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कांग्रेस के भीतर वंशवाद पर सवाल

👤 mukesh | Updated on:24 Feb 2020 5:26 AM GMT

कांग्रेस के भीतर वंशवाद पर सवाल

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- अनिल निगम

कांग्रेस पार्टी के अध्‍यक्ष पद को लेकर पार्टी के ही नेताओं ने एकबार फिर आवाज उठाई है। पूर्व सांसद संदीप दीक्षित के बाद पार्टी के वरिष्‍ठ नेता एवं सांसद शशि थरूर ने भी पार्टी अध्‍यक्ष का चुनाव करने की बात कही है। यह बात सर्वविदित है कि कांग्रेस के अंदर परिवारवाद, गुटबाजी, भ्रष्‍टाचार और वंशवाद की बीमारी अपनी गहरी पैठ बना चुकी है। यही कारण है कि देश में होने वाले लोकसभा और राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी खुद को बदलने में पूरी तरह से असफल रही है। पार्टी की धुरी आज भी परिवार के सिर्फ तीन सदस्‍यों राहुल, सोनिया और प्रियंका के इर्द-गिर्द घूम रही है। यह देश के लिए बेहद खतरनाक संकेत है।

दिल्‍ली में हाल ही में संपन्‍न हुए विधानसभा चुनाव और वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा आभास हो रहा है कि कांग्रेस के अंदर जोश समाप्‍त हो गया है। लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने अध्‍यक्ष पद छोड़ दिया लेकिन उसके बाद पार्टी को कोई मजबूत अध्‍यक्ष नहीं मिला बल्‍कि पिछले वर्ष अगस्‍त महीने में सोनिया गांधी को एकबार फिर पार्टी का अंतरिम अध्‍यक्ष बना दिया गया। लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस ने उत्‍तर प्रदेश में राहुल की बहन प्रियंका गांधी बढेरा को उतार दिया। पार्टी की ओर से यह बात प्रसारित की गई कि प्रियंका का केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्‍कि संपूर्ण देश पर व्‍यापक प्रभाव पड़ेगा लेकिन उत्‍तर प्रदेश सहित पूरे देश में चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए दुर्भाग्‍यपूर्ण रहे। हास्‍यास्‍पद बात यह रही कि राहुल गांधी कांग्रेस की पतली हालत से इतने भयभीत थे कि अपनी परंपरागत लोकसभा सीट अमेठी के साथ केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने चले गए। कांग्रेस का प्रियंका कार्ड भी पूरी तरह से फ्लॉप हो गया।

राहुल गांधी जिस तरीके से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ व्‍यवहार करते हैं, उसके चलते पार्टी के अंदर असंतोष व्‍याप्‍त रहता है। पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के साथ उनका व्‍यवहार आज भी बड़ी राजनीतिक गलती के रूप में दर्ज है। संसद के अंदर और यहां तक कि सोशल मीडिया में भी उनका व्‍यवहार एक सधे और परिपक्‍व राजनीतिज्ञ की तरह नहीं होता है। हर हार के बाद वह एक खीझे हुए व्यक्ति की तरह व्‍यवहार करते हैं। यही वजह है कि पार्टी के अंदर और बाहर उनका माखौल उड़ाने वालों की संख्‍या लगातार बढ़ती जा रही है।

लगभग हर राज्‍य में कांग्रेस के अंदर दो-तीन गुट बन चुके हैं। दो गुट तो प्राय: स्‍पष्‍ट हैं। एक गुट बुजुर्गवार नेताओं का है और दूसरा नई पीढ़ी के नेताओं का है। बुजुर्गवार नेता पार्टी के अंदर किसी भी कीमत पर अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहते। ज्‍यादातर ऐसे नेताओं की निष्‍ठा सोनिया गांधी के साथ जुड़ी हुई हैं, जबकि युवा नेताओं का जुड़ाव राहुल और प्रियंका के साथ है। अधिसंख्‍य पुराने नेता पार्टी को गांधी परिवार से बाहर नहीं निकलने देना चाहते। ध्‍यातव्‍य है कि मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों के बाद सोनिया गुट के ही नेताओं को ही मुख्‍यमंत्री बनाया गया। मध्‍य प्रदेश में मुख्‍यमंत्री कमलनाथ और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के बीच जिस तरीके से तलवारें खिंची हुई हैं, वह किसी से छिपा नहीं है। राजस्‍थान में मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच भी शीत युद्ध की खबरें आती रहती हैं। इसी तरह उत्तराखंड में वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी के अंदर अभी से जंग छिड़ी हुई है। प्रदेश कांग्रेस के भीतर बहुध्रुवीय खींचतान अब प्रमुख रूप से दो गुटों में विभाजित होती जा रही है। वास्‍तविकता तो यह है कि दोनों गुट विधानसभा चुनाव से पहले अपना सिक्‍का जमाना चाहते हैं। एक गुट का नेतृत्‍व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत करते हैं तो दूसरे गुट के नेता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश हैं। इन दोनों गुटों के बीच तनातनी लंबे समय से चली आ रही है।

कांग्रेस के मौजूदा अंदरूनी परिदृश्य के बीच जिस तरीके से पार्टी के दो नेताओं संदीप दीक्षित और शशि थरूर ने कहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं में उर्जा का संचार करने के लिए पार्टी अध्‍यक्ष का शीघ्र चुनाव कराया जाए, वह विचारणीय है। इसपर कांग्रेस पार्टी के प्रवक्‍ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि दीक्षित और थरूर ज्ञान देने के बजाय खुद का ज्ञान बढ़ाएं। नेता पहले अपनी हार-जीत का आकलन करें। संदीप दीक्षित अपनी ताकत ट्विटर के बजाय संसदीय क्षेत्र में लगाएं।

साफ है कि इस संबंध में पार्टी को मात्र टिप्‍पणी करने की बजाए, इसपर अत्‍यंत गंभीर चिंतन और मंथन करने की आवश्‍यकता है कि आखिरकार कांग्रेस अपनी हार-दर-हार को कबतक निहारती रहेगी? अगर देश में मजबूत विपक्ष नहीं होगा तो देश का लोकतंत्र कहीं-न-कहीं कमजोर होता है। आज समय आ गया है कि कांग्रेस अपने निहितार्थों को त्‍यागकर अपने अंदर अभूतपूर्व बदलाव कर सक्षम साबित करने के लिए खुद को तैयार करे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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