भारत-अमेरिका संबंधों की नयी संभावनाएं
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
ट्रम्प के आगमन पर विपक्ष के सवाल भारत का भला कर रहे हैं? यह एक ऐसा सवाल है, जो हर उस भारतीय के मन में उमड़ रहा होगा जो आर्थिक दृष्टिकोण से भारत को सशक्त एवं पूर्णरूप से सामर्थ्यवान होने की आशा रखते हैं। इस वक्त गुजरात के अहमदाबाद में ''नमस्ते ट्रंप'' की धूम है। पूरा शहर कड़े सुरक्षा इंतजामों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत कर रहा है लेकिन ट्रंप के दौरे को लेकर विपक्ष पूछ रहा है कि ट्रंप के दौरे का मकसद क्या है?
कांग्रेस का कहना है कि ट्रंप अमेरिका में मौजूद भारतीयों को अपने चुनावों के लिए लुभाने आए हैं। वहीं कांग्रेस के दूसरे नेता कह रहे हैं कि ट्रंप हथियार बेचने आए हैं। प्रियंका गांधी तो यहां तक प्रश्न खड़े कर रही हैं कि ''राष्ट्रपति ट्रंप के आगमन पर 100 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन ये पैसा एक समिति के जरिए खर्च हो रहा है। समिति के सदस्यों को पता ही नहीं कि वो उसके सदस्य हैं। क्या देश को ये जानने का हक नहीं कि किस मंत्रालय ने समिति को कितना पैसा दिया? समिति की आड़ में सरकार क्या छिपा रही है?''
इसी तरह जो भी प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा विरोधी हैं वे अपने-अपने ढंग से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की यात्रा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वास्तव में इन मोदी या भाजपा विराधियों से देश के आम लोगों का पूछना यहां केवल इतना भर है कि आज जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आ रहे हैं, वह भी अपने परिवार के साथ, तब क्या ऐसे सवाल खड़े करना जरूरी है? ऐसा करके हम भारत का कौन सा ''अथिति देवो भव:'' का रूप ट्रम्प, उनके परिवार और और पूरी दुनिया को दिखाना चाहते हैं। जबकि अमेरिका हमारे बहुत हद तक आर्थिक हितों को पूरा कर रहा है।
क्या इस बात को नकारा जा सकता है कि जो भारतीय अमेरिका में रह रहे हैं, वह भारतीय इकोनॉमी में अपना नियमित तौर पर बड़ा योगदान देते हैं। चलिए कुछ लोगों को लगेगा कि इसमें अमेरिका कोई उपकार नहीं कर रहा, भारत के लोग उन्हें काम के लिए चाहिए, हमारे लोगों में क्षमता है इसलिए वहां रह रहे हैं। लेकिन ऐसा सोचनेवालों को इन आंकड़ों पर भी गौर कर लेना चाहिए। वर्तमान में अमेरिका ने भारत के साथ व्यापार साझेदारी करने के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। इससे भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते व्यापार संबंधों का पता चलता है।
ट्रम्प की भारत यात्रा को लेकर स्यापा करनेवाले कम से कम यह अवश्य देखें कि वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े क्या कह रहे हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में भारत और अमेरिका के बीच 87.95 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। जबकि इसी वक्त में भारत का चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार 87.07 अरब डॉलर रहा था। इसी तरह 2019-20 में अप्रैल से दिसंबर के दौरान भारत का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 68 अरब डॉलर रहा, जबकि इस दौरान भारत और चीन का द्विपक्षीय व्यापार 64.96 अरब डॉलर रहा।
आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं, आने वाले समय में भी यह चलन बना रहेगा क्योंकि भारत और अमेरिका आर्थिक संबंधों को बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक पक्ष है कि यदि दोनों देश मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) कर लेते हैं तो द्विपक्षीय व्यापार एक अलग ही स्तर पर पहुंच जाएगा। अमेरिका के साथ एफटीए भारत के लिये बेहद फायदेमंद होगा क्योंकि अमेरिका भारतीय माल एवं सेवाओं का सबसे बड़ा बाजार है। अमेरिका के साथ भारत का आयात और निर्यात दोनों बढ़ रहा है, जबकि चीन के साथ आयात-निर्यात दोनों में गिरावट आ रही है।
ऐसे में यह बात किसी को मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि अमेरिका उन चुनिंदा देशों में से है, जिसके साथ व्यापार संतुलन का झुकाव भारत के पक्ष में है। वर्ष 2018-19 में भारत का चीन के साथ जहां 53.56 अरब डॉलर का व्यापार घाटा रहा था, वहीं अमेरिका के साथ भारत 16.85 अरब डॉलर के व्यापार लाभ की स्थिति में था। आंकड़ों के अनुसार, 2013-14 से लेकर 2017-18 तक चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार रहा लेकिन सभी जानते हैं कि तब से अब तक आर्थिक लाभ किसे अधिक हुआ है, स्वभाविक है कि भारत को तो नहीं हुआ है। चीन से पहले यह दर्जा संयुक्त अरब अमीरात को हासिल था।
यह सच है कि जब कोई डील होती है तो दोनों देशों को फायदा होता है। हो सकता है कि इसबार कोई डील ही न हो, लेकिन जो राष्ट्राध्यक्ष 18 घण्टे की यात्रा करके आ रहा है और इतना ही समय उन्हें जाने में लगेगा, जबकि दुनिया जानती है कि ट्रम्प प्राय: अधिक यात्रा नहीं करते। जो करते भी हैं तो वे यात्राएं अधिक समय की नहीं होती, उसके बाद भी यदि वे भारत आ रहे हैं तो हमें समझना होगा कि इससे दोनों ही देश भारत-अमेरिका को न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी सार्क देशों व अन्य देशों के बीच भारत की साख ही बढ़ेगी। जिस देश से हम हजारों करोड़ रुपए प्रतिमाह लाभ लेते हों, उसके राष्ट्राध्यक्ष के आगमन पर कुछ लाख या करोड़ सही खर्च भी हो रहे हों तो उसे इतना बड़ा मुद्दा कम से कम विपक्ष को भारत हित देखते हुए बिल्कुल भी नहीं बनाना चाहिए। एक राष्ट्र के स्तर पर आपसी विवादों को परे रखते हुए एकता का प्रदर्शन ही वर्तमान सशक्त भारत की आवश्यकता प्रतीत होती है।
(लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)