरब रुपए के लड़ाकू हेलिकाॅप्टर एवं अन्य रक्षा उपकरण खरीदने का बड़ा सौदा हुआ। अमेरिका विमानन कंपनी बोइंग से 22 अपाचे हमलावर हेलिकाॅप्टर और 15 शिनूंक भारी उद्वहन हेलिकाॅप्टर खरीदा जाना देश की सुरक्षा के लिए जरूरी था। फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे के बाद इनका भारत आना शुरू भी हो गया है। एक राफेल विमान की अनुमानित कीमत करीब 58,000 करोड़ रुपए है। यह अंतर सरकारी सौदा फ्रांस और भारत दोनों देशों की सरकारों के बीच सीधा हुआ है इसलिए इसमें दलाली की गुंजाइश रह नहीं गई है। पिछले करीब 20 साल से देश ने लड़ाकू विमानों का कोई सौदा नहीं किया था। इस वजह से वायुसेना में लड़ाकू विमानों की लगातार कमी होती जा रही थी। हालात इतने गंभीर होते जा रहे थे कि उपलब्ध विमानों के बेड़ों की संख्या घटकर 32 के करीब पहुंच गई थी।

लड़ाकू विमान व हथियारों के ये सौदे इसलिए अहम है क्योंकि हमारे पड़ोसी चीन और पाकिस्तान में लड़ाकू विमान लगातार बढ़ रहे हैं। इन दोनों देशों की वायु-शक्ति की तुलना में हमारे पास कम से कम 756 लड़ाकू विमान होने चाहिए। सेना में विमान, हथियार और रक्षा उपकरणों की कमी की चिंता संसद की रक्षा संबंधी स्थाई संसदीय समिति और नियंत्रक एवं महानिरीक्षक की रिपोर्टें भी जताती रही हैं। संसदीय समिति ने तो यहां तक कहा था कि लड़ाकू जहाजी बेड़ों की संख्या में इतनी कमी पहले कभी नहीं देखी गई। यह स्थिति सैनिकों का मनोबल गिराने वाली है। घोटालों में उलझी रही डाॅ. मनमोहन सिंह की सरकार अपने 10 साल के कार्यकाल में विमान खरीदने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाई थी। यह अच्छी बात है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के वजूद में आते ही फ्रांस और अमेरिका से लड़ाकू विमानों के सौदों को परिणाम तक पहुंचाया गया। दरअसल, सौदों में भ्रष्टाचार के चलते इटली की फिनमैकेनिका और उसकी सहयोगी कंपनी अगस्तावेस्तलैंड हेलिकाॅप्टरों की खरीदी में पूर्व वायुसेना अध्यक्ष शशींद्रपाल त्यागी पर सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज होने के बाद संप्रग सरकार ने सैन्य सामग्री खरीदने के मामले में घुटने टेक दिए थे।

अपाचे का सौदा हाइब्रिड है। इस हेलिकाॅप्टर में हथियार, रडार और इलेक्ट्रोनिक युद्ध उपकरण लगे हुए हैं। पिछले एक दशक के दौरान अमेरिकी कंपनियों ने तकरीबन 10 अरब डाॅलर मूल्य के रक्षा सौदे भारत से किए हैं। इनमें पी-81 नौवहन टोही विमान,सी-130,जे सुपर,हरक्यूलियस और सी-17 ग्लोबमास्टर-3 जैसे विमानों की खरीद शामिल है। अपाचे एएच-64 लाॅन्गबो हेलिकाॅप्टर आधुनिक होने के साथ बहुलक्षीय युद्धक विमान है। यह हर मौसम और रात में भी युद्ध अभियानों में सक्रिय रहने की क्षमता रखता है। इसकी सबसे प्रमुख खूबी यह है कि यह एक मिनट से कम समय में 128 लक्ष्यों को चिन्हित कर सकता है और 16 लक्ष्यों पर निशाना साधता हुआ बच निकल सकने की विलक्षणता रखता है। दुश्मन के रडार पर इसका अक्स दिखाई नहीं देता। इसके संवेदी यंत्र आधुनिक हैं और इसकी मिसाइलें, जो दृश्य दिखाई दे रहा है, उससे भी आगे तक प्रहार करने की क्षमता रखती हैं। इसकी अधिकतम गति 315 किमी प्रति घंटा है। जबकि समुद्र में यही गति 240 किमी प्रति घंटा रह जाती है। यह 55 सैनिक और 12,700 किलोग्राम वजन ढो सकता है। कारगिल जैसी ऊंचाई वाली चोटियों पर भी यह हेलिकाॅप्टर पहुंच सकता है। अपाचे और शिनूंक हेलिकाॅप्टरों का उपयोग अफगानिस्तान और ईराक जैसे सैन्य अभियानों में बेमिसाल रहा है।

बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद वायुसेना ने तमिलनाडु के तेंजावुर में सुखोई-30 एमकेआई के बेड़े को तैनात किया है। इस बेड़े में सुखोई विमानों को 2.5 टन के हवा से मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों से लेस किया हुआ है। ये मिसाइलें 300 किलोमीटर की दूरी तक अचूक निशाना साधने में सक्षम हैं। इस एक बेड़े में 18 लड़ाकू विमान होते हैं। पिछले एक साल में वायुसेना ने युद्धक क्षमताओं को बढ़ाते हुए हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों व अन्य घातक हथियारों की क्षमता बढ़ाई है। इनमें बेहतर मारक क्षमता वाले स्पाइस 2000 बम और स्ट्रम अटाका नाम की एंटी-गाइडेड मिसाइलें शामिल हैं।

बहरहाल लड़ाकू विमानों एवं हथियारों की आश्चर्यजनक कमी से जूझ रही वायुसेना के लिए ये विमान एवं हथियार ऑक्सीजन साबित हो रहे हैं, जबकि अभी विमानों की खेपें पूरी नहीं आई हैं। विमान खरीदना इसलिए जरूरी था क्योंकि हमारे लड़ाकू बेड़े में शामिल ज्यादातर विमान पुराने होने के कारण जर्जर हालत में थे। अनेक विमानों की उड़ान अवधि समाप्त होने को है और पिछले 20 साल से कोई नया विमान नहीं खरीदा गया है। सोवियत रूस से 1960 और 70 के दशक में खरीदे गए मिग-21 और मिग-27 विमानों के तीन बेड़ों को भी सेवामुक्त कर दिया गया है। उम्र पूरी हो जाने के कारण ज्यादातर विमान आए दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे थे। जिनमें बहादुर वायु-सैनिकों को बिना लड़े ही शहीद होना पड़ रहा था।

1978 में जब जागुआर विमानों का बेड़ा ब्रिटेन से खरीदा गया था, तब ब्रिटेन ने हमारी लाचारी का फायदा उठाते हुए हमें ऐसे जंगी जागुआर जहाज बेचे थे, जिनका प्रयोग ब्रिटिश वायुसेना पहले से ही कर रही थी। राफेल भी फ्रांस द्वारा प्रयोग में लाए गए विमान हैं। दरअसल, हरेक सरकार परावलंबन के चलते ऐसी ही लाचारियों के बीच रक्षा सौदे करने को मजबूर होती है। लिहाजा जब तक हम विमान निर्माण के क्षेत्र में स्वावलंबी नहीं होंगे, लाचारी के समझौतों की मजबूरी झेलनी ही होगी।

हकीकत तो यह है कि मोदी सरकार को अब लाचारियों से भरी विमान खरीदों के स्थायी समाधान तलाशने की जरूरत है, जो पारदर्शी नीतियों का पालन करने वाली हो। साथ ही एचएएल एवं डीआरडीओ जैसी संस्थाओं का आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण किया जाना नितांत जरूरी है। फिलहाल हमारे यहां हल्के युद्धक विमान और आधुनिकतम हल्के किस्म के हेलीकाॅप्टर बनाए जा रहे हैं। टाटा कंपनी सी-130 माॅडल के विमानों के पुर्जे भारत में बनाकर दूसरे देशों में निर्यात कर रही है। जब ऐसा संभव है तो हम अपने ही देश के लिए शक्तिशाली युद्धक विमानों का निर्माण क्यों नहीं कर सकते? एचएएल भारतीय कंपनियों को उपकरण व पुर्जे बनाने का लाइसेंस देकर इस दिशा में उल्लेखनीय पहल कर सकती है। हालांकि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की मात्रा शत-प्रतिशत कर देने से ये संभावनाएं बढ़ने की उम्मीद है। यदि भविष्य में ऐसा होता है तो हमारी उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' यानी स्वदेशीकरण का जो स्वप्न है, उसके साकार होने की उम्मीद भी बढ़ जाएगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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