Home » खुला पन्ना » कोरोना : सतर्कता-संयम की जरूरत व अंधविश्वास की खेती

कोरोना : सतर्कता-संयम की जरूरत व अंधविश्वास की खेती

👤 mukesh | Updated on:29 March 2020 7:02 AM GMT

कोरोना : सतर्कता-संयम की जरूरत व अंधविश्वास की खेती

Share Post

- सुरेंद्र किशोरी

कोरोना वायरस (कोविड-19) मानवता को लीलने को आतुर है। इस विषम परिस्थिति से निबटने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सम्पूर्ण भारत में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना जरूरी कदम है। वायरस चेन को ब्रेक करने के लिए इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प हमारे पास नहीं है। भारत में अगर तीसरे चरण में कोविड-19 का एपिडेमिक ब्लास्ट हो जाता है तो यहां की हालत इटली, अमेरिका, स्पेन आदि देशों से भी काफी भयावह हो जाएगी क्योंकि हमारे पास इन विकसित देशों की तुलना में चिकित्सा सुविधाएं न्यूनतम हैं। डॉ. अभिषेक कुमार कहते हैं कि अभीतक इस महामारी से पीड़ित व्यक्ति के इलाज के लिए तय दवा की खोज करने में डॉक्टर्स, मेडिकल रिसर्चर्स और वैज्ञानिकों की टीम लगातार प्रयास कर रही है। कोविड-19 से पीड़ित मरीजों के ठीक होने का जो मामला सामने आ रहा है वो डॉक्टर्स के लिए बहुत सारी बीमारियों में प्रयुक्त स्पेसिफिक दवाओं के कॉम्बिनेशन्स का परिणाम है। इस कॉम्बिनेशन को क्रिएट करने के लिए डॉक्टर बधाई के पात्र हैं। इसका मतलब यह हरगिज नहीं है कि कोविड-19 का खतरा किसी भी प्रकार से कम हो गया।

कोविड-19 का खतरा तबतक हमारे सामने प्रचंड रूप में है, जबतक यह महामारी के रूप में फैल रहा है और इसकी दवा विकसित नहीं हो जाती।इसलिए लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वच्छता, सतर्कता, संयम और जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। लॉकडाउन से समाज के गरीब और मजदूर तबकों के सामने समस्या आयी है। सबसे अधिक प्रभावित वो हुए हैं जो रोज कमाते-खाते थे। आज उनके लिए भोजन की उपलब्धता प्रमुख चुनौती बनकर खड़ी है। इस समस्या से निबटने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें अपने स्तर से प्रयासरत हैं लेकिन सरकारों के प्रयासों की जो सीमा है उसे देखते हुए राहत में कुछ समय लगना अवश्यम्भावी है। इस स्थिति में स्थानीय निकायों और आमलोगों को आगे आकर मानवता का परिचय देते हुए जरूरतमंदों के लिए भोजन की व्यवस्था करना बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। कम्युनिटी किचन आज की जरूरत है।

काफी संख्या में भयभीत और बहकावे में आकर लोग महानगरों को छोड़कर पैदल ही अपने घरों को चलने लगे हैं। इनमें से कोई पैदल ही दिल्ली से बिहार तो कोई जयपुर से गुजरात जा रहा है। लॉकडाउन की हालत में जब बिना किसी एहतियात के पैदल चल रहे हैं तो ये लोग अपने आप से, परिवार, समाज व देश से ही नहीं मानवता की दृष्टि से भी ठीक नहीं कर रहे हैं। बिना किसी एहतियात के पैदल चलना इनको कोविड-19 से संक्रमित कर सकता है और ये कोविड-19 का केरियर बनकर अपने परिवार, समाज और देश को संक्रमित कर सकते हैं। ऐसे में जब कुछ लोग आत्मघाती कदम उठा ही चुके हैं तो यह शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे जहां हैं वहीं उन्हें रोके, उनके लिए आइसोलेशन की व्यवस्था और भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करे। फिलहाल आमलोगों की हिफाजत के लिए लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग वायरल चेन को ब्रेक करने के लिए अतिआवश्यक है। तमाम भारतीयों को इस लॉकडाउन और सोशल डिस्टेसिंग के नियमों का कड़ाई से पालन करने के साथ स्वास्थ्य संबंधी थोड़ी-सी भी डिस्कॉम्फर्ट फील होते ही तुरंत डॉक्टर्स से परामर्श लेनी चाहिए।

आज भारत कोविड-19 जैसे अदृश्य दानवी ताकत के खिलाफ युद्धरत है तो वहीं धार्मिक अंधविश्वास की खेती करने वालों के लिए यह विपरीत समय भी माकूल प्रतीत हो रहा है। तभी तो धार्मिक ग्रंथों के नाम पर कोरोना से मुक्ति का प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है तो कहीं अल्लाह के नाम में कोरोना से मुक्ति का शगूफा छोड़ा जा रहा है। दोनों स्थिति कोरोना वायरस कोविड-19 के खिलाफ युद्ध में भारत को कमजोर करने वाली है। धार्मिक आस्था बुरी बात नहीं है, बुरी बात है तो आस्था के नाम पर अंधविश्वासी हो जाना। अगर पूजा और नमाज से भारत कोरोना मुक्त हो जाता तो आज देश के तमाम मंदिरों और मस्जिदों में ताला लटका नहीं होता। तमाम धर्म और धार्मिक ग्रंथ हमें कर्तव्यनिष्ठ होने की प्रेरणा देते हैं, कर्मच्युत होकर अंधविश्वासी बनने की हरगिज नहीं। इस कोविड-19 के खिलाफ युद्ध में हमारा कर्म है स्वच्छ, संयमित और सतर्क रहना, खुद जागरूक होना और लोगों को जागरूक कर लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना। जब हम कर्तव्यनिष्ठ बनेंगे, तभी मानवता की जीत होगी और कोरोना वायरस कोविड-19 की पराजय।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

Share it
Top