इनकम टैक्स देना शान के खिलाफ क्यों?
- आर.के. सिन्हा
अब यह कहने का मन करने लगा है कि हम हिन्दुस्तानियों को अपना इनकम टैक्स अदा करने में बड़ा कष्ट होता है। चूंकि, नौकरीपेशा लोगों का टैक्स तो उनकी सैलरी से ही काट लिया जाता है, पर शेष लोग भारी-भरकम कमाने के बाद भी टैक्स देने से बचते ही रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में इस मसले की निशानदेही भी की थी। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि देश के सिर्फ 22,00 पेशेवरों ने साल 2019 के दौरान अपनी आय एक करोड़ रुपए से अधिक दिखाई। सच में यह आंकड़ा 130 करोड़ की आबादी वाले देश में बेहद छोटा नजर आता है। हालांकि उनके बयान पर कुछ हलकों में नाहक बवाल भी काटा गया। उसमें मीन-मेख भी निकाला गया। मोदी का पेशेवरों से मतलब डाक्टरों, चार्टर्ड एकाउंटेट, वकीलों आदि से था।
दरअसल साल 2018-19 के दौरान भरी गई इनकम टैक्स रिटर्नों से पता चलता है कि मात्र 5.78 करोड़ हिन्दुस्तानियों ने ही अपनी इनकम टैक्स रिटर्न को भरा। इनमें से 1.03 करोड़ ने तो अपनी आय ढाई लाख रुपए या इससे भी कम दिखाई। 3.29 करोड़ ने बताया कि उन्हें 2.5 लाख से 5 लाख रुपए तक की ही आय हुई। अब पांच लाख रुपये तक कमाने वालों को तो कोई टैक्स देना ही नहीं होता है। यानी देश में डेढ़ करोड़ से कुछ कम यानी 1.46 करोड़ लोग ही इस साल टैक्स अदा करने की कैटेगरी में थे। तो 125- 130 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में इनकम टैक्स देने वाले ऊंट के मुंह में जीरे के समान नहीं तो क्या कहे जायेंगे?
अब बताइये कि देश में विकास की इतनी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं कैसे चलेंगी। सरकार की विकास योजनाएं तो उसे मिले टैक्सों से ही चलती है। अब देखिए कि एक तरफ तो हमारे यहां इनकम टैक्स देने वाले बढ़ ही नहीं रहे हैं, दूसरी तरफ दुनिया भर में सैर-सपाटा करने वाले और विदेशी सामानों की शॉपिंग करने वाले भारतीयों की तादाद लगातार बढ़ती चली जा रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यटन संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में उम्मीद जताई थी कि 2019 में पांच करोड़ हिन्दुस्तानी घूमने के लिए देश से बाहर जाएँगे। बता दें कि 2017 के दौरान सवा दो करोड़ हिन्दुस्तानी घूमने के लिए विदेशों में गए भी थे। दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते टॉप-10 हवाई अड्डों में भारत के दो हवाई अड्डों ने जगह बना ली है। इसमें बेंगलुरु का केम्पेगोडा हवाई अड्डा दूसरे स्थान पर है, जबकि दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा छठे नंबर पर है। यह जानकारी ग्लोबल एयरलाइंस इवेंट ऑर्गनाइजर रूट्स ऑनलाइन नाम की संस्था ने दी है। पहले स्थान पर तोक्यो का हनेदा हवाई अड्डा रहा।
अब छोटे और मंझोले शहरों, जिन्हें टियर दो और तीन का शहर कहा जाता है, उनके हवाई अड्डों के अंदर-बाहर भी मुसाफिरों की भीड़ लगी ही रहती है। ये सब देश-विदेश आ जा रहे होते हैं। लखनऊ, अमृतसर, पटना, त्रिचि, नागपुर जैसे शहरों के हवाई अड्डों में भी अब तिल रखने की जगह नहीं बची होती। ये तस्वीर है नए भारत के हवाई अड्डों की। इन हवाई अड्डों से हिन्दुस्तानी दुबई, यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया वगैरह घूमने के लिए निकल रहे होते हैं, तो कुछ काम-धंधे के सिलसिले में अन्य देशों का रुख कर रहे होते हैं। आप लंदन, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, हांगकांग, दुबई, काहिरा, मॉरीशस जैसे स्थानों पर देखेंगे कि सबसे अधिक पर्यटक भारत से हैं। उन्हें एयरपोर्ट पर उतरते ही पर्यटन क्षेत्र के लोग पहचान लेते हैं। यह स्थिति इसलिए बनी क्योंकि विगत 15-20 बरसों से बहुत बड़ी तादाद में भारतीय देश से बाहर घूमने के लिए जा रहे हैं। पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि घूमने के लिए मोटा धन खर्च करने वाले इनकम टैक्स देने में कोताही बरतते हैं। उन्हें अपने देश के विकास के लिये टैक्स देने में शर्म आती है।
आप गौर करें कि भारतीय सिर्फ घूमने-फिरने के लिए ही देश से बाहर नहीं जा रहे हैं, ये भोजन भट्ट भी हो चुके हैं। एक औसत मिडिल क्लास हिन्दुस्तानी खाने-पीने और खरीदारी में भी खासा खर्च कर रहा है। आपको सारे देश में भांति-भांति के व्यंजन परोसने वाले रेस्तरां खुलते नजर आएंगे। ये नए-नए व्यंजनों के रेस्टोरेंट इसलिए खुल रहे हैं क्योंकि अब सारा देश सुस्वादु भोजन चखना चाह रहा है। इसके लिए हिन्दुस्तानी अपनी मोटी जेब ढीली करने के लिए तैयार हैं। सारे देश में नए-नए सामिष-निरामिष व्यंजन चखने की प्रवृति बढ़ी है। अब दिल्ली वाला शख्स मात्र छोले-कुल्चे, राजमा-चावल या कढ़ी चावल वगैरह खाकर ही संतुष्ट नहीं है। उसे उत्तर भारतीय व्यंजनों के साथ-साथ दक्षिण भारतीय, मारवाड़ी, बांग्ला, उड़िया, मराठी, गोवा व गुजराती वगैरह व्यंजन भी चखने की इच्छा होती है। उधर, मुंबईकरों को भी उत्तर भारत के साथ चाइनीज और इटालियन जायकों के साथ न्याय करने की लालसा बनी रहती है। तो घूमने, फिरने और स्वादिष्ट जायके चखने वाले हिन्दुस्तानी उत्तम कपड़े पहनना और महंगे मोबाइल रखना भी पसंद करते हैं। इन्हें मॅंहगे कारों में घूमना भी अच्छा लगता है। यहां तक तो सब ठीक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है कि कोई इंसान कमाने के बाद कुछ खर्चा भी करे। पर दिक्कत यह है कि हिन्दुस्तानी अपना इनकम टैक्स देने से कतराते हैं। वे इनकम टैक्स न देने की जुगाड़ में लगे रहते हैं।
यह बात तो माननी ही होगी कि अधिकतर इनकम टैक्स देने वाले कार्यरत सरकारी कर्मी, पेंशन पाने वाले सरकारी बाबू और प्राइवेट फर्मों और काॅरपोरेट सेक्टर के कर्मचारी ही हैं। आयकर रिटर्न अदा करने के मामले में सिर्फ नौकरीपेशा वर्ग ही सही रास्ते पर चलता है। वह भी मजबूरन क्योंकि टीडीएस की अनिवार्यता की वजह से उनके नियोक्ता ही उनके लिए यह काम कर देते हैं। बेशक, इनकम टैक्स कम या न देने वालों में दुकानदार, ट्राॅंसपोर्टर, टेंट और कैटरिंग वाले, रेस्तरां वाले, किराना स्टोर के मालिक वगैरह हैं। ये इनकम टैक्स देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। देश में लोगों की आय लगातार बढ़ रही है पर इनकम टैक्स ईमानदारी से अदा करने वाले उस अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं। अब इस स्थिति का मुकाबला करने का एक ही रास्ता है कि इनकम टैक्स की चोरी करने वालों पर कठोर एक्शन लिया जाए। अन्यथा बात नहीं बनेगी।
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं।)