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कोरोनाः सामाजिक कॉरपोरेट उत्तरदायित्व

👤 mukesh | Updated on:25 March 2020 10:27 AM GMT

कोरोनाः सामाजिक कॉरपोरेट उत्तरदायित्व

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- हर्षित कुमार

कंपनियों के कोरोना वायरस से निपटने को लेकर किए जा रहे व्यय को उनके सामाजिक कॉरपोरेट उत्तरदायित्व (सीएसआर) का हिस्सा माना जाएगा। यह निर्णय जहां सरकार की सजगता को दिखाता है, वहीं कई प्रश्न खड़े कर देता है। देशभर में कोरोना वायरस का खतरा बढ़ता जा रहा है। सरकार और सामाजिक संस्थानों का फर्ज बनता है कि वो जनता को जागृत करे और उनकी समस्याओं को निबटारे में सहयोग करे। इससे संक्रमित लोगों का आंकड़ा 500 के पास जा चुका है। इस स्थिति को देखते हुए पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया है।

कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत कंपनियों को एक वित्त वर्ष में अपने तीन साल के वार्षिक शुद्ध लाभ का कम-से-कम दो प्रतिशत कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत खर्च करना होता है। हाल ही में कॉरपोरेट कार्य मामलों के मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर कहा कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए किया जा रहा कंपनियों का खर्च सीएसआर के दायरे में आने योग्य है। मंत्रालय के पास कंपनी अधिनियम को लागू करने की जिम्मेदारी है। कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश में कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने इसे आपदा घोषित करने का निर्णय किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है इसलिए यह स्पष्ट किया जाता है कि कंपनियों के इसपर किए जाने वाले सीएसआर कोष के खर्च को सीएसआर गतिविधि माना जाएगा।

सवाल यह उठता है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत में कम्पनी अपने सीएसआर कार्यक्रम में कोरोना को समाहित कैसे करे। क्या सरकार वित्तीय वर्ष की समयसीमा की अवधि भी बढ़ाएगी। अगर देखें तो हाल ही में लोकसभा द्वारा कंपनी संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया गया है इसके अनुसार, यदि कोई कंपनी अपने द्वारा निर्धारित कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी फंड की राशि एक निश्चित अवधि में खर्च नहीं करेगी, तो वह राशि स्वत: केंद्र सरकार के एक विशेष खाते (जैसे- क्लीन गगा फंड, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष) में जमा हो जाएगी। क्या सरकार समय सीमा को भी बढ़ाएगी क्योंकि यह कोरोना विश्वव्यापी संकट बनकर खड़ी है। कम्पनियों की जबावदेही तय की जा रही है, लेकिन कम्पनी कोरोना वायरस की इस लड़ाई में जो खर्च करेगी, उसका माध्यम कौन होगा। सवाल यह है कि क्या देश के एनजीओ के साथ मिलकर कंपनियां इस मुहिम में लगेगी। अगर एनजीओ पर कोर्पोरेट घराना आश्रित होगा तो उसकी जवाबदेही कौन सुनिचित करेगा। अभी एनजीओ के काम से सम्बंधित कोई प्रारूप तय नहीं किया गया है।

सरकार के इस महामारी के संकट से निकलने के लिए जहां कम्पनियों की सीएसआर सम्बंधित निर्णय तारीफ़ के काबिल है वहीं उसके प्रारूप और उसकी निगरानी सम्बंधित विषय नेपथ्य में दिख रहा है। सरकार को सामाजिक संगठन की विशेषज्ञता और उसके काम पर सीएसआर सम्बंधी विषय के लिए भी प्रारूप सुनिश्चित करनी चाहिए। क्योंकि कम्पनियों का काम एनजीओ के माध्यम से ही सम्भव होता है। वर्तमान में भारत के संदर्भ में देखा जाए तो अधिकांश एनजीओ अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं। भारत में दूसरी सर्वाधिक संख्या में एनजीओ हैं फिर भी जनहित एवं जनकल्याण सुनिश्चित नहीं हो पाता है।

एक आकड़े के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 1000 करोड़ रुपए की राशि एनजीओ को दी जाती है लेकिन इनमें से जन हितार्थ कितनी राशि खर्च हुई, कहाँ खर्च हुई एवं उसका क्या परिणाम हुआ, इसका कोई लेखा-जोखा नहीं दिया जाता है और न ही उपलब्ध है। उदारीकरण के पश्चात भारत में लगभग 33 लाख एनजीओ हैं जिनमें से केवल दस फीसदी ने ही अपने आय-व्यय का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। इससे एनजीओ के कार्यों एवं आय-व्यय की पारदर्शिता भी संदेह के घेरे में है। सरकार को सतर्कता के साथ इस कोरोना महामारी में सामाजिक संस्थानों की जबावदेही तय करने का वक्त भी है। वहीं सरकार अपने राहत कोष को भी सीएसआर सम्बंधित कार्यक्रम के लिए खोल सकती है। जनधन योजना के तहत खुले बैंक खातों का उपयोग कर सरकार और कोर्पोरेट तत्काल जनसमान्य को लाभ पहुंचाने में सफल हो सकती है। सरकार को सतर्कता के साथ सीएसआर के पैसे को खर्च करने और उसके परिणाम पर निगरानी रखने की आवश्यकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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